वल्लभाचार्य पांडेय, विस्तृत रिपोर्ट शीघ्र
सिकरौल क्षेत्र के इस नाले से अनवरत दूषित जल वरुणा नदी में गिरता है जो अंततः बिना किसी ट्रीटमेंट के गंगा में चला जाता है, ऐसे कई और नाले भी हैं नक्कीघाट, नदेसर, सरैया आदि क्षेत्र में। असि की तरह वरुणा भी गटर बनने की दिशा में तेजी सेअग्रसर है।
गंगा एक्शन प्लान और नमामि गंगे जैसी योजनाएं अधिकारियों के बंगले सजाने तक ही सीमित रह गईं।
Amit Rajbhar जी लिखते हैं
वरुणा नदी से हमारा बचपन से नाता रहा है ।वाराणसी मुख्यालय से 20से25किलोमीटर पश्चिम वरुणा नदी के किनारे हमारे कई रिश्तेदारी हैं जहां बचपन से ही आना जाना रहा है बचपन से ही मैं देखता रहा हूं कि वरुणा का पानी इतना साफ और शुद्ध होता था कि लोग अपने जानवरों को पिलाते थे नहाते थे कपड़े धोते थे और पानी इतना साफ होता था कि नदी की तलहटी को बिल्कुल साफ देखा जा सकता था सन 2000 में जब मैं उदय प्रताप महाविद्यालय का छात्र था मैं पहली बार फुलवरिया से होते हुए अपने कॉलेज गया और मैंने देखा कि फुलवरिया मिलिट्री कैंपस के अंदर एक बड़ा सा नाला बहुत तेजी से आवाज करते हुए बहता रहता था जिसमें कैंट रेलवे स्टेशन के आसपास के इलाकों कैंटोंमेंट और लहरतारा तक के सीवर का पानी बहता था यह सारा सीवर वरुणा नदी में जाकर गिरता था और यह नाला आज भी उसी तरह से बह रहा है कई बड़ी परियोजनाएं वरुणा नदी के मामले में आए। घाटों का जीर्णोद्धार हुआ घाटों की रंगाई पुताई सुंदरीकरण हुआ लेकिन वरुणा के प्रदूषण का जो वास्तविक कारण शहर के गंदे नाले हैं उन पर कोई ठोस कार्य नहीं किया गया जिसके कारण वरुणा की स्थिति दिन-ब-दिन बुरी होती जा रही है प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ता जा रहा है वरुणा का पानी किसी कार्य योग्य नहीं रह गया है। वरुणा नदी में प्रदूषण शिवपुर से मुख्य रूप से शुरू होता है जिसमें बड़े बड़े नाले गिरना शुरू होते हैं और चौकाघाट पहुंचते-पहुंचते पानी का रंग इतना काला इतना गंदा हो जाता है कि उसे नदी कह पाना मुश्किल हो जाता है और यह बिल्कुल नाले जैसी स्थिति हो जाती है। अंततः यह गंदा पानी गंगा में जाकर मिल जाता है और गंगा की निर्मल धारा को दूषित और अपवित्र करता है ।सरकारें अगर शहर के सीवर का विकल्प तलाश ले किसी प्रकार की गंदगी नदी में न डालें तो वरुणा के अस्तित्व को बचाया जा सकेगा।