इतिहास के अध्येताओं के अलावा क्रांति को जानने-समझने में रुचि रखने वालों के लिए भी है उपयोगी “1857 का विद्रोही जगत: पूर्वी उत्तर प्रदेश””

438
2113
प्रो. सैयद नजमुल रज़ा रिज़वी लिखित और ओरियंट ब्लैकस्वान द्वारा हिंदी एवं अंग्रेजी में प्रकाशित पुस्तक “1857 का विद्रोही जगत”:पूरबी उत्तर प्रदेश, इन इलाकों में घटित घटनाओँ तथा क्रांतिकारियों की गतिविधियों का पहली बार सिलसिलेवार वर्णन ही नही है बल्कि देश भर में बिखरे उन तमाम स्रोतों की भी पड़ताल है जो अभी तक इतिहासकारों तथा समीक्षकों की नज़र से ओझल रहे हैं.
पुरबिया सिपाही जिन्हें तत्कालीन बंगाल रेजिमेंट में इसी नाम से जाना जाता था, क्रांति के प्रमुख क्षेत्रो में हुए संघर्ष में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर जानकारी तो मिलती है पर उनके अपने नेटिव क्षेत्रों में विद्रोह के दौरान क्या हुआ था इसकी जानकारी के लिए यह पुस्तक एक आईना है जिससे पूरबी उत्तर प्रदेश में हुए विद्रोह,ठिकानों,वफादारों और गद्दारों की छोटी छोटी गतिविधियों को दस्तावेजी सुबूत के साथ पहले से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है.नेपाल की तराई,गोरखपुर से इलाहाबाद और अवध से सटे इलाकों में क्रांति की गतिविधियों को जानने में यह पुस्तक इनसाइक्लोपीडिया साबित होगी ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।
लेखक ने उपलब्ध तमाम स्रोतो के साथ साथ लैंड सेटलमेंट, रिपोर्ट्स, ओरल ट्रेडिशन,आर्काइवल मैटेरियल्स,लेटर्स,अधिकारियों के संस्मरणों के साथ साथ स्थानीय साहित्यिक परम्पराओं में क्रांति के नायकों पर रचित पुस्तकों के जरिये भी विद्रोह की प्रकृति को समझने की कोशिश की है जो तथ्यों को विश्लेषित करने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करती है.ऐसे अनेक छोटे छोटे जमींदार,राजा,नायक और नेतृत्व कर्ता को हम पहली बार ऐतिहासिक पटल पर पाते है जो इतिहास के पन्नों में अभी तक जगह नहीं बना सके थे.पुस्तक की भाषा सरल और पठनीय है.तत्कालीन समाज की साझी विरासत,साझा संघर्ष और सह अस्तित्व की विशेषता जो कि आगे चलकर Idea of India का आधार बना को उकेरने और निर्मित करने में पुस्तक विशेष भूमिका निभाती है.उम्मीद है साम्प्रदायिक होते समाज विशेषकर पूरबी उत्तर प्रदेश को फिर से पटरी पर लाने में यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी.
यह इस पुस्तक की अन्य प्रमुख विशेषताओं में से एक है. लेखक इसके लिए साधुवाद का पात्र हैं.कुल मिलाकर यह पुस्तक नई जानकारियों से लबरेज है और इतिहास के अध्येताओं के अलावा क्रांति को जानने-समझने में रुचि रखने वाले सुधी जनों के ज्ञान को अपडेट करने में भी महती भूमिका का निर्वहन करेगी.परिशिष्ट और सन्दर्भिका द्वारा लेखक ने आगे के अध्येयाओं के लिए रिसर्च के नए द्वार ही खोल दिये हैं.
लेखक गोरखपुर विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष रहे है और अनेक पुस्तकों के रचनाकार भी.वैज्ञानिक इतिहास लेखन की उन तमाम संस्थाओं से भी जुड़े हुए है जिनका भारतीय इतिहास को तथ्यपरक बनाने में योगदान रहा है.सम्प्रति आप पूरबी उत्तर प्रदेश के जमींदारों पर अपनी पूर्व प्रकाशित पुस्तक को विस्तृत रूप देने में व्यस्त हैं.
डॉ. मोहम्मद आरिफ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here