नफरत का एक दरख्त, मौलाना खादिम हुसैन रिजवी

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Santosh Kumar

“फ्रांस के सफीर को बुलाओ और उसके सामने एटम बम रखकर बोलो कि मैक्रों को बताए कि तौहीने रसूल पर हम इस बम का इस्तेमाल करेगें”। इस्लामाबाद जाने वाली सड़क को अपने हजारो समर्थकों के साथ घेर कर बैठे मौलाना खादिम हुसैन रिजवी के आगे इमरान की सरकार विवश हो गयी थी और उसने लिखित समझौता किया कि तीन महीने के भीतर वो संसद से प्रस्ताव पास कराकर फ्रांस के अपने सिफारतखाने को बन्द करेगी और अपने सफीर वापस बुलाएगी। इस वाकए के एक हफ्ते के भीतर मौलाना मर गया और बताया जा रहा है कि उसका जनाजा पाकिस्तान का तारीखी जनाजा था शायद उससे भी बड़ा जितना सलमान तासिर के कातिल मुमताज कादरी का जनाजा था। लेकिन मुम्बई वाले बाला साहेब के जनाजे से छोटा ही होगा।

कयास लगाया जाता है कि पाकिस्तान के डीप स्टेट ने देवबन्दी बहुल तालिबानियों को बैलेंस करने के लिए बरेलवी जमात के जिन्न को पैदा किया है, जिसका इस्तेमाल वे चुनी हुई सरकारों को ब्लैकमेल करने के लिए कर रहे हैं। यह कयास इससे भी पुष्ट होता है कि मौलाना खादिम हुसैन रिजवी इमरान खान के पहले की सरकार के खिलाफ धरने में पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा रुपए बांटने वाले वीडियो काफी चर्चित हुए थे। लेकिन जिस तरह बोतल से बाहर निकला जिन्न अपने आका के कन्टªोल से अक्सर बाहर हो जाता है उसी तरह से ये जिन्न पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति से बाहर निकल कर उसकी विदेशनीति पर भी डेन्ट मार रहा था। तिस पर कोढ़ में खाज यह कि उसने आगे बढ़कर यह भी ऐलान कर दिया था कि उसको पहले की सरकारों के खिलाफ धरने के लिए पैसे कहां से मिले थे वो जल्दी ही किसी जलसे में बताने वाला है। इसके बाद पाकिस्तानी डीप स्टेट के हांथपांव फूलने की बारी आ रही थी। चौवन साल के जवान मौलाना के डेथ सर्टिफिकेट पर किसी कारण का जिक्र करने की हैसियत गंगाराम अस्पताल प्रबन्धन में नही थी इसलिए मौत के कारण में कयास ही लगाए जा रहे हैं जिसमें प्रबल सम्भावना कोरोना की बताई जा रही है।

खादिम हुसैन रिजवी ने पाकिस्तान में ईशनिन्दा कानून को इतना जनस्वीकार्य बना दिया कि इस कानून को जरा भी विवेक सम्मत बनाने की हैसियत पाकिस्तानी शासकवर्ग में नही रह गयी है। मौलाना अपने पीछे आशिके रसूलों की एक नयी कट्टरपन्थी जमात और “गुस्ताखे रसूल की एक सजा, सर तन से जुदा– सर तन से जुदा” जैसा नारा छोड़कर मरा है, जिसको पाकिस्तानी समाज दशकों तक भुगतेगा। सेक्यूलर राजनेता सलमान तासिर से लेकर छात्र मशाल खान तक के हत्यारों की हौसला आफजाई करने वाले मौलाना ने पाकिस्तानी समाजे के जहन को इस कदर बीमार कर दिया है कि अब किसी को भी गुस्ताखे रसूल कहकर हत्या करने पर लोगों की भीड़ उस हत्यारे की उंगलियों को चूमने उमड़ पड़ती है। इसके दो वाकए काफी चर्चित हुए हैं जिसमें एक वाकए मे एक कनाडा से अपने मुल्क की कोर्ट में हाजिर हुए कादियानी को १८ साला लड़के ने यह कहकर कोर्ट में ही गोली मार दिया कि उसको रसूल ने सपने में ऐसा करने को बोला था और दूसरे वाकए में एक बैंक मैनेजर को उसके गार्ड ने गोली मारकर भीड़ को बताया कि मैनेजर गुस्ताखे रसूल था और पूरी भीड़ जैकार करते हुए उस गार्ड के साथ थाने में गयी, जहां थानेदार ने भी उसकी आस्थावान मुसलमान की तरह उसको सम्मान दिया। मजाक यह है कि जिस बैंक मैनेजर को गुस्ताखे रसूल कहकर मार दिया गया वो खुद फेसबुक पर आशिके रसूल बनकर फ्रांसीसी राष्टªपति मैक्रों को सजा देने की मांग कर रहा था। वैसे खादिम रिजवी के साथ भी मजाक हुआ कि सर गंगाराम को कोसने वाला खादिम रिजवी आखिर में उसी अस्पताल में गया और अब्दुल सत्तार ईदी को कोसने वाले खादिम रिजवी के शरीर को उनकी ही संस्था के एम्बुलेंस से घर लाया गया। खैर इसके मरने से पाकिस्तानी इस्टेब्लिसमेण्ट को अगर थोड़ी राहत मिली है तो वहां के नास्तिकों, अल्पसंख्यकों और सेक्यूलरों ने भी थोड़ी राहत जरुर महसूस किया है लेकिन इस राहत का इशारा भी जाहिर होने पर उन पर गदृदार होने का तमगा लगाने वाली फौज भारत से कहीं कमजोर नही है।

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