यात्रा पर मज़दूर
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सैलानी
घर में हैं
तीर्थयात्री
घर में हैं
सैनिक शिविर में
यात्रा पर
मज़दूर हैं
घर की यात्रा पर
दुनिया की
सबसे कठिन यात्रा पर
बदतर हाल में
कोरोना काल में
साहसिक सैलानी भी
मान रहे हैं
सैनिक भी
तीर्थयात्री
दिन-रात प्रार्थना कर रहे हैं
उनके लिए
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ज़िंदगी और मौत
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एक ज़िंदगी है
रोटियां खिलाती है
एक मौत है
आदमी को ही खा जाती है
बोटियां-बोटियां,
बिखरी पड़ी हैं
रेलवे लाइन पर रोटियां
ज़िंदगी ये रोटियां
किसी और को खिला देगी
किसी गाय-कुत्ते
चिड़ियों या चींटियों को
लेकिन उसे अब कई रात नींद नहीं आयेगी
कई दिनों तक वह भीगी रहेगी आंसुओं में
ज़िंदगी जिन्हें
खिलाते-खिलाते
नहीं थक रही है
मौत उन्हें खाते-खाते
आते-जाते
उठते-बैठते
सोते-जागते
ज़िंदगी के पक्ष में
संस्कृति का रवैया लचर है
बहुत कुछ
इसका भी असर है
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बारह घंटे
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आठ घंटे ही हाड़-मांस गला देने वाले थे
अब बारह घंटे जोते जायेंगे
जब पोषण आधा रह गया है
सेहत आधी
कृषि चौपट
किसकी करनी से
किसे भरनी
आठ घंटे
चाहे जितना काम था
आठ घंटे बाद
आराम था
जीवन का आराम
अब उसमें कपट !
अब पूरे बारह घंटे रहट !!
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केशव शरण
23-08-1960
प्रकाशित कृतियां-
तालाब के पानी में लड़की (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं )
न संगीत न फूल ( कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
कहां अच्छे हमारे दिन ( ग़ज़ल संग्रह )
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