वाराणसीः सम्पूर्ण समाधान दिवस के अवसर पर जिलाधिकारी वाराणसी व पुलिस उपायुक्त गोमती ज़ोन द्वारा जन समस्याओं को सुनकर उनके त्वरित निस्तारण हेतु संबंधित को दिये आवश्यक दिशा निर्देश
शासन की मंशा के अनुरुप जनसमस्याओं की सुनवाई तथा त्वरित निस्तारण हेतु प्रत्येक माह के प्रथम व तृतीय शनिवार को सम्पूर्ण समाधान दिवस का आयोजन किया जाता है। आज दिनांक 02-09-2023 को सम्पूर्ण समाधान दिवस के अवसर पर तहसील पिण्डरा में जिलाधिकारी जनपद वाराणसी व पुलिस उपायुक्त गोमती ज़ोन, कमिश्नरेट वाराणसी द्वारा जन समस्याओं की सुनवाई की गई एवं उनके त्वरित निस्तारण हेतु संबंधित को तत्काल मौके पर जाकर शिकायतों की निष्पक्षता से जाँच करके शत प्रतिशत निस्तारण करने हेतु निर्देशित किया गया। इस दौरान उप जिलाधिकारी पिण्डरा, सहायक पुलिस आयुक्त पिण्डरा, पुलिस व राजस्व के अन्य अधिकारी/ कर्मचारीगण मौजूद रहे।
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गोमती जोन के पुलिस उपायुक्त विक्रांत वीर से उनके ऑफिस में मेरी दो मुलाकातें हैं। पहली मुलाकात बतौर पत्रकार हुई थी और उन्हीं के सौजन्य से वाराणसी पुलिस के मीडिया सेल की खबरें हमारा मोर्चा तक पहुँचना शुरू हुई थीं। जबकि दूसरी मुलाकात मैंने फरियादी के रूप में की थी।
सूचनाओं के विवरण और घटनाक्रम में से इवेंट ढूँढ़ने की कला बच्चा पत्रकारों को सिखाई जाती है और जिंदगी भर वे इवेंट ढूँढ़ते रहते हैं। जब मैं आईपीएस अधिकारी विक्रांत वीर को अपने मामले से जुडे़ डिटेल दे रहा था तो उनके प्रश्न Crux of the matter यानि कि समस्या के मर्म को पकड़ने के लिए किए गए थे। पुलिस अधिकारी की अनुशासित और श्रमसिक्त जिंदगी से मिली तीक्ष्णता अपराध की गुत्थी को सुलझाने में सहायक होती होगी, इस नतीजे पर आसानी से पहुँचा जा सकता है। कोई भी सभ्य समाज निजता के अधिकार की अनदेखी नहीं कर सकता। निजता का हनन माने बर्बरता। मेरी फरियाद इसी नुक्ते के इर्दगिर्द थी।
सरल अखबारी भाषा विचारों के बोझ को वहन नहीं कर सकती थी तो मुझे अमूर्तन में जाना ही था। चूँकि मेरे आवेदन की भाषा एक हद तक बोझिल हो चली थी तो सोचा थाने जाने की बजाय सक्षम पुलिस अधिकारी को अपनी तकलीफ बता दी जाए। फर्ज कीजिए, आप किसी से फोन पर बात कर रहे हैं और विषय के अनुसार आपके चेहरे पर तरह-तरह के भाव तैर रहे हैं। कोई आपको गौर से देख रहा हो और उन भावों को नोटिस कर रहा हो और आपके फोन रखते ही सवाल दागने लगे तो इसे बर्बरता कहा और माना जाएगा। हो सकता है कि दूसरी ओर सूदखोर रहा हो और वह आपको बेइज्जत कर रहा हो। हो सकता है कि आपका अफसर आपको फोन पर डाँट रहा हो, यह भी संभव है कि उस शख्स से बात करके आपको रूहानी खुशी मिल रही हो, जिसे आप किसी से भी साझा न करना चाहें। और जो भी सार्वजनिक-सामाजिक का अतिरिक्त आग्रही होगा वह निश्चित रूप से बर्बर ही कहा और माना जाएगा, ऐसे ही एक बर्बर को लेकर अपना शिकायती पत्र देने मैं गया हुआ था। कुरेदना भी अलोकतांत्रिक होता है।
मैं अपनी पूरी बात कह और बता इसीलिए पाया कि मुझे सुनने वाला बेहद संजीदा और तेज दिमाग पुलिस अधिकारी था, जिसे शातिर अपराधियों की कारगुजारियों को जानने से लेकर Vulnerable नागरिकों की तकलीफ तक को समझने का हुनर मालूम था। अपराध का ग्राफ निश्चित रूप से नीचे आया होगा पर इसकी इंद्राजी करने का काम क्राइम रिपोर्टरों का है और वे कर भी रहे होंगे। मुझे तो बस पुलिस के बेहद सहयोगी और मानवीय रवैये पर अपनी बात कहनी थी सो कह दी।
मध्य-युग में जब राजाओं का शासन हुआ करता था तो शासकीय मशीनरी ही शासक वर्ग हुआ करती थी। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि राजतंत्र में भी कहने को तो राजा संप्रभु और ईश्वर का प्रतिनिधि हुआ करता था लेकिन असल में समाज में दबदबा राजकीय अमले का हुआ करता था। समय के साथ हम अधिक सभ्य हुए और संसदीय लोकतंत्र की स्थापना हुई। पुलिस अधिकाधिक नागरिकों के प्रति उत्तरदायी होती गई।
सूबे के मुखिया योगी आदित्य नाथ के कुशल नेतृत्व में पुलिस जनता की मित्र बनी हुई है। तस्वीरों में देखा जा सकता है कि बच्चे आला पुलिस अधिकारी को राखी बाँधने आए हुए हैं। यह विक्रांत वीर की लोकप्रियता का प्रमाण है कि आम जन अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस पर भरोसा दिखा रहे हैं और राखी बाँधकर प्रकारांतर से वचन भी ले रहे हैं।
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कामता प्रसाद