कोरोना की आड़ में श्रम अधिकारों पर हमले का विरोध
8 मई 2020, लुधियाना। कारख़ाना मज़दूर यूनियन, पंजाब व टेक्स्टाईल-हौज़री कामगार यूनियन, पंजाब ने साझा प्रेस बयान जारी करते हुए केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा कोरोना की आड़ में मज़दूरों के क़ानूनी श्रम अधिकारों के हनन के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए माँग की है कि सरकारें श्रम अधिकारों पर हमला बंद करें। संगठनों का कहना है कि श्रम अधिकारों पर हमले, लोगों के जनवादी अधिकारों के हनन और जनवादी कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों को झूठे मामलों में जेल में बंद करने जैसी कार्रवाइयों से सरकारों द्वारा लॉकडाउन करने के पीछे का असली मकसद स्पष्ट रूप में सामने आ गया है। संगठनों ने आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम जिले में एल.जी. पॉलिमर्ज केमिकल प्लांट में हुए गैस लीक कांड़ के कारण इस क्षेत्र के बड़े इलाकों में ज़हरीली गैस के फैलाव के चलते बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने और बीमार पड़ जाने पर शोक व्यक्त करते हुए माँग की है कि कंपनी मालिकों और प्रबंधकों की तुरंत गिरफ़्तारी की जाए, मुकद्दमा चला कर फांसी की सजा दी जाए, बीमारों का सरकारी ख़र्च पर सही ढंग से इलाज हो, पीडितों को उपयुक्त मुआवज़ा दिया जाए, सरकार कंपनी को अपने हाथ में ले।
जारी प्रेस बयान में संगठनों ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा 6 मई को अध्यादेश जारी करके करीब सभी क़ानूनी श्रम अधिकार ख़त्म कर दिए हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा भी नए उद्योगों को श्रम क़ानून लागू ना करने की छूट दे दी है। भले ही यह छूट तीन सालों के लिए तथा कुछ क्षेत्रों को छोड़ कर देने की बात कही गई है परन्तु सरकारों के रवैये से यह स्पष्ट है कि सरकारें स्थायी तौर पर तथा सभी क्षेत्रों के लिए श्रम क़ानूनों को ख़त्म करना चाहतीं हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारों द्वारा पहले ही काम के घंटे 8 से 12 घंटे करने के फ़ैसले किए जा चुके हैं। केंद्र सरकार को गुजरात के पूँजीपतियों के एक संगठन ने मज़दूरों से यूनियन बनाने का अधिकार ख़त्म करने का प्रस्ताव भेजा हुआ है। भारत में पहले ही मज़दूरों के पक्ष में बहुत कमज़ोर श्रम क़ानून हैं और यह भी बहुत कम ही लागू हो रहे थे। परन्तु पूँजीपति वर्ग की असीमत मुनाफ़े की भूख के चलते भयानक गरीबी-बदहाली का शिकार मज़दूरों से ये थोड़े-बहुत श्रम अधिकार छीन कर लूट और तीखी करना चाहती हैं। सरकारों द्वारा स्पष्ट रूप से पूँजीवाद की सेवा, कमज़ोर श्रम क़ानूनों तथा इनके अंतर्गत भी बहुत थोड़े श्रम क़ानून लागू होने का ही नतीजा है कि जहाँ हाड़-तोड़ मेहनत करने वाले मज़दूर भयानक गरीबी-बदहाली की ज़िंदगी काट रहे हैं वहाँ कार्य-स्थलों पर रोज़ाना भयानक हादसे भी हो रहे हैं तथा प्रदूषण संकट दिन-ब-दिन गहरा होता जा रहा है जिसका खामियाजा मज़दूरों एवं पूरे समाज को भुगतना पड़ रहा है। भोपाल गैस कांड़ जैसा विशाखापटनम गैस लीक कांड़ इसी का नतीजा है। कल छत्तीसगढ़ की एक फैक्ट्री में भी गैस लीक होने, तमिलनाडू में बॉयलर फटने और नासिक में फैक्ट्री को आग लगने की खबरें आईं हैं। ऐसे हालातों में यह कल्पना करना भी बहुत भयानक है कि सरकारों द्वारा श्रम क़ानूनों को ख़त्म किए जाने से आने वाले दिनों में मज़दूरों व पूरे समाज को कितने भयानक नतीजे भुगतने पड़ेंगे। इसलिए ना सिर्फ़ विशाखापटनम व छत्तीशगढ़ गैस लीक कांड़ और दूसरे औद्योगिक हादसों के पीडितों को इंसाफ़ तथा दोषियों को सज़ाएं दिलाने के लिए आगे आने की ज़रूरत है बल्कि कोरोना के बहाने श्रम क़ानूनों पर किए गए हमले के ख़िलाफ़ भी ज़ोरदार आवाज़ बुलंद की जानी चाहिए। संगठनों ने मज़दूर वर्ग और अन्य सभी इंसाफ़पसंद लोगों को इसके लिए ज़ोरदार आवाज़ बुलंद करने का आह्वान किया है।
-जारी कर्ता,
राजविंदर, प्रधान, टेक्स्टाईल-हौज़री कामगार यूनियन, पंजाब।