किसको बतलाएं निज पीड़ा
हम मरते – मरते जीते हैं,
तुम काढ़ा – नींबू पिया करो
हम रोज़ हलाहल पीते हैं।
हम लोक- क्षुधा के रखवाले
तुम लोक-मतों के भक्षक हो,
तुम वाक्- युद्घ में बने रहो
हम खामोशी में बीते हैं।
तुम खग-मृग में जीवन खोजो
हम जीवन-हल में जुते बैल,
तुम मुग्ध भाव से भरे हुए
हम उदर – कंठ से रीते हैं।
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©️ राहुल मिश्रा