भूख व कुपोषण मुक्त झारखंड एवं आदिवासी व दलित तथा संपूर्ण सामाजिक सुरक्षा हेतु झारखंड राज्य का बजट 2021-22 का बजट कैंसा हो विषय पर कांके रोड स्थित विश्वा प्रशिक्षण केंद्र में भोजन का अधिकार अभियान, झारखंड व झारखंड की सिविल सोसाइटी के द्वारा नागरिक संगठनों का दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।

सम्मेलन के प्रथम दिन बोलते हुए भोजन के अधिकार अभियान के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व सुुप्रिम कोर्ट के पूर्व राज्य सलाहकार बलराम जी ने कहा कि झारखंड सरकार 2021-22 के बजट पेश करने वाली है। उन्होंने कहा कि दलित और आदिवासी समुदाय के लिए बजट में मौलिक व समानता के अधिकार को ख्याल रखा जाना चाहिए, नागरिक संगठन यह चाहे जिम्मेवार उठा सकती है और इसमें चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। बागवानी और कृषि कार्य की संस्कृति जो भारतीय और खास करके झारखंडी समुदाय के बीच आदि काल से रहा है उसे फिर से पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। सरकार स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन बनाती है। लेकिन स्पेशल कृषि ज़ोन बनाने की अवश्यकता है। यह एक क्रांति लेकर आएगा। सरकार के पास काफी फ़ंड है, जैसे टीएसपीए एससीएसपी और डीएमएफ़टी इत्यादि जिसका विचलन होता रहा है। सरकार को चाहिए की ग्राम सभा से परामर्श के साथ इस राशि का इस्तेमाल हो जिससे जमीनी स्तर पर बदलाव दिखे।
अवसर पर बिन्नी आजाद ने कहा कि पेंशन इत्यादि में केंद्र सरकार का अंशदान 200 रुपए काफी पुराने समय से चला आ रहा है। जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है। सरकार के पास हर स्तर पर काफी इनफ्रास्ट्रक्चर है, जिसे इस्तेमाल के लायक बनाना जरूरी है। कई जगह भवन बने पड़े हैं लेकिन उनमें पानी बिजली इत्यादि मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं, जिससे समुदाय इन्हें इस्तेमाल नहीं कर पाता है, जिसे सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रेम शंकर ने कहा कि कोविड के दौरान आए हुये संकट से जूझते हुये नागर समाज के बीच काफी मंथन हुआ जिससे बहुत सारे सुझाव निकल के आए हैं। पोषण को ध्यान में रखते हुये मोटे अनाज जैसे मड़ुवा का उत्पादन तथा आँगनबाड़ी और मध्याहन भोजन में इस्तेमाल पर ज़ोर देना चाहिए ताकि कुपोषण की समस्या दूर हो सके। कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल और हस्तांतरण गैर कृषि कार्य के लिए न हो इसके लिए ठोस उपाय किए जाने की आवश्यकता है। बिरसा हरित ग्राम योजना एक अच्छी योजना है और इसकी संभावनाएं बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि वनाधिकार मुद्दे पर दावों का निपटारा पारदर्शी तरीके से नहीं हो पा रहा है। सरकार को इस दिशा मे अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है।

जेम्स हेरेंज ने कि झारखंड में नरेगा की दशा पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत किया और कहा कि कम मजदूरी दर सबसे बड़ी समस्या है इसलिए मनरेगा की तरफ लोगों का रुझान कम हो रहा है। उन्होंने कहा कि मनरेगा में कम मजदूरी एक बहुत बड़ी समस्या है, इसलिए इस बार के बजट में मजदूरी बढ़नी चाहिए और इसका बजट में प्रावधान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनरेगा योजनाओं के चयन में ग्राम सभा से चयन होना चाहिए, ऐसा मनरेगा अधिनियम के धारा 16 में प्रावधान है। मगर प्रशासनिक अधिकारी ग्राम सभा को नजर अंदाज कर योजनाओं के चयन करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी योजनाओं के लागू करने से ग्राम सभा से सुझाव व बजट आना चाहिए, ऐसा नहीं होने से सरकार काल्पनिक बजट बनाती है, जो समुदाय के लिए उपयोगी नहीं होती है।
दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन-एनसीडीएचआर के राज्य संयोजक मिथिलेश कुमार ने कहा कि छात्रों के लिए जो योजनाएं चलायी जाती है, जैसे पोस्ट मैट्रिक स्काॅलशीप और प्री-मैट्रिक स्काॅलरशीप में बजट की राशि बढ़ायी जाए और सभी दलित आदिवासी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति से जोड़ने के लिए सरल और सुगम आवेदन की प्रक्रिया शुरू किया जाये, ताकि अधिक से अधिक दलित व आदिवासी छात्र-छात्राएं छात्रवृति योजनाओं का लाभ ले सकें। इसके साथ झारखंड में मुख्यमंत्री छात्रवृति योजनाओं के सभी दलित व आदिवासी को स्काॅलरशीप दिया जाये। उन्होंने कहा कि झारखंड टीएसीपी और एससीएसपी के लिए कानून बनाकर बजट के विचलण को रोका जाये।
बजट परिचर्चा में जाॅनसन, आशा, फादर सलोमन, जीवन जग्रनाथ, गुलाचंद, विश्वनाथ, कृष्णा , हलधर महतो, दीपक बाड़ा, अनिमा बा, उमेश ऋषी, मेरी निशा सहित कई लोगों बजट परिचर्चा में अपने-अपने विचार रखा। बजट पूर्व परिचर्चा में झारखंड के विभिन्न दो दर्जन से अधिक नागरिक संगठन के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बजट पूर्व परिचर्चा का संचालन भोजन के अधिकार अभियान के राज्य संयोजक अशर्फी नंद प्रसाद ने किया ।