(डाॅ अमर नाथ झा)
दिल्ली विश्वविद्यालय
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मौत से कम कुछ नहीं हैवानियत की है सज़ा
देवि कर दे वध असुर का बेटियों को ले बचा
मान मर्दन रक्तबीजों का करो तुम आज फिर
नारियाँ अबला नहीं दुर्गा हैं सबको दो बता
छल ही जिनका बल है केवल आततायी दैत्य हैं
खड्ग काली पान कर उनका रुधिर उनको मिटा
भूल की हमने असुर को भी मनुज सम मानकर
कर नहीं सकता असुर धर्माचरण था क्या पता
मत ‘अमर’ पीछे तू हट करना तुझे है अरि दमन
बन शिवा संहार कर कर नव सृजन नव सृष्टि का