कवि परिचय
शिक्षा: एम.ए, एम.फील, पीएच.डी (दिल्ली विश्वविद्यालय)
सम्प्रति: एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग,
राजधानी कॉलेज, राजा गार्डन, नयी दिल्ली-110015
प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ, आजकल, कादम्बिनी, जनसत्ता, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, कृति ओर, वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।
काव्य-संग्रह: अभी भी दुनिया में
संपादन: सचेतक और डॉ रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)
सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।
आजकल ‘डॉ रामविलास शर्मा के पत्र” संकलन-संपादन कार्य में व्यस्त।
जन्म के बारे में स्त्री जानती है
पार्क के कोने में एक कुतिया ने पाँच शिशुओं को जन्म दिया है
इस घटना को पार्क में आने-जाने वाले कम लोग जान सके
मैं भी तब जान पाया जब मैंने देखा घरों में काम करने वाली एक स्त्री को उस कुतिया को दूध रोटी खिलाते हुए
पार्क में सुबह-शाम सैकड़ों लोग आते-जाते हैं चंद लोग ही जान पाये प्रसूता और उसके शिशुओं के बारे में
उसे एक स्त्री समझ पाई क्योंकि वह जानती है जन्म देने की सच्चाई ।
जाते हुए को देखकर
वे दोनों निःशब्द थे दोनों की आँखों के आँसू बतिया रहे थे आपस में
न जाने ऐसी क्या और कौन-सी बात थी? कि आँसू अपने-अपने घर छोड़कर भागे जा रहे थे
वियोगावस्था की इस घड़ी में दोनों की हिम्मत पस्त थी
मौन होकर मुड़े दोनों अलग-अलग अपनी दिशाओं की ओर
जाते हुए आँखें नहीं पीठ देख रही थी एक-दूसरे को बिछुड़ते हुए
आज भी जब किसी जाते हुए की पीठ दिखती है
पता नहीं कौन आँसुओं से जाकर कहता है? कि वे अपने-अपने घरों के झरोखों से झाँकने लगते हैं जाते हुए को देखकर।
अमीर-गरीब
गरीब भी अमीर होते हैं
जो अमीर
गरीब को कुछ देते हैं
गरीब भी अमीर को
खाली नहीं भेजते
उन्हें
अमीरी-बोध से
भर देते हैं।
देखना
एक दिन
उसने कहा-
तुम कम हँसते हो
हँसा करो खुलकर
हँसते हुए सुंदर लगते हो
उसकी बात सुनकर
मैं हँस दिया
उसने मुझे
हँसते हुए देखा
और मैंने उसे
मेरी हँसी की
चिंता करते देखा।
आत्मा के फफोले
रसोई में चाय बनाते हुए अपनी ही असावधानी से जला बैठा वह अपना हाथ
जीवन में पहली बार हुआ अँगुलियों और आग का आमना-सामना
जलन की पीड़ा
पहली बार जान पाया
वह इतने करीब से
देखते ही पत्नी ने
तुरन्त लगाया नारियल का तेल
बतायी आग से जुडी
अनेक सावधानियां और सजगता
उसने एक दिन की
जलन को कर दिया जगजाहिर
सभी को दिखाये
अपनी अँगुलियों पर पड़े फफोले
लेकिन
क्या कभी जान पाओगे?
उन स्त्रियों के बारे में
जो हर दिन
आग के बीचोबीच होती हैं
रोज ही
उनका कोई न कोई अंग जलता ही रहता है
क्या कभी देख पाओगे?
उनकी आत्मा पर पड़े
वे फफोले
जो समय-समय पर
तुमने ही उन्हें दिये हैं।
खुशी
मैं प्रसन्नता के पँख लगाकर
उड़ता हुआ
पहुँचा उसके पास
उसे खुद सुनायी
नौकरी मिलने की खुशखबरी
सुनकर वह स्थिर-सी
खड़ी रही
बोलने के लिए
शब्दों के संदूक को
छूना चाहा
लेकिन छू न सकी
गला भर आया
आँखों से आँसुओं की माला
टूट-टूटकर गिरने लगी
वह शब्दों से
जो न कह सकी
उसने मौन रहकर
अपनी आँखों से कहा।
माँ कविता कोश है
माँ
एक कविता कोश है
जिसमें मिलती हैं
अनेक कविताएँ
एक साथ।
जसवीर त्यागी संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018 मोबाइल:9818389571 ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com