ठेकेदार ने एक मजदूर का सिर फोड़ा
विशद कुमार
कोरोना के संक्रमण के भय से भी ज्यादा भयभीत करने वाली बेरोजगारी, भूख और अपनों से बिछड़ने का भय प्रवासी मजदूरों को ऐसा आतंकित कर रखा है कि वे किसी भी तरह अपने घर पहुंच जाना चाहते हैं। यही वजह है कि देश के लगभग सभी राज्यों में कहीं साईकिल से तो कहीं पैदल ही प्रवासी मजदूर सड़कों पर निकल पड़े है। कहीं वे बेरोक टोक आगे बढ़ते जा रहे हैं, तो कहीं पुलिस उन्हें जबरन रोक रही है, या मारपीट कर वापस लौटा रही है। यह स्थिति तब है जब केंद्र सरकार कई राज्यों की सरकारों की मांग पर कई स्पेशल ट्रेनों का परिचालन भी शुरू कर चुकी है, तो कई राज्य सरकारें अपने लोगों को लाने के लिये स्पेशल बसों का इंतजाम किया हुआ है।
झारखंड के भी प्रवासी मजदूर भी कई राज्यों में फंसे हैं। कुछ प्रवासी मजदूर स्पेशल ट्रेनों से अपने घर वापस आ चुके हैं, तो कुछ कई राज्यों में फंसे हैं। कुछ को वहां की पुलिस ने रोक रखा है, तो कुछ ठेकेदारों द्वारा बंधक बने हुए हैं।
पिछले दिनों लॉकडाउन के कारण देश के तमाम उद्योग धंधे बंद कर दिए गए। जिसके कारण देश के कई हिस्सों में प्रवासी कामगार बेरोजगार हो गए। फैक्ट्री मालिकों, कंस्ट्रक्शन सेक्टर वालों सहित कई छोटे—मोटे उद्योग चलाने वाले अपने यहां से कामगारों को चलता कर दिया, तो मकान मालिकों द्वारा भी इन्हें अपने मकानों से निकाला जाने लगा। जबकि दूसरी तरफ ट्रेनें बंद कर दी गईं, यात्री बसों सहित सभी तरह के वाहनों का परिचालन बंद कर दिया गया। यह सारा कुछ केन्द्र सरकार की घोषणा के बीच किया गया।
कहना ना होगा कि ऐसी विषम परिस्थितियों के बीच बेघर हुए, ये प्रवासी मजदूर कोरोना संक्रमण के खतरों की परवाह किए बिना, हजारों किमी दूर अपने अपने घरों को पैदल ही निकल पड़े। जाहिर है इन कामगारों में बेरोजगारी की चिन्ता के साथ साथ अपने परिवार के भरण—पोषण की भी चिन्ता मुंह फाड़े सामने खड़ी हो गई।
इस अफरा तफरी के बीच कई मजदूर रास्ते में ही दम तोड़ दिए। इन घटनाओं के बाद जब सरकार की आलोचना शुरू हुई, तो जहां केन्द्र सरकार ने स्पेशल ट्रेन शुरू की तो राज्य सरकारों ने बस सेवा शुरू कर दी। लेकिन इन प्रवासियों के लिए ये सेवाएं भी कम पडने लगीं क्योंकि प्रवासियों के अनुपात में ये यात्री सेवाएं काफी कम हैं। जिसके कारण कुछ प्रवासी मजदूर पैदल तो कुछ साईकिल से सैकड़ों किमी की दूरी तय करते हुए वापस अपने अपने घरों को लौटने को विवश हो रहे हैं।
मिली जानकारी के अनुसार झारखंड के पलामू जिला मुख्यालय व कमिश्नरी डालटेनगंज सदर के लगभग दो दर्जन मजदूर राजस्थान के अलवर जिला के निमराना में फंसे हुए हैं। ये लोग निमराना स्थित एचएमवी गरिमा कंपनी में काम करते हैं। इन्हें इनके ही क्षेत्र का एक ठेकेदार (लेबर सप्लायर) गुड्डु राम ने कंपनी में काम दिलवाया था। अहम तथ्य यह है कि यहां काम करने वाले इन मजदूरों को कंपनी द्वारा मजदूरी सीधे न देकर ठेकेदार द्वारा दिया जाता है। एचएमवी गरिमा कंपनी मोटर पार्ट्स बनाने का काम करती है। यहां मजदूरों का वर्क टाइम बारह घंटा है, मतलब मजदूरों को 12 घंटा काम करना पड़ता है और इनका मासिक वेतन काम के हिसाब से 12 हजार से 18 हजार तक है। अगर हम आठ घंटे का वर्क टाइम और उसके बाद ओवर टाइम के हिसाब से देखें तो इनका मासिक वेतन 6 हजार से 9 हजार रू. तक है। झारखंड के ये मजदूर यहां लगभग दो साल से काम कर रहे हैं। ये लोग डालटेनगंज सदर के आस पास के गांवों के रहने वाले हैं।
डालटेनगंज सदर के बखारी गांव मजदूर गौतम विश्वकर्मा यहां ग्रेडिंग का काम करते हैं। वे बताते हैं कि अचानक हुए लॉकडाउन के बाद कंपनी बंद कर दी गई। हमलोग बेरोजगार हो गए। जब सरकार द्वारा स्पेशल ट्रेन चलाने की घोषणा की गई और झारखंड सरकार द्वारा वापस लौटने के किए रजिस्ट्रेशन करने को कहा गया, तब हमने रजिस्ट्रेशन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। हमने अपने ठेकेदार गुड्डू राम को कहा कि हमलोग अब घर जएंगे। ठेकेदार ने कहा ठीक है। हमने ठेकेदार से मकान वाले और राशन वाले को बकाया पैसा देने के लिए पैसे की मांग की, तो उसने पैसा देने से इंकार कर दिया। उसने कहा कि हम नहीं जानते तुमलोग समझो।
हमारे पास तो पैसा था नहीं, अंत: हमने घर से पैसे मंगवा कर मकान वाले और राशन वाले को बकाया पैसे दिए।
बता दें कि 13 मई की रात को सारे लोग पैदल ही झारखंड के लिए निकल गए। लगभग 25 किमी की दूरी तय करने के बाद अचानक पुलिस ने घेर लिया और वापस लौटा दिया।
मजदूर सुरेन्द्र सिंह बताते हैं कि 13 मई की रात को हमने गुड्डू राम को बोल कर निकल गए कि हमलोग जा रहे हैं। कुछ दूर जाने के बाद गुड्डू राम का फोन आया कि जिस रास्ते से हमलोग जा रहे हैं, वह गलत रास्ता है। हमें बाद में एहसास हुआ कि वह हमें फोन पर उलझाए रखा और हमारा लोकेशन ट्रेस करता रहा, फिर पुलिस पहुंच गई और हमें लौटा दिया। पुलिस के जाने के बाद ठेकेदार ने पुन: हमसे कहा कि हमलोग गलत रूट से जा रहे थे, हाइवे से जाओ। हमलोग उसकी बात में आ गए और पुन: हाइवे का रूट पकड़ लिया। लगभग 20 किमी कत जने के बाद पुलिस पुन: पहुंच गई और हमारी पिटाई शुरू कर दी। पुलिस हमें मारते पीटते पुन: वापस लेकर हमें लेकर आ गई। हमारी समझा में कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर पुलिस हमें क्यों तंग कर रही है? हमें लगा कि ठेकेदार गुड्डू राम ने ही पुलिस को भेजा है। हमने ठेकेदार से कहा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? हमे घर जाने दे।
इसी बात को लेकर बात बढ़ गई और ठेकेदार ने गौतम विश्वकर्मा के सिर पर एक डंडा दे मारा, गौतम का सिर फट गया।
इस हादसा के बाद ठेकेदार घबड़ा गया, वह कहने लगा पुलिस में मत जाओ मैं सबको घर भिजवा दूंगा। दूसरे दिन उसका व्यवहार बदला बदला नजर आया। वह कहने लगा मैं नहीं भेज सकता जो करना है कर लो। ऐसे में सारे मजदूर घबड़ाए हुए हैं। क्योंकि पुलिस का रवैया भी ठीक नहीं है।
बता दें कि प्रवासी मजदूरों को बंधक बनाने का यह पहला मामला नहीं है।
एक अन्य खबर के अनुसार झारखंड के लातेहार व पलामू जिला के दर्जनों प्रवासी मजदूर तेलंगाना के हैदराबाद स्थित बांस पल्ली में फंसे हुए हैं। वे घर आना चाहते हैं, परंतु संदीप खलखो नामक उनका ठेकेदार उन्हें आने नहीं दे रहा है। सरकार द्वारा जारी लिंक में रजिस्ट्रेशन भी करने नही दे रहा है। जिसके कारण सारे मजदूर दहशत में हैं। प्रवासी मजदूरों में अभय मिंज व चंदन बड़ाईक ने फोन पर बताया कि ”संदीप खलखो जो लातेहार जिला के महुआटांड़ थाना अंतर्गत नावा टोली सरनाडीह का रहने वाला है। जब हम मजदूर लोग घर वापस जाना चाहते हैं तो हमलोगों का लेबर सप्लायर संदीप खलखो हमारा सारा सामान रख ले रहा है। सरकार द्वारा जारी रजिस्ट्रेशन लिंक को भी हटा दिया है। वह हमें बंधक बना लिया है और कहता है कि अगर जाना है तो सारा सामान यहीं छोड़ दो। वह हमें पैसा भी नहीं दे रहा है।”
कहना ना होगा कि कोरोना संक्रमण के बहाने किए गए लॉकडाउन मजदूर कानून को कमजोर करके बंधुआ मजदूरी की परोक्ष से मजबूत करने का प्रयास है।