विशद कुमार
रांची : बोकारो शहर से सटे बांधगोड़ा, सतनपुर पहाड़ी व गरगा नदी के किनारे आसस और जनाधिकार मंच के द्वारा पर्यावरण दिवस के मौके पर पौधारोपण किया गया। इस दौरान करीब 500 फलदार व अन्य पौधे लगाए गए। अवसर पर संतालडीह, बाघराय बेड़ा, जयपाल नगर, बिरसा बासा, सतनपुर के ग्रामीणों द्वारा पर्यावरण के प्रति गंभीर रहने का संकल्प लिया गया। ग्रामीणों ने पौधे लगाकर उनका भरण-पोषण करने का भरोसा दिया। आसस संस्थापक सह जनाधिकार मंच के संयोजक योगो पुर्ती ने कहा कि अंधाधुंध हो रही पेड़ों की कटाई गंभीर चिंता का विषय है। सक्रिय हुए वन माफियाओं द्वारा पेड़ों की कटाई कराकर पर्यावरण को दूषित करने में अहम भूमिका निभाई जा रही है। सड़कों का निर्माण हो या फिर भवनों का, पेड़ों को निःसंकोच काट दिया जा रहा है। पेड़ों की कटाई का ही नतीजा है कि मौसम पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। पर्याप्त मात्रा में बारिश नहीं होने से किसानों की बेचैनी बढ़ गई है। मंच के कानूनी सलाहकार सह अधिवक्ता रंजीत गिरी ने कहा कि वृक्ष के बगैर मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे में हमारा जीवन बेहतर ढंग से बीते इस लिए परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम दो पौधे अवश्य लगाने चाहिए। पौधे लगाना ही नहीं उसका बराबर देखभाल भी होते रहना चाहिए ताकि पर्यावरण को दूषित होने से बचाया जा सके। वहीं पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने बताया कि करीब दो दशक से नदियों को बचाने, जल संरक्षण करने व पौधा रोपण करने के साथ-साथ बारिश के पानी को पृथ्वी पर संचित करने का हर संभव प्रयास होना चाहिए। मौके पर आकाश टुडू, रेंगो बिरूवा, विजय घटवार, झरीलाल पात्रा, संजय कुमार, पुरन सोरेन, संतोष बाउरी, राम कुमार मांझी, सुपई गोडसोरा, सुनीता गोडसोरा, बसमाती देवी, लक्ष्मी बानरा सहित अन्य लोग मौजूद थे।
बता दें कि बांधगोड़ा व सतनपुर का जंगल बोकारो शहर से दक्षिण दिशा में अवस्थित है। दोनों जंगल एक दुसरे से जुड़ा है। बांधगोड़ा पहाड़ी खेदाडीह से मकदमपूर तक श्रृंखलाबद्ध था। बांधगोड़ा जंगल के दक्षिण दिशा में आर्दश काॅआपरेटिव और भारत एकता बासा है तो वहीं सतनपुर का जंगल में बोकारो फील्ड फायरिंग रेंज बना हुआ है। दोनों जंगल से सटे उतरी छोर में गरगा नदी बहती है। नदी के तट पर बाघराय बेड़ा, खेदाडीह और आदिवासी बस्ती जयपाल नगर समेत कई गांव बसे हुए है। जंगल से सटे दक्षणी छोर पर संताल डीह और सतनपूर गांव है। मालूम हो कि बोकारो शहर बसने और स्टील प्लांट के निर्माण के दौर में जंगल काफी घना हुआ करता था। जंगली जानवर और पशु-पक्षी भी थे। आलम यह कि लोग शाम ढलते ही इन जंगलों के सामने से गुजरने में भी खौफ खाते थे। बुढ़ा-बुर्जूग कहते है, जंगल में राष्ट्रीय पक्षी मोर समेत बाघ और भालू का भी बसेरा था, यही कारण है कि पास के गांव का नाम बाघराय बेड़ा पड़ा, बोकारो स्टील सिटी के नामकरन के बाद जैसे माराफारी के अस्तित्व पर ग्रहण लग गया, वैसे ही बोकारो शहर के अस्तित्व के साथ इस जंगल पर भी मानो ग्रहण सा लग गया। एक बार जो पेड़ कटना शुरू हुआ, सो थमने का नाम नहीं लिया। नतीजा यह हुआ कि चंद वर्षों में ही दोनों जंगल पूरी तरह से उजड़ गये। जहां बड़े -बडे़ पेड़ थे, वहां से ठूंठ भी गायब होने लगे। ठूंठ तो ठूंठ कंकड़ पत्थर को समतल हो गये।
ऐसी स्थिति में योगो ने ग्रामीणों के साथ मिलकर जंगल को एक नया जीवन दिया। दो दशक बाद बांधगोड़ा व सतनपुर का जंगल एक बार फिर से लहलहा उठा है। बताते चलें कि दोनों जंगल बोकारो स्टील सिटी से सटा इलाका है। अब हरियाली शहर से भी दिखती है। योगो की टीम ने ठूंठ की जंगल में हरियाली लौटाई है। अब इस जंगल में फिर से मोर समेत कई जीव जन्तु का बसेरा बन गया है। कभी कभी मोर पानी की तलाश में गरगा नदी के तट पर आते है। जिसे ग्रामीणों द्वारा पूरा संरक्षण दिया जाता है। साथ ही जंगल में तरह-तरह की जड़ी बूटीयां मिलने लगी है।
जंगल को बचाने के लिए आसस के संस्थापक व जनाधिकार मंच के संयोजक योगो पुर्ती के नेतृत्व में टीम बनी थी जो ग्रामीणों को पर्यावरण प्रति जागरूक किया। टीम में प्रमुख रूप से रामदयाल सिंह, प्रकाश मिश्र, रंजीत गिरी, सुभाष समद, हेमू मांझी, दलगोविंद सोरेन, पंचू सिंह सहित इस जगंल के संरक्षण में कई लोग जुड़ चुके है जिसमें मुख्य रूप से रामलाल सोरेन, राम कुमार मांझी, रेंगो बिरूवा, झारी लाल पात्रा, सुपाई गोडसोरा, बबलु गोडसोरा वगैरह दर्जनों लोग शामिल है।