ट्विटर की खरीद को लेकर बहुत चर्चाएँ चलीं, और अंत में इसे अमेरिकी खरबपति इलॉन मस्क ने खरीद ही लिया. और अपना कॉर्पोरेट मैनेजमेंट के अनुकूल परिवर्तन कर दिया.
इलॉन मस्क की इस खरीद का असर न्यूयॉर्क और विश्व के कई स्टॉक एक्सचेंजों पर पड़ा और ट्विटर के स्टॉक मूल्य में बढ़त हुई. साथ ही इसका वैल्युएशन भी बढ़ा है.
और इसी की प्रतिक्रिया में कई टेक शेयर उछले हैं. जिसको लेकर कई आर्थिक और वित्तीय बाजारों से जुड़े सूचना माध्यम अपना ध्यान बनाए हुए हैं.
एक तरह से मार्केट का पूरा ध्यान टेक शेयरों की ओर है. और लगातार इनमें बढ़त ही हो रही है. स्टॉक मार्केट में इस प्रकार का उछाल फंड मैनेजरों और बैंक को टेक की ओर झुकाव बढ़ाने पर विवश कर ही रहा है.
लेकिन थोड़ा सा रूककर सोचिए, ट्विटर की संपत्ति क्या है? क्या कोई भौतिक संपत्ति है उसके पास? कोई निर्माण उद्यम क्या ट्विटर के साथ है?
ट्विटर ही क्यों संसार के बड़े जाइंट गूगल, मेटा, स्पेस एक्स के पास कौन सा उत्पाद या भौतिक श्रम या संपत्ति है, उनका आधार क्या है?
यदि इनके पास ये सब नहीं है, तो किस आधार पर संपत्ति की वैल्युएशन इतना किया जा रहा है कि वह कई भौतिक कंपनियों से अधिक धनाढ्य और कीमती है.
एसेट वैल्युएशन के इस चक्रव्यूह में स्टॉक मार्केट को एक बड़ी ताकत बनाया जा रहा है. जहाँ आम व्यक्ति की कोई गिनती ही नहीं है. फेसबुक पर रील्स देखने और यूट्यूब पर वीडियो बनाकर परोक्ष आय से लखपति बनना आम श्रम को समाहित नहीं करता है.
कल को यदि मेटा डूबती है. जो डूब ही रही है, क्योंकि जैसे इसने ऑर्कुट को रिप्लेस किया था, वैसे ही इसका भी अंत होना ही है, तो इसका असर कितना व्यापक होगा? क्या उसके आघात से बचा जा सकता है?
उत्पादन ईकाईयों को गौण करके एसेट वैल्युएशन के नाम पर काल्पनिक संपत्तियों को जिस प्रकार से स्थापित किया जा रहा है यह पूँजी की एक अलग ही स्थापना है.
जहाँ ना तो रामलाल की आवश्यकता है और ना ही किसी विशिष्ट डिग्रीधारी की. कल को कोडिंग के नए रूप को सामने ला दिया जाएगा तो वर्तमान की पढ़ाई फेल. और साथ विकसित एआई तो इसकी भी आवश्यकता समाप्त कर रही है.
अब यदि अपने ही देश में अंबानी को ही अब अपने पेट्रोलियम जाइंट से अधिक जियो के लिए जाना जा रहा है. जहाँ एक टेक्नीकल ग्लिच अरबों रूपए स्वाहा कर सकता है. और ग्लिच तो कैसे भी आ या लाया जा सकता है.
ऐसे में यदि एक दिन भी यह बड़े स्टॉक झुकाव की ओर चले गए तो क्या होगा? इसका असर बैंकिंग फंड और देश सरकारों व सामान्य लोगों तक पर पड़ेगा. ऐसे में कैसे संपत्ति के इस मूल्यांकन को स्वीकार किया जा सकता है.
फंड और इंवेस्टमेंट का नियामन बहुत ही आवश्यक है. लेकिन विश्व की सरकारें इसके विपरीत जा रही हैं. और ट्रेडिंग को पूरे विश्व में जोड़ने की तैयारी हो रही है.
श्रम और उत्पादन में तो सबको समाहित किया जा सकता है लेकिन टेक, कैपिटल और ट्रेड में सब आ ही नहीं सकते हैं. क्योंकि इसका स्ट्रक्चर ही ऐसा नहीं हैं.
अब यदि कोई सुपर एक्सचेंज, जिसकी तैयारी चल रही है, यदि बन जाता है. और वहाँ मेटावर्स और स्पेस एक्स का वर्चस्व होता है. तो आम व्यक्ति कहीं बचेगा?
आर्थिक परिवर्तन कहीं ना कहीं एच जी वेल्स के नॉवेल के जैसे ईलाई और मॉरलॉक रच रहा है. जहाँ भौतिक श्रम, उत्पादन और संपत्ति का मूल्यांकन शून्य होकर शिकार बनेगा और स्टॉक व परोक्ष आय से पूँजी शिकारी बनने की तैयारी में है.
हरिशंकर शाही की फेसबुक वॉल से