चिकित्सकीय लापरवाही ने ली नितेश की जान, ठीक दो माह पहले पिता भूखल घासी की भूख से हुई थी मौत

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विशद कुमार

झारखंड के बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर है कसमार प्रखंड अंतर्गत सिंहपुर पंचायत का करमा शंकरडीह टोला। अगल बगल में बसे इस दो टोले में लगभग 35 घर हैं दलितों के। इसी गांव के भूखल घासी की मौत 6 मार्च 2020 को हो गई थी। उसे लगातार चार दिनों से खाना नहीं मिला था। अब उसी काब20 वर्षीय बेटा नितेश घांसी की मौत ठीक दो माह बद 6 मई को बोकारो के सदर अस्पताल में हो गई।
मृतक नितेश घांसी की मां रेखा देवी ने बताया कि उनके पति भूखल घांसी की मौत के बाद स्थानीय प्रशासन व कई सामाजिक संगठनों द्वारा राशन व नगदी की सहायता मिली थी। इधर आपूर्ति विभाग द्वारा दो माह अप्रैल व मई माह का राशन उपलब्ध किया गया। परिवार के प्रत्येक सदस्य को दो माह का दस दस किलो चावल भी स्थानीय डीलर द्वारा मिला है। घर में खाने के लिए अनाज की कोई कमी नहीं है। घर में स्व. भूखल की पत्नी रेखा देवी के अलावा बड़ा पुत्र गुजरा घांसी, उसकी पत्नी रीता देवी, उनका दो वर्षीय पुत्र रितिक घांसी, तीन बेटीयों में विवाहिता प्रियंका देवी व छोटी बेटी राखी कुमारी व मोनिका कुमारी है। राखी कुमारी की हालत भी गंभीर है।

बता दें कि स्व. भूखल घासी के पुत्र नितेश घासी (20 वर्ष) की मौत 6 मई को सदर अस्पताल बोकारो में हो गई। दोपहर को एम्बुलेंस से मृतक नितेश का शव गांव आया, लेकिन परिजनों ने शव लेने से इनकार कर दिया। मृतक नितेश घासी की मां रेखा देवी बताया कि 22 अप्रैल 2020 को नितेश को सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उस समय उसे मामूली बुखार की शिकायत थी। कोई गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं था। अस्पताल में भर्ती होने के बाद 12 दिनों में आखिर ऐसी कौन सी बीमारी हुई कि उसे बचाया नहीं जा सका। परिजनों का आरोप है कि अस्पताल के चिकित्सकों एवं चिकित्सा कर्मीयों की लापरवाही के कारण नितेश की मौत हुई है। पिता की मौत के दो माह बाद ही पुत्र की मौत से इस परिवार में दुःख का पहाड़ सा टूट पड़ा है। नितेश पेटरवार में एक होटल में ग्लास प्लेट धोने का कार्य करता था।


परिजनों द्वारा शव नहीं लिए जाने की सूचना पाकर कसमार अंचलाधिकारी राजीव कुमार, जरीडीह इंस्पेक्टर मो रुस्तम, थाना प्रभारी राजेंद्र चौधरी, एएसआई उमेश सिंह, चिकित्सा प्रभारी डॉ नवाब आदि मौके पर पहुंचे एवं परिजनों से बातचीत की। परिजन काफी आक्रोशित थे। परिजनों ने कहा कि जब तक मौत का कारण स्पष्ट नहीं होगा, वे लोग शव को स्वीकार नहीं करेंगे। अधिकारियों के समझाने-बुझाने एवं पारिवारिक योजना का लाभ देने की घोषणा के बाद परिजनों ने शव लिया। सीओ ने तत्काल 10 हजार रु नकद राशि दी एवं शेष राशि बैंक खाता में देने का आश्वासन दिया।
भूखल घासी की बेटी राखी कुमारी (12 वर्ष) की हालत भी गंभीर है। वह भी नितेश के साथ ही 22 अप्रैल को सदर अस्पताल में भर्ती हुई थी। लेकिन, नितेश की मौत के बाद उसे भी घर भेज दिया गया है। उसके शरीर में इंफेक्शन भी हो गया है। परिजनों ने बताया कि 22 अप्रैल को नितेश व राखी को सदर अस्पताल बोकारो में भर्ती होने के बाद उनकी देखरेख के लिए दो लोग (नितेश के जीजा विष्णु घासी एवं नाना चलु घासी) अस्पताल में अटेंडेंट के रूप में गए थे। किंतु एक अटेंडेंट को ही अस्पताल में भोजन मिल पाता था। लॉकडाउन के कारण बाहर भी कहीं खाने की व्यवस्था नहीं थी। विष्णु घासी ने बताया कि इस परिस्थिति में एक अटेंडेंट को मिलने वाले भोजन में ही दोनों को खाकर रहना पड़ता था।

बताते चलें कि करमा शंकरडीह टोला के लगभग भूमिहीन इन दलितों के पास रोजगार का कोई स्थाई साधन न होने के कारण बरसात को छोड़कर दूसरे अन्य मौसम में ये लोग रोजगार के लिए देश के अन्य राज्यों मेंं पलायन करने को मजबूर होते हैं। जहां बरसात में ये लोग गांव के आस—पास के अन्य किसानों के खेतों में मजदूरी करते हैं, वहीं अन्य मौसम में हाथ—आरी से लकड़ी चीरने का काम, मिट्टी काटने का काम तथा आस—पास के क्षेत्रों में मकान निर्माण में दैनिक मजदूरी का काम करते हैं, वहीं कुछ लोग अन्य राज्यों में पलायन कर जाते हैं। मौत से पहले भूखल घासी उर्फ लुधू घासी (45 वर्ष) भी एक साल पहले तक बैंगलोर में काम करता था। अत: एक साल पहले उसके मां—पिता का एक सप्ताह के अंतराल में देहांत हो गया। वह बैंगलोर से घर आया। सामाजिक रीति—रिवाज के अनुसार उसे ही मुखाग्नि देनी पड़ी। जब वह बैंगलौर से लौटकर आया था तब उसकी तबियत ठीक नहीं थी। सामाजिक रीति रिवाज के चक्कर में उसे रोज नहाने और बिना वस्त्र के रहने के कारण उसकी तबियत और बिगड़ती चली गई। इस सामाजिक रीति रिवाज के चक्कर में उसकी आर्थिक स्थिति भी काफी कमजोर हो गई, तथा समुचित इलाज नहीं होने के कारण वह शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो गया तथा पुन: रोजगार के लिए बैंगलौर नहीं जा सका। वह गांव में ही कभी—कभी दैनिक मजदूरी कर लिया करता था। पत्नी रेखा देवी भी इधर उधर कुछ काम करने लगी थी, बावजूद घर की बदहाली बरकरार रही, खाने के लाले पड़ने लगे। भूखल घासी में काम करने क्षमता पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी। एक तो बीमार, उपर से पैसे के अभाव में चार दिनों तक घर में चुल्हा नहीं जला था, मतलब भूखल घासी को लगातार चार दिनों से खाना नहीं मिला था। अंतत: वह 6 मार्च 2020 को उसकी मौत हो गई।

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