* विशद कुमार
डा. मदनमोहन झा केवल एक कुशल आईएएस अधिकारी ही नहीं थे बल्कि एक नेक इंसान, बुद्धिमान, महान शिक्षाविद, सरल एवं कुशल प्रशासक थे। उनकी शिक्षा के प्रति समर्पण और आदर्शों को कोई डिगा नहीं सका है। उनके जीवन का एक ही मक़सद था बिहार में समावेशी शिक्षा प्रणाली लागू हो जहाँ चपरासी का बेटा और जिला कलेक्टर का बेटा एक साथ गाड़ी में बैठकर एक ही स्कूल में जाकर पढ़ाई कर सके। शिक्षा मित्र, पचास हजार से अधिक उच्च शिक्षकों की बहाली और समावेशी शिक्षा पर स्कूल विथआउट वॉल पुस्तक लिखना शिक्षा के प्रति समर्पण और धनबाद से कोयला मजदूरों को अवैध सूदखोरों से निजात दिलाना और कोयला माफिया राज खत्म करना उनके कुशल प्रशासन का उदाहरण है।
ऑनलाइन वेबिनार द्वारा “शिक्षा और विद्या” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर टाटा मोटर्स के ट्रेनिंग डिपार्टमेंट के पूर्व जी एम एवं एक्स एल आर आई के गेस्ट लेक्चरर चंद्रेश्वर खां जी ने कहा कि डा. मदनमोहन झा केवल एक कुशल आईएएस अधिकारी ही नहीं थे बल्कि एक नेक इंसान, बुद्धिमान, महान शिक्षाविद, सरल एवं कुशल प्रशासक थे। उनकी शिक्षा के प्रति समर्पण और आदर्शों को कोई डिगा नहीं सका है। उनके जीवन का एक ही मक़सद था बिहार में समावेशी शिक्षा प्रणाली लागू हो जहाँ चपरासी का बेटा और जिला कलेक्टर का बेटा एक साथ गाड़ी में बैठकर एक ही स्कूल में जाकर पढ़ाई कर सके। शिक्षा मित्र, पचास हजार से अधिक उच्च शिक्षकों की बहाली और समावेशी शिक्षा पर स्कूल विथआउट वॉल पुस्तक लिखना शिक्षा के प्रति समर्पण और धनबाद से कोयला मजदूरों को अवैध सूदखोरों से निजात दिलाना और कोयला माफिया राज खत्म करना उनके कुशल प्रशासन का उदाहरण है।

साझा संवाद द्वारा मनायी गयी डॉ. मदनमोहन झा की 13वीं पुण्यतिथि
इस परिचर्चा में अपर अनुमंडल अधिकारी (ग्रामीण कार्य विभाग, बिहार सरकार) अशोक कुमार ने कहा किसी भी व्यक्ति की प्रथम पाठशाला उसका परिवार होता है, और मां बाप को पहले गुरु होते है। आज शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है और उच्च शिक्षा पाने वाले 10 प्रतिशत से कम छात्रों को रोजगार मिलती है, जबकि अपना पारंपरिक कौशल सीखने वाला कोई भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं होता है।
इस परिचर्चा पर अपनी बातें रखते हुए आर टी एक्टिविस्ट, साहित्यकार एवं कृषक कार्यकर्ता संतोष कुमार ने कहा कि मैनेजमेंट की पढ़ाई केवल अपनी कंपनी को मुनाफ़ा और मालिक को खुश रखने के लिए होती है, जबकि उनके द्वारा अनेकों मजदूरों की नौकरियां छीन ली जाती है। उन्होंने कहा कि मुझे अनेकों बार मैनेजमेंट के विद्यार्थियों को व्याख्यान देने का अवसर प्राप्त हुआ और हर बार मैं विद्यार्थियों से एक सवाल करता हूँ, कि आप में से कौन है जो बंद पड़ी कंपनी को मुनाफा कमाने वाला कंपनी बना दे, तो उनके पास जवाब नहीं होता है। दरअसल पहले की जो शिक्षा थी, वो कौशल एवं सामाजिक सोच पर आधारित होती थी, जो गाँव में घर घर रोजगार प्रदान करती थी, और आज वो सिर्फ कुछ पूंजीपतियों तक सीमित हो गई है। जो बेलचा, खुर्पी, बाल्टी, तेल पिरोना, चावल, गेंहू, नामक आदि गांव के लोगों के द्वारा की जाती थी अब वो नामी कंपनियों द्वारा की जाती है।
परिचर्चा में मुख्य वक्ता युवराज दत्ता पी जी कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीतिक विशेषज्ञ एवं कॉलमनिस्ट ने कहा कि शिक्षा वो अस्त्र है, जिसकी सहायता से बड़ी सी बड़ी कठिनाइयों का सामना हम कर सकते हैं। वह शिक्षा ही होती है जिससे हमें सही-गलत का भेद पता चलता है। इसकी अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, एक वक़्त की रोटी ना मिले, चलेगा। किंतु शिक्षा जरुर मिलनी चाहिए। शिक्षा पाना प्रत्येक प्राणी का अधिकार है। शिक्षा एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो हर किसी के जीवन में बहुत उपयोगी है। शिक्षा वह है जो हमें पृथ्वी पर अन्य जीवित प्राणियों से अलग करती है। यह मनुष्य को पृथ्वी का सबसे चतुर प्राणी बनाती है। यह मनुष्यों को सशक्त बनाती है और उन्हें जीवन की चुनौतियों का कुशलता से सामना करने के लिए तैयार करती है।
महात्मा गांधी के अनुसार, “सच्ची शिक्षा वह है जो बच्चों में आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक पहलुओं को उभारती है और प्रेरित करती है।” इस तरीके से हम सार के रूप में कह सकते हैं कि उनके मुताबिक़ शिक्षा का अर्थ सर्वांगीण विकास था। अंत में उन्होंने कहा कि शिक्षा का बाजारीकरण एवं व्यवसायीकरण रोकना होगा और सुलभ बनाने के लिए देश में शैक्षिक जागरूकता फैलाने की जरूरत है ताकि राज्य एवं केंद्र सरकारों पर समावेशी शिक्षा को लागू करने पर बाध्य किया जा सके।
इस परिचर्चा में मुख्य रूप से अभिषेक राज, बिन्नी आज़ाद, स्वेता राज, पुरुषोत्तम विश्वनाथ, अबुल आरिफ़, बृहस्पति सरदार, माधुरी शर्मा, श्रुति कुमारी, डेमका सोय, हरेंद्र प्रताप सिंह, मोती चंद, ईम्दाद खान, इश्तेयाक जौहर, लक्ष्मी पुर्ती, महेश्वर मंडी, आशुतोष महतो, विजय महतो आदि लोग उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन इश्तेयाक अहमद जौहर संयोजक – साझा संवाद ने दिया