अंकिता हत्याकांड – पूँजीवादी व्यवस्था का विद्रूप चेहरा फिर से हुआ बेनक़ाब

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अंकिता हत्यकांड-पूँजीवादी व्यवस्था का बिद्रूप चेहरा फिर से हुआ बेनक़ाब

अंकिता भंडारी, उम्र महज 19 साल। गरीब घर की बेटी, मात्र 10 हज़ार रुपये माह में अपने घर से दूर उत्तराखंड में बीजेपी नेता पुलकित आर्य (भाजपा यूपी प्रभारी विनोद आर्य का बेटा) के रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट का काम करने लगी थी, लेकिन उसकी पहली सैलरी देने से पहले ही पुलकित आर्य ने अपने रिजॉर्ट के अन्य दो लोगों के साथ मिलकर अंकिता को नहर में डुबोकर उसकी हत्या कर दी। वजह, अंकिता द्वारा रिजॉर्ट मालिक द्वारा देह व्यापार करने के दवाब के आगे न झुकना।

परिवार की ख़राब आर्थिक स्थिति के कारण अंकिता को इंटरमीडिएट के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और उसने काम करना शुरू कर दिया। अंकिता के पिता वीरेंद्र भंडारी चौरास बांध पर निजी सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते थे लेकिन कुछ साल पहले उनकी नौकरी छूट गयी थी। परिवार में एकमात्र कमाने वाली सदस्य अंकिता की माँ सोनी भंडारी हैं, जो एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम करती हैं।

अंकिता हत्याकांड से जुड़े वनन्तरा रिसार्ट का विवादों से पुराना नाता रहा है। इस रिसार्ट से एक युवती पहले भी रहस्यमय परिस्थिति में लापता हुई थी। जिसके खिलाफ रिसार्ट स्वामी ने रिसार्ट के पैसे लेकर भागने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था।

उत्तराखंड सहित देश भर में रिजॉर्ट-होटलों में देह व्यापार धड़ल्ले से चल रहा है। गरीब घर की बेटियों को दवाब डालकर, बहला फुसलाकर या फिर पैसे का लालच देकर इस दलदल में धकेला जाता है, उनके मना करने पर अंकिता हत्याकांड जैसी वारदातें सामने आती हैं।

समाज में व्याप्त पितृसत्ता के सड़े-गले मूल्य मान्यतायें व उस पर बजबजाती हुई पूँजीवादी उपभोक्तावादी संस्कृति का मुलम्मा इस समाज को महिलाओं के लिये असुरक्षित स्थान बना देता है, महिलाओं पर हवस का शिकार होने का ख़तरा हमेशा बना रहता है।

उत्तराखंड में तमाम जनपक्षधर लोग व महिला संगठन अंकिता को न्याय दिलाने के लिये ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जनता के आक्रोश के डर से आनन-फ़ानन में स्थानीय प्रशासन द्वारा उस रिजॉर्ट के एक हिस्से को बुलडोज़र से गिरा दिया गया लेकिन लोगों को शक है कि यह कार्यवाही उस रिजॉर्ट से सबूत मिटाने के लिये किया गया है, क्योंकि जाँच होने पर कई प्रभावशाली लोगों की असलियत सामने आने का ख़तरा बना हुआ था। पुलिस कस्टडी में ही ग़ुस्साए लोगों द्वारा आरोपियों की पिटाई करवाना, उनके कपड़े फाड़ना आदि भी इस मसले पर लोगों का ग़ुस्सा शांत करने की मंशा से की गयी सोची समझी कार्यवाही लगती है।

क्या हो समाधान?
तात्कालिक तौर पर इस तरह की बीमारियों से समाज को बचाने के लिये पर्यटन उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया जाये, महिलाओं को हवस का शिकार बनाने या बनवाने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानूनी कार्यवाही हो, इस तरह के अपराधों में लिप्त प्रभावशाली व्यक्तियों को सत्ता व राजनैतिक पार्टियों द्वारा संरक्षण दिये जाने का मुखर विरोध हो, समाज में अंधविश्वासों, पित्रसत्तात्मक मूल्यों व उपभोक्तावादी संस्कृति के ख़िलाफ़ व्यापक जन-चेतना अभियान चलाये जायें, सभी महिलाओं-पुरुषों को सम्माजनक रोज़गार उपलब्ध करवाये जायें।

उक्त कदम भी इस पूँजीवादी व्यवस्था के अंदर स्वतः नहीं उठाये जाने वाले हैं, हाँ! जन आंदोलन खड़ा करने पर यह ज़रूर सम्भव है।

यह भी स्पष्ट है कि इस सामाजिक बीमारी का मुकम्मल हल तो इस पूँजीवादी व्यवस्था के ख़ात्मे व समाजवादी व्यवस्था के स्थापना से ही सम्भव है। जहाँ लड़कियों की देह को नोच कर अय्याशी करने वालों के लिये कोई जगह नहीं होगी। सभी महिलाओं-पुरुषों को सम्माजनक रोज़गार की गारण्टी सरकार द्वारा दी जायेगी।पर्यटन उद्योग सहित सभी उद्योग धन्धे जनता की सामूहिक सम्पत्ति होगी, इन्हें कोई मुनाफ़ाख़ोर अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिये इस्तेमाल नहीं कर पायेगा। ग़ौरतलब है कि समाजवाद के दौर में सोवियत संघ से वेश्यावृती पूरी तरह ख़त्म कर दी गयी थी, लेकिन वहाँ पर पूंजीवाद के पुनर्स्थापना होते ही ये बीमारियाँ फिर से पनप गयी।

—धर्मेन्द्र आज़ाद

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