कोरोना महामारी ने इस विश्व पूंजीवादी व्यवस्था के सभी अंतर्विरोधों को स्पष्ट कर दिया है

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रितेश विद्यार्थी
देश भयानक आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे खतरनाक दौर में कोरोना वायरस ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया है। कोरोना ने दुनिया में पूंजीवादी व्यवस्था की हकीकत को बेनकाब कर के रख दिया है। कोरोना के बाद सच में ये दुनिया बहुत बदल जाएगी। कोरोना महामारी ने इस विश्व पूंजीवादी व्यवस्था के सभी अंतर्विरोधों को स्पष्ट कर दिया है। भारत सहित तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाएं जो पहले से डांवाडोल थीं, कोरोना के समय में और भी गहरे संकट में फंसती हुई दिखाई दे रही हैं। भारत के करीब 2 करोड़ लोग विदेशों में काम करते हैं। जो कि कोरोना के बाद निश्चित तौर पर बड़े पैमाने पर नौकरी से हटाए जाएंगे और मजबूरन लौटकर भारत आएंगे। क्योंकि भारतीयों को सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले देश अमेरिका और अरब देशों की हालत खुद ही बहुत खराब है।
2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हवाई चप्पल वालों को हवाई जहाज में बैठाने की बात करते थे। इस देश की मेहनतकश जनता की स्थिति को नजरअंदाज करके नरेंद्र मोदी ने अचानक से लॉक डाउन करके सभी लोगों की, खासतौर पर मेहनतकशों की ज़िंदगी को नर्क बना दिया है। कोई सूरत से, कोई मुम्बई से, कोई बेंगलुरु से, कोई लुधियाना से तो कोई दिल्ली से पैदल ही हजारों किलोमीटर की यात्रा तय कर अपने घर यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, आदि राज्यों में पहुंचने के लिए निकल गया है। हजारों मजदूर भूखे पेट, खाली जेब कोई अपने रिक्शे से, कोई सायकिल से तो कोई गोद में बच्चा लेकर, तो कोई अपने बूढ़े माँ-बाप को कंधे पर बैठाकर अपने- अपने गंतव्य की ओर निकल पड़ा है। आये दिन मजदूरों के मरने की खबरें आ रही हैं। कहीं भूख से, कहीं पैदल चलने के थकान से, कहीं पैदल चलते हुए ट्रक से कुचल जाने से, तो कहीं दर्जन मजदूरों का रेल की पटरी पकड़ कर घर जाने के क्रम ट्रेन से कटकर। ट्रेन से कटने के बाद घटनास्थल पर उनके मांस व खून के अलावा सूखी रोटियां बिखरी पड़ी थीं। जो हृदयविदारक स्थितियों को बयां कर रही थीं। मजदूर ट्रेन की पटरी पकड़ कर इसलिये जा रहे थे क्योंकि सड़क के रास्ते पुलिस उन्हें जाने नहीं दे रही है, उल्टे पीट रही है।
लॉक डाउन के बहाने सरकार देश को पुलिस और मिलिट्री स्टेट बनाने की प्रैक्टिस कर रही है। कई राज्य सरकारों ने तो अपने घर लौट रहे मजदूरों को गाड़ी में वापस बैठाकर वहीं पहुंचा दिया जहां से वो लौट रहे थे। भारत में रोजगार की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य गए प्रवासी मजदूरों की संख्या करोड़ो में है। क्योंकि तमाम राज्यों में रोजगार का कोई साधन नहीं है। लेकिन केन्द्र सहित तमाम राज्यों की सरकारों को उनकी चिंता नहीं है। जनता की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा बेहद गरीब लोगों के खाते में 500 रुपये डालने की घोषणा हुई, तो इस 500 जैसे मामूली रकम के लिए लोग बैंकों के सामने घंटों लाइन लगाकर खड़े रहे। इतनी महंगाई में 500 रुपये की क्या औकात है आप समझ सकते हैं। लेकिन तानाशाह नरेंद्र मोदी ताली-थाली बजवाकर व मोमबत्ती जलवाकर अपनी आवाज का असर चेक कर रहा है। उत्तरप्रदेश सरकार ने अगले 3 सालों तक के लिए राज्य में सभी श्रम कानूनों को स्थगित कर दिया है। ताकि उद्दोगपति मनमाने ढंग से मजदूरों का शोषण करके अपना उत्पादन बढ़ा सकें।
आज गरीब आदमी कोरोना से कम भुखमरी और अन्य वजहों से ज्यादा मर रहा है। जहाँ सारी दुनिया में कोरोना का इलाज डॉक्टर कर रहे हैं, वहीं भारत में पुलिस कर रही है। कोरोना में सरकार की नीतियों ने मेहनतकशों की स्थिति को भयावह बना दिया है। भूख से मरने वालों के जो आंकड़े लॉक डाउन के बाद आने वाले हैं वो पूरे देश को हिलाकर रख देंगे। सीएमआई कि एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 45 करोड़ लोग रोज ब रोज काम करते हैं। देश के 90 फीसदी मजदूर असंगठित क्षेत्र में हैं और ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते हैं। इनमें से अधिकांश वो मजदूर हैं जो हमारे गांवों में व्याप्त अर्धसामंती और मनुवादी व्यवस्था की वजह से और अपना पेट न भर पाने की वजह से मजबूरन शहर आये थे।
‘सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी’ के अनुसार मई तक भारत में बेरोजगारी दर अब तक का सर्वाधिक 27% को पार कर जाएगा। लॉक डाउन के पिछले 2 महीने में 12 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। कर्नाटक सहित कई राज्यों में उद्योगपतियों के दबाव में मजदूरों को पैदल भी अपने घर आने से रोका जा रहा है। सूरत सहित तमाम शहरों में मजदूरों पर लाठीचार्ज किया जा रहा है। ये सब इसलिए हो रहा है कि उद्योगपतियों के कारखानों को चलाने के लिए सस्ते मजदूरों की संख्या में कोई कमी नहीं होने पाए। अभी कल-परसों में ही आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम शहर में साउथ कोरिया की केमिक फैक्ट्री एल जी पॉलिमर्स में गैस रिसाव होने से हजारों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया और दर्जनों लोग मारे गए। अभी 2-4 दिन पहले ही लॉक डाउन में ढील दिए जाने के बाद इस फैक्ट्री को खोला गया था। इन मजदूरों के मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा?
2022 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना दिखाने वाली मोदी सरकार अब जनता के सामने ही कटोरा लेकर खड़ी है। मेहनतकशों पर इतना जुल्म व मेहनतकशों का इतना अपमान और महा पलायन पहले शायद ही कभी हुआ हो। मजदूर अपने घर लौटने के लिए क्या-क्या नहीं कर रहे हैं। 18 मजदूर कंक्रीट मिलाने वाले मिक्सर ट्रक में छिपकर अपने घर के लिए निकल पड़े थे। जिन्हें बाद में पुलिस वालों ने पकड़ लिया था। एक जगह रात में पैदल अपने घर जा रहे 8 मजदूरों को हाइवे पर ट्रक ने कुचल दिया। भूख- गरीबी, अपमान और मौत झेलते ये मजदूर लाखों की संख्या में आपको सड़कों पर पैदल चलकर अपने घर लौटते दिख जाएंगे। ये रेलें, ये बसें, ये जहाज सब कुछ इन मजदूरों ने बनाया है। लेकिन आज इस कठिन समय में कुछ भी इनका और इनके लिए नहीं है। भारत में हर साल 2.5 करोड़ मजदूर तैयार होते हैं। इनमें से अधिकांश ऐसे मजदूर हैं जो रोज कमाते और खाते हैं। एक दिन काम न मिले तो उनके सामने भोजन का संकट खड़ा हो जाता है। अफ्रीका के सर्वाधिक गरीब 26 देशों से भी ज्यादे गरीब लोग भारत के सिर्फ 8 राज्यों में रहते हैं।
भारत आज उसी स्थिति में पहुंच गया है जिस स्थिति में 1917 का रूस पहुंच गया था। हमारे देश में 6 करोड़ लोग भीख मांगते हैं, 6 करोड़ बच्चे बाल मजदूर हैं। इन्हीं बुरी परिस्थितियों में एक खबर ये भी है कि मुकेश अम्बानी एशिया के सबसे धनी व्यक्ति बन चुके हैं। आज की भयानक और क्रूर परिस्थिति जनता और युवाओं को गहराई से यह एहसास करा रही है कि 1947 की आज़ादी एक नकली आज़ादी थी और देश में लोकतंत्र व संविधान का शासन एक ढकोसला मात्र है।

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