उत्तर प्रदेश सरकार दलितों के अधिकारों को सुरक्षित करने में असफल

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हाल ही में उत्तर प्रदेश में दलित महिला के साथ हुए निर्मम सामूहिक बलात्कार व हत्या ने सम्पूर्ण भारत की आत्मा को झकझोर के रख दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार दलितों के अधिकारों को सुरक्षित करने में पूरी तरह से असफल रही है। राज्य में दलित महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा तथा एनसीआरबी 2019 की रिपोर्ट यह कटु सत्य प्रदर्शित करते हैं। ग्राम बुगाड़ी अंतर्गत थाना चांदपा हाथरस, उत्तर प्रदेश की 19 वर्षीय बालिका के साथ हुए प्रकरण की विश्व भर में आलोचना की जा रही है। उसके साथ उसी गाँव के चार प्रभावशाली जाति के आरोपियों संदीप उर्फ चंदू पुत्र नरेंद्र, लवकुश पुत्र रमेश सिंह, रवि पुत्र अतर सिंह तथा राम कुमार उर्फ रामू पुत्र राकेश सिंह द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया।

घटना के तथ्य निम्न प्रकार से हैं –

  1. यह कि दिनांक 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित बालिका अपनी माँ के साथ खेत में चारा लेने गयी थी। उसकी माँ केवल 100 मिटर की दूरी पर काम कर रही थी जब प्रभावशाली जाती के चार आरोपियों ने बालिका पर आक्रमण किया तथा उसके साथ सामूहिक बलात्कार कर उसी के दुपट्टे से उसका गला दबा कर हत्या करने की कोशिश की। उसके साथ गंभीर मारपीट करके उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी, शरीर के विभिन्न भागों में चोटें कारित की व उसकी जीभ भी काट दी गयी। उसकी माँ ने उसे बाजरे के खेत में बहुत गंभीत हालत में पाया।
  2. यह कि पीड़िता की माँ व भाई उसे तुरंत प्रभाव से चांदपा थाने ले कर गए जहां पर वह काफी समय तक धूप में पड़ी रही तथा पुलिस असवेनशील होते हुए उसे वहाँ से ले जाने के लिए कह रही थी। उनका कहना था कि वह नाटक कर रही है। लंबी प्रतीक्षा के बाद दिनांक 14/9/2020 को एफ़आईआर नंबर 136/2020 अंतर्गत धारा 307 भ0द0स0 तथा 325 एससी/एसटी एक्ट दर्ज की गयी तथा बालिका को ज़िला अस्पताल हाथरस में भर्ती करवाया गया। वहाँ से उसे अलीगढ़ के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल हॉस्पिटल भेज दिया गया। वहाँ के डॉक्टर का कहना था कि वह बहुत गंभीर व लकवे की हालत में लायी गयी थी, पेट के कई अंग काम करना बंद कर चुके थे तथा रीढ़ की हड्डी में चोट की वजह से हाथ-पैर भी बेजान हो चुके थे। 28 सितंबर को उसे सफदरजंग हॉस्पिटल, नई दिल्ली भेज दिया गया, जहां 29 सितंबर की सुबह उसकी मौत हो गयी। सामूहिक बलात्कार की धारा 376डी आईपीसी बालिका के 22/9/2020 को होश में आने पर बयान के आधार पर जोड़ा गया। दिनांक 29 सितंबर को बालिका की मृत्यु के बाद 302 आईपीसी धारा जोड़ी गयी।
  3. यह कि घटना के दर्ज होने के बाद 10 दिनों तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई थी। चौथा आरोपी 26/9/2020 को गिरफ्तार हुआ। पुलिस द्वारा मृतका के परिवार की सुरक्षा के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए थे, जिसके कारण आरोपी के परिवार व उनके सहयोगी समुदायों द्वारा पीड़ित परिवार को लगातार द्बाव व धमकियाँ दी जा रही थी।
  4. यह कि राज्य द्वारा जानबूझ कर यह लापरवाही की गयी कि पीड़िता को 29/9/2020 को दिल्ली सफदरजंग अस्पताल भर्ती किया गया जबकि जेएनएमसी हॉस्पिटल के डॉक्टरॉन के मुताबिक बालिका को एम्स, नई दिल्ली रेफ़र किया गया था।
  5. यह कि अमानवीयता और नृशंसता की कहानी दलित बालिका की मृत्यु के बाद भी जारी रहा, जब मृतका के शरीर का यूपी पुलिस ने 30 सितंबर कि मध्य रात्री 2:30 -3:00 बजे निस्तारण (दाह संस्कार) कर दिया। पीड़िता के शरीर को पुलिस द्वारा पीड़िता के परिवार की सहमति के बिना जला दिया गया। प्रक्रिया के तहत मृतका के शरीर को दाह संस्कार के लिए पीड़ित परिवार को सौंप देना चाहिये था बजाए इसके साक्ष्य को खतम करने के लिए मृत शरीर का निस्तारण कर दिया गया। अत: पुलिस इस अवैधानिक कृत्य के लिए जिम्मेदार है।
  6. यह कि राज्य सरकार ने गाँव में 31 अक्टूबर तक धारा 144 सीआरपीसी लागू कर दी है तथा पीड़ित परिवार को घर में नजरबंद कर दिया है। पीड़ित परिवार के अनुसार उनके मोबाइल फोन छीन लिए गए तथा घर से बाहर निकालने व किसी से बात करने के लिए मना कर दिया है।
  7. यह कि एफ़एसएल रिपोर्ट के मुताबिक बालिका के साथ कोई बलात्कार नहीं हुआ तथा उसकी मृत्यु हृदयाघात से होने बताया है। रिपोर्ट तथा उत्तर प्रदेश अतिरिक्त महानिदेशक के अनुसार पीड़िता के शरीर में वीर्य उपस्थित नहीं पाया गया। जबकि पीड़िता के बयानो के अनुसार उसके साथ सामूहिक बलात्कार कारित हुआ है तथा क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट के अनुसार पीड़िता के बयान बलात्कार स्थापित करने के लिए परायप्त हैं। यहाँ पर राज्य सरकार मुदे को दबाने का प्रयास कर रही है।
  8. यह कि पीड़ित परिवार घर में कैद है वहीं पर प्रवाभशाली जाति के लोगों ने 2 अक्टूबर को एक महापंचायत का आयोजन किया तथा राज्य पर आरोपियों को मुक्त करने का दबाव बना रहे हैं। दलितों के प्रति असंवेदनशीलता का परिचय देते हुये राज्य सरकार ने पीड़ितों वह आरोपियों का नरकोटिक टेस्ट के आदेश दे दिये हैं जोकि आरोपियों को बचाने का अन्य प्रयास है।
  9. यह कि जिला कलेक्टर तथा जिला प्रशासन पीड़ित परिवार को लगातार हैरान परेशान कर रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि पीड़ित परिवार अत्याचार निवारण के अंतर्गत मिलने वाले मुआवजे के लिए इस मुद्दे को उठा रहा है। डीएम, हाथरस द्वारा कहा गया कि यदि आपकी बेटी कोविड के कारण मरी होती तो क्या आपको मुआवजा मिलता? पीड़ित परिवार पर प्रकरण का निस्तारण माँ द्वारा दिये गए बयान के आधार पर करने का द्वाब बनाया जा रहा है जिसमें बलात्कार को इंगित नहीं किया गया था।

दलित परिवार को कई स्तर पर प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके साथ आरोपियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है तथा पुलिस व प्रशासन द्वारा परिवार को हैरान-परेशान किया जा रहा है। पुलिस व प्रशासन अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधित अधिनियम 2015 अंतर्गत वर्णित कर्तव्यों का निर्वहन उचित प्रकार से नहीं कर हैं। इसके विपरीत, आरोपियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

इन्हीं तथ्यों व परिस्थियों को ध्यान में रखते हुए हम इस घटना व राज्य की कार्य प्रणाली की भर्त्सना के साथ मांग करते हैं:-

  • घटना की जांच स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सुनिश्चित हो जो कि राजनेतिक तथा राज्य के दखल से स्वतंत्र हो। जांच अत्याचार निवारण अधिनियम के अनुसार 60 दिनों में पूरी कर चार्ज शीट पेश की जाए।
  • घटना की जांच मृतका के मृत्यु पूर्व बयान (dying declaration) के आधार पर सामूहिक बलात्कार मानते हुए सुनिश्चित हो तथा क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट, 2013 को ध्यान में रखते हुए बलात्कार की जांच हो।
  • राज्य सरकार आरोपी परिवार व सहयोगी समुदायों द्वारा धमकियाँ तथा गाँव में प्रभावशाली जाति के बढ़ते विरोध को ध्यान में रखते हुए पीड़ित परिवार की सुरक्षा के कड़े इंतजाम करे। हम पीड़ित परिवार की सुरक्षा के लिए गाँव में अस्थायी पुलिस चौकी की मांग करते हैं।
  • प्रकरण का विचारण एससी/एसटी विशेष न्यायालय के द्वारा त्वरित रूप से किया जाए तथा अत्याचार अधिनियम के अनुसार 60 दिनों में निर्णय सुनाया जाए।
  • पीड़ित परिवार को नियम 12(4) अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधित अधिनियम 2015 के अंतर्गत 8,25,000/- का आर्थिक मुआवजा अविलंब दिया जाए। हम यह भी मांग करते हैं की पीड़ित परिवार को नियम 12(4)(46) एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत 5 एकड़ भूमि पीड़ित परिवार को अतिरिक्त राहत के रूप में दिया जाए।
  • पुलिस व प्रशासन के खिलाफ लापरवाही बरतने व अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधित अधिनियम 2015 के प्रावधानों की अवहेलना करने के लिए धारा 4 अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधित अधिनियम 2015 तथा धारा 166 ए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत कठोर कार्यवाही की जाए। हम मेडिकल अधिकारियों के खिलाफ भी मेडिकल रिपोर्ट के तथ्यों के साथ छेदखनी करने के लिए धारा 4 के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही की मांग करते हैं।
  • ज़िला कलेक्टर व पुलिसअधीक्षक तथा अन्य पुलिस व प्रसाशनिक अधिकारी के खिलाफ पीड़िता के शव को जलाने के लिए (धारा 297 आईपीसी), साक्ष्य नष्ट करने के लिए (धारा 201 आईपीसी), दलित परिवार को प्रताड़ित करने के लिए धारा 3(1)(r)(s)एससी/एसटी एक्ट), सदोष अवरोध के लिए (340,342 आईपीसी) आपराधिक अभित्रास के लिए (506 आईपीसी) पीड़ितों के साथ मारपीट करने के लिए (धारा 323, 324 आईपीसी) के अंतर्गत आपराधिक मामला दर्ज कर कठोर कानूनी कार्यवाही की जाए।

 

भवदीय

 

           (प्रो. विमल थोरात)                         (डॉ वी. ए. रमेश नाथन)

संयोजक                                   महासचिव

ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच             राष्ट्रीय दलित न्याय आंदोलन

नई दिल्ली                                  नई दिल्ली

मो. 9999807818                       मो. 9560028068

 

 

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