- विशद कुमार
8 अगस्त की रात करीब 8 बजे झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता, आदिवासियों व समाज के अन्य वंचित वर्ग के लिए काम करने वाले फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी की सूचना झारखंड ही नहीं पूरे देश में आग की तरह फैल गई। हुआ यह कि रांची के नामकुम थाना क्षेत्र के बगईंचा स्थित फादर स्टेन स्वामी के घर से दिल्ली से आयी एनआईए की टीम ने उनको गिरफ्तार कर लिया। बताया जाता है कि यह गिरफ्तारी भीमा कोरेगांव मामले में हुई है। गिरफ्तारी के बाद एनआईए की टीम ने उनको रात भर रांची स्थित अपने कार्यालय में रखा और सुबह 9 बजे प्लेन से उन्हें महाराष्ट्रा लेकर चली गई।
स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी को लेकर झारखंड आंदोलित होने लगा है। राज्य में कई जगहों पर इस गिरफ्तारी को लेकर विरोध प्रदर्शन होने लगे हैं।
स्वामी की गिरफ्तारी को लेकर आदिवासी समाज काफी आक्रोश देखा जा रहा है।
फादर की गिरफ्तारी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता एवं नरेगा वाच के संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं — ”भीमा कोरेगांव केस में एनआईए द्वारा फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी केद्र की तानाशाह सरकार की साज़िश का हिस्सा है। स्टेन स्वामी कई बार दोहरा चुके हैं कि भीमा कोरेगांव कार्यक्रम से उनका कोई संबंध नहीं रहा है। हम इस गिरफ्तारी की कड़ी शब्दों में निंदा करते हैं। स्टेन स्वामी झारखंड में विस्थापन के विरोध में आदिवासियों और वंचितों की हमेशा से आवाज बनते रहे हैं। 6000 से अधिक आदिवासियों को नक्सली के नाम पर फर्जी केस में फंसाया गया है उनकी लड़ाई लड़ रहे हैं। ग्राम सभा के अधिकारों को मजबूती से जन वकालत करते रहे हैं। आज केंद्र सरकार पूरी तरह कारपोरेट घरानों की मुट्ठी की कतपुटली बन गई है। कारपोरेट घरानों को आदिवासी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना है। इसमें स्टेन स्वामी जैसे आदिवासियों के पक्षधर बाधक बन रहे हैं। इसीलिए केंद्र की भाजपा सरकार ऐसे मुखर आवाज को दबाने के लिए ऐसी ओछी राजनीति कर रही है।”
वहीं कांग्रेस के पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री थियोडोर किडो कहते हैं — ”83 साल के इस सोशल एक्टिविस्ट को जो अपना पूरा जीवन आदिवासियों के हक—अधिकार के लिए लगा दिया, भाजपा सरकार ने उन्हें किसी दुभावना से ग्रसित होकर गिफ्तार करवाया है।” थियोडोर किडो कहते हैं — ”फादर स्टेन ने कभी भी ऐसा कोई भी गलत काम नहीं किया है, वे हमेशा सच के साथ खड़े रहे हैं। यही मोदी सरकार को पच नहीं रहा है। सबसे जरूरी बात यह है कि फादर 83—84 साल के हैं, उन्हें कई तरह की शारीरिक परेशानियां हैं। ऐसे उन्हें बेवजह परेशान किया जा रहा है। सरकार की यह तानाशाही कदम है जो मानवीय संवेदनाओं को तार तार कर रही है।”
फ्री लांसर, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के पूर्व सदस्य वाल्टर कंडुलना बड़े आक्रोश में कहते हैं — ”बिना वारंट के फादर की गिरफ्तारी व्यवस्था की तानाशाही दर्शाती है। फादर स्टेन स्वामी का भीमा कोरेगांव केस से दूर दूर का रिश्ता नहीं है। एक साल बाद इस मामले में फादर स्टेन की गिरफ्तारी, किसी बड़े साजिश का हिस्सा है। अगर स्वामी से पूछताछ ही करना था तो झारखंड में ही एनआईए के कार्यालय में किया जा सकता था। 83 साल के बीमार फादर को, वह भी इस कोरोना संक्रमण के काल में गिरफ्तार करके महाराष्ट्रा ले जाना समझ में नहीं आ रहा है।”
आदिवासी मामलों की जानकार दयामनी बारला कहती हैं — ”भीमा कोरेगांव केस के बहाने फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी, आदिवासी व दलित समूदाय के हक अधिकार के पक्ष में खड़ा रहने वालों को एक चेतावनी के तौर पर है, कि उनका भी यही हाल हो सकता है अगर वे सच का साथ नहीं छोड़ेंगे तो। लेकिन हम सच का साथ कतई नहीं छोड़ने वाले हैं और इस गिरफ्तारी की पूरजोर विरोध करते हैं। पूरे झारखंड में स्टेन स्वामी के पक्ष में और इस गिरफ्तारी के विरोध में आंदोलन किया जाएगा।”
फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाकपा-माले विधायक बिनोद सिंह कहते है — ”एनआईए द्वारा फादर स्टेन को उठा ले जाने की कार्रवाई की तीव्र भ्रत्सना करता हूं। बता दें कि फादर स्टेन को एनआईए की टीम 2 बार पूछ ताछ कर चुकी है। इसके बावजूद इस कोरोना काल में पूछताछ के लिए ले जाना बिल्कुल निंदनीय है। एक ऐसे बुजुर्ग जिनकी उम्र 83 वर्ष से भी ज्यादा हो चुकी हो उनके साथ पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित करना निहायत ही अमानवीय कृत्य है। लिहाजा हमारी मांग है कि फादर स्टेन की उम्र को देखते हुए तथा कोरोना काल की जटिलता को ध्यान में रखकर एनआईए अपनी दमनात्मक कार्रवाई पर रोक लगाए। फादर को बाइज्जत व सही सलामत वापस भेजे।”
बता दें कि मूल रूप से केरल के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टैन स्वामी करीब पांच दशक से झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। विशेष रूप से वे विस्थापन, कंपनियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट, विचाराधीन कैदियों और पेसा कानून पर काम करते रहे हैं। वे झारखंड के आदिवासियों सहित समाज के वंचित समुदायों के लिए काम करते रहे हैं।
बताना जरूरी होगा कि पिछले जुलाई 2018 में झारखंड की खूंटी पुलिस द्वारा पत्थलगड़ी आंदोलन मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता और विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के संस्थापक सदस्य फादर स्टेन स्वामी और कांग्रेस के पूर्व विधायक थियोडोर किड़ो सहित 20 अन्य लोगों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था।
वहीं 12 जुलाई 2019 को महाराष्ट्र पुलिस की आठ सदस्यीय टीम ने स्टेन स्वामी के घर पर छापा मारा था। और लगभग चार घंटों तक उनके कमरे की छानबीन की गई थी, उनके कंप्यूटर की हार्ड डिस्क और इंटरनेट मॉडेम जब्त कर लिया गया था। इसके पहले 28 अगस्त 2018 को भी महाराष्ट्र पुलिस ने स्टेन स्वामी के कमरे की तलाशी ली थी।
उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त 2019 को पुणे पुलिस ने देश के अलग-अलग हिस्सों में छापा मारकर कई एक्टिविस्टों और बुद्धिजीवियों को
पकड़ा गया था, यह कह कर कि इन लोगों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रची जा रही थी। लेकिन इस आरोप को एफआईआर में नहीं डाला गया। आरोपियों को अर्बन-नक्सल के तौर पर पेश किया गया। 24 जनवरी 2020 को केंद्रीय जांच एजेंसी एनआइए ने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया और एनआईए ने एफआइआर में 23 में से 11 आरोपियों को नामजद किया। जिनमें सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, शोमा सेन, महेश राउत, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्विस, आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा का नाम डाला गया है।
बता दें कि भीम कोरेगांव महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित छोटा सा गांव है। एक जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कपंनी की सेना ने बाजीराव पेशवा द्वितीय की बड़ी सेना को कोरेगांव में हरा दिया था। भीमराव आंबेडकर के अनुयायी इस लड़ाई को राष्ट्रवाद बनाम साम्राज्यवाद की लड़ाई नहीं मानकर, दलितों की जीत बताते हैं। उनके अनुसार लड़ाई में दलितों पर अत्याचार करनेवाले पेशवा की हार हुई थी। इसी परिप्रेक्ष में हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगांव में विजय स्तंभ के सामने जमा होते हैं। जिसे अंग्रेजों ने पेशवा को हराने वाले जवानों की याद में बनाया था।
बता दें कि वर्ष 2018 में युद्ध के 200 वें साल का जश्न मनाने के लिए भारी संख्या में दलित समुदाय के लोग जुटे थे। जश्न के दौरान दलित और मराठा समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गयी थी। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी, जबकि कई लोग घायल हो गये थे। उस वक्त दलित और बहुजन समुदाय के लोगों ने एल्गार परिषद के नाम से शनिवार वाड़ा में जनसभाएं कीं, जिसके बाद यहां हिंसा भड़क उठी। आरोप है कि भाषण देनेवालों में स्टेन स्वामी भी थे। जबकि स्टेन स्वामी ने अपनी उपस्थिति को नकार चुके हैं। इस मामले में 23 आरोपी हैं, जिनमें से 12 की गिरफ्तारी हो चुकी है।