नवेन्दु उन्मेष
जब देश में राजे महाराजे हुआ करते थे तब उनके राजभवन में कोपभवन की
व्यवस्था हुआ करती थी। रानियां जब महाराजा से लड़-भिड़ लेती थी तब कोपभवन
में चली जाती थीं। उस कोपभवन से वे महीनों बाहर नहीं आती थी। तब राजा को
उन्हें मनाने के लिए कोपभवन के दरवाजे पर जाकर दस्तक देना पड़ता था। बाहर
आने पर महाराजा उन्हें मनाया करते थे। तब रानियों के कोपभवन के दिन खत्म
हो जाते थे। इसके बाद रानियां महाराजा को प्रेम से गले लगाती थी और कहती
थीं-स्वामी आप महान हैं। आपके प्यार से मैं अभिभूत हुई।
अब जबकि देश में लोकतंत्र हैं तो राजे-महाराजे तो रहे नहीं। महारानियां
भी नहीं रहीं। इसी के साथ महारानियों का कोपभवन भी खत्म हो गया। कई
रजवाड़ों में तो अब कोपभवन दर्शनीय स्थल के रूप में जाने जाते हैं।
लोकतंत्र में जब सभ्यता आगे बढ़ी तो प्रेम का एक नया दौर शुरु हुआ जिसे
वैलेंटाइन कहते हैं। इस बीमारी के मरीज पार्क और माल में एक-दूसरे से
गलबहियां करते हुए मिलते हैं। वे एक दूसरे को हैप्पी वैलेंटाइन कह कर
संबोधित करते हैं। अपने प्यार को परवान चढ़ाने के लिए साल में एक बार
वैलेंटाइन डे भी मनाते हैं। जब प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्यार में कोई खटपट
हो जाती हैं तो वे अपना मोबाइल स्वीच आफ कर लेते हैं। प्रेमिका का मोबाइल
बंद हो जाने पर प्रेमी का दिल उसी तरह बैठ जाता है जैसे रानी के कोपभवन
में जाने पर राजा का बैठ हो जाता था। उस दौर में मोबाइल तो थे नहीं कि
महाराजा महारानी को मोबाइल पर काल करता और पूछता कि तुम कोपभवन में क्यों
बैठी हो।
कई माह से अब वैलेंटाइन के भी दिन लद गये हैं। प्रेमी-प्रेमिका का पार्क
और माल जाना बंद हैं। आखिर वे कब तक मोबाइल पर चिपके रहकर अपने प्यार का
इजहार करते रहेंगे। इससे जाहिर है इनदिनों प्रेमी-प्रेमिका क्वारंटाइन
में हैं। जब देष में सभ्यता और आगे बढ़ गयी है तो लोग वैलेंटाइन को छोड़कर
क्वारंटाइन हो रहे हैं। पार्क और माल में जाकर वैलेंटाइन डे मनाने वाले
अकसर वैसे लोग होते थे जो वैलेंटाइन को समझते थे लेकिन क्वारंटाइन में
जाने वालों में नेता, अभिनेता, अफसर, मजदूर, अनपढ़-गंवार सभी शामिल हैं।
इससे जाहिर होता है कि क्वारंटाइन समाजवादी सुधार केंद्र हो गया है। जिस
व्यक्ति में कहीं कोई सुधार के लक्षण नजर नहीं आते उसे सुधारने के लिए
क्वारंटाइन सेंटर में भेजा जाता है। इस सुधार केंद्र में जाने वालों में
मियां, बीवी और बच्चे तक शामिल होते हैं।
अगर किसी प्रेमी-प्रेमिका को क्वारंटाइन में भेज दिया जाता है तो कई
दिनों तक वह वैलेंटाइन को भूल जाता है। हालांकि यह एक ऐसा केंद्र है जहां
जाने से हर कोई डरता है। यहां न तो पुलिस के डंडे चलते हैं और न प्रेम का
इजहार होता हैं। बस एक मात्र काम सुधार होता है। आदमी जब क्वारंटाइन
केंद्र में रहकर सुधर जाता है तो उसे सरकारी अफसर फूलों की माला पहनाकर
और तालियां बजाकर घर के लिए ऐसे विदा करते हैं जैसे कोई अपनी बेटी विदा
कर रहा हो। घर वापस आने वाले वैलेंटाइन के मरीज का गांव या मुहल्ले के
लोग स्वागत नहीं करते, लेकिन क्वारंटाइन से आने वाले लोगों का स्वागत खूब
करते हैं। वैलेंटाइन का मरीज प्रेम का भूखा होता है तो क्वारंटाइन का
मरीज पेट का। उसे अपने भविष्य की चिंता सताती है और अपने परिवार की भी।
नवेन्दु उन्मेष
शारदा सदन
इन्द्रपुरी मार्ग-एक
रातू रोड, रांची-834005
झारखंड
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