राहुल मिश्रा की कविताः स्थिति सामान्य हो रही है!

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मधुशाला खुलने लगी है
शराब मिलने लगी है
लोग बहकने लगे हैं
बाज़ार चहकने लगे हैं,

जनता आत्मनिर्भर हो रही है
स्थिति सामान्य हो रही है!

दो का चार होने लगा है
धंधा-व्यापार होने लगा है
महकमे खुल चुके हैं
घड़ियाली आंसू धुल चुके हैं
पारदर्शिता तकरीबन धुँधला उठी है
हाक़िमों की हथेली खुजला उठी है,

सियासत नफ़रतें बो रही है
स्थिति सामान्य हो रही है!

मिडल क्लास सम्मोहित है
गरीब- मज़दूर तिरोहित है
लोगों का मरना आम हो चला है
समूचा तंत्र नाकाम हो चला है
मीडिया हकीकत से बेतरह अंजान है
विपक्ष यथावत आलोचनायमान है,

सरकार लगभग सो रही है
स्थिति सामान्य हो रही है!

सड़कें वाहनों से लबालब हैं
फ़िज़ाओं में धूल-धक्कड़-धुआं सब हैं
शहरों से हिमालय की चोटियां अब नहीं दिखतीं
नदी की साफ़ तलहटी में मछलियाँ अब नहीं दिखतीं
प्रदूषण का लेवल फिर से बढ़ गया है
मगर सेन्सेक्स अलबत्ता चढ़ गया है,

हवा दहाड़ें मारकर रो रही है
स्थिति सामान्य हो रही है!

©️ राहुल मिश्रा 

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