उर्दू के मशहूर आलोचक और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा.अली अहमद फातमी का लूकरगंज स्थित मकान जिला प्रशासन और विकास प्राधिकरण ने ज़मींदोज़ कर दिया। यही नहीं, पास में स्थित उनकी बेटी और 6 या 7 निवासियों के घर भी प्रशासन ने गिराये हैं। फातमी साहब,उनकी बेटी व अन्य सभी परिवार अब सड़क पर हैं। सभी का घर गिराने के लिए सिर्फ एक दिन पहले एक नोटिस मिली और बिना मौका दिए मकान ध्वस्तीकरण की निर्मम कार्रवाई कर दी गयी। हरदिल अज़ीज़ फातमी साहब पूरे देश में अपने साहित्यिक अवदान के लिए जाने जाते हैं। उर्दू आलोचना में उनकी पुस्तकों का विशेष महत्व है। इलाहाबाद हिंदी-उर्दू साहित्य की समृद्ध परंपरा के लिए जाना जाता है। मौजूदा समय में फातमी साहब एक अहम शख्सियत के रूप में हमारे सामने हैं जिन पर इलाहाबाद की जनता भरोसा करती और उन्हें अपना लेखक मानती है। हमें फातमी साहब पर गर्व है। यह भी गौरतलब है कि वे अब बुजुर्ग भी हो चले हैं और उनकी पत्नी काफी बीमार रहती हैं। ऐसे हालात में वे और उनकी बेटी इस वक्त सड़क पर आ गये हैं। शासन-व्यवस्था की इस संवेदनहीन कार्यशैली से समूचा साहित्य-जगत हतप्रभ है।इस दौर में लेखकों,संस्कृतिकर्मियों,महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती का दौर चल ही रहा है। लगता है जानबूझकर इन्हीं कारणों से फातमी साहब को भी इस हुकूमत ने निशाने पर लिया है। बहरहाल, सरकार की इस कारगुजारी की जितनी भी निन्दा की जाय कम है। हम सभी लेखक, बुद्धिजीवी और संस्कृतिकर्मी सरकार से मांग करते हैं कि प्रो.अली अहमद फातमी,उनकी बेटी तथा अन्य सभी प्रभावित परिवारों को मुआवजा देते हुए उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाय, वरना हम सभी आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।
संजय श्रीवास्तव
महासचिव,प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र.
संतोष डे
महासचिव,इप्टा-उ.प्र.
सुहैब शेरवानी
महासचिव, प्रलेस(उर्दू)
नलिन रंजन सिंह महासचिव,जनवादी लेखक संघ,उ.प्र.
कौशल किशोर
कार्यकारी अध्यक्ष, जन संस्कृति मंच,उ.प्र.
अनिल रंजन भौमिक महासचिव, समानांतर इंटिमेट थिएटर,इलाहाबाद