विशद कुमार
पिछले 15 जून को सीआरपीएफ के जवानों ने पश्चिमी सिंहभूम जिले के खूंटपानी प्रखंड अंतर्गत चिरियाबेड़ा (अंजेडबेड़ा) गाँव के लगभग 20 लोगों को पीटा था, जिनमें से 11 को बुरी तरह से पीटा गया था एवं इनमें से तीन को गंभीर चोटें आईं।
जिसकी खबर दैनिक अखबारों में 17 जून को आई जिसमें लिखा गया था कि ग्रामीणों पर “सशस्त्र माओवादियों” ने हमला किया और ग्रामीणों की जमकर पिटाई की, जिससे कई ग्रामीण बुरी तरह जख्मी हुए हैं।
इस खबर के बाद जब कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यहां का दौरा किया और इस हमले की हकीकत जानने की कोशिश की, तो उन्हें जो जानकारी मिली वह अखबारों की खबरों पर कई सवाल खड़े किए। कार्यकर्ताओं को ग्रामीणों ने बताया था कि सीआरपीएफ के जवानों ने उन पर हमला किया था, न माओवादियों ने। यह हमला तब हुआ जब कुछ ग्रामीण अपनी झोपड़ियों की छतों पर खपरैल ठीक कर रहे थे। बता दें कि चिरियाबेड़ा (अंजेडबेड़ा) गाँव में अधिकांश लोग हो समुदाय के हैं, जो एक अनुसूचित जनजाति है और हो भाषा में बात करते हैं। सीआरपीएफ के जवानों ने ग्रामीणों से हिंदी में बोलने का दबाव डाला था और जब वे हिंदी बोल पाने में असमर्थता जताई थी, तो जवनों ने उनकी जमकर पिटाई की, जिससे कई लोग बुरी तरह घायल हो गए थे।
इस घटना के बाद झारखंड जनाधिकार महासभा, जो विभिन्न जन संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं का मंच है, द्वारा इस मामले का तथ्यान्वेषण किया गया था। फैक्ट फाइंडिंग दल में ‘आदिवासी महिला नेटवर्क’, ‘आदिवासी अधिकार मंच’, ‘बगईचा’, ‘भूमि बचाओ समन्वय मंच’, ‘कोल्हान’, ‘मानवाधिकार कानून नेटवर्क’, ‘जोहार’, ‘कोल्हान आदिवासी युवा स्टार एकता’ और ‘हमारी भूमि हमारा जीवन’ के प्रतिनिधि शामिल थे।
झारखंड जनाधिकार महासभा ने अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट 29 जुलाई 2020 को तैयार की है, जो चिरियाबेड़ा (झारखंड) के आदिवासियों की क्रूर पिटाई की घटना, सुरक्षा बलों के आदिवासी विरोधी चेहरे का पर्दाफाश करती है।
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट बताती है कि 15 जून 2020 को चिरियाबेड़ा में बोंज सुरिन की झोपड़ी की छत की मरम्मत में लगभग 20 व्यक्ति मदद कर रहे थे। लगभग दोपहर 12:30 बजे, सीआरपीएफ के एक दर्जन से अधिक जवान और सशस्त्र पुलिस बल के जवान जंगल से गांव में आए और बोंज के घर को घेर लिया। धीरे-धीरे, लगभग 150-200 सीआरपीएफ जवान और पुलिस बल के जवान गांव में पहुंच गये।
सीआरपीएफ ने छत पर काम कर रहे ग्रामीणों को नीचे आने के लिए हिंदी में कहा। चूंकि अधिकांश ग्रामीण हिंदी नहीं समझते या नहीं बोलते हैं, अत: वे समझ नहीं पाए कि क्या कहा जा रहा था। जवानों के चिल्लाने और इशारों से उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें नीचे आना होगा। उनसे हिंदी में नक्सलियों के ठिकाने के बारे में पूछा गया। ग्रामीण जवानों के बोलने के अंदाज से कुछ कुछ समझ पाए कि उनसे क्या कहा जा रहा है, अत: उन लोगों ने ‘हो’ भाषा में जवाब दिया कि वे हिंदी नहीं समझते हैं और नक्सलियों के ठिकाने को नहीं जानते हैं। ग्रामीणों द्वारा हिंदी में जवाब न देने के कारण सीआरपीएफ जवानों ने ग्रामीणों को गाली देना शुरू कर दिया। फिर उन्होंने एक-एक कर 20 लोगों को बेरहमी से पीटा। सीआरपीएफ के जवानों ने ग्रामीणों को पीटने के लिए डंडों, बैटन, राइफल के बट और बूटों का इस्तेमाल किया। कई पीड़ितों और ग्रामीणों ने फैक्ट फाइंडिंग दल को बताया कि जवानों की पिटाई से उनकी दर्दनाक चीखें पूरे इलाके में गूंज रही थीं।
सीआरपीएफ ने एक पीड़ित राम सुरीन के घर के अन्दर के सामान को तहस-नहस कर दिया। घर में रखे बक्सों को तोड़ा गया और बैग को फाड़ा गया। घर में रखे राशन, धान, चावल, दालें, मटर को चारों ओर फेंक दिया गया और नष्ट कर दिया गया। बक्से में रखे गए दस्तावेज, खतियान (जमीन का दस्तावेज), मालगुजारी रसीद और परिवार के सदस्यों का आधार कार्ड सीआरपीएफ के जवानों द्वारा जला दिया गया। परिवार ने हाल ही में भैंस व बकरियां बेंच कर 35,000 रुपये बक्से में रखे थे। वे पैसे सीआरपीएफ द्वारा छापेमारी के दौरान गायब हो गए। सीआरपीएफ को न तो इस घर से व न पीड़ितों के पास से माओवादी सम्बंधित दस्तावेज़ मिले और न ही वे अपने साथ किसी भी प्रकार का दस्तावेज़ वापिस ले गये।
हालाँकि पीड़ितों ने पुलिस को अपने बयान में स्पष्ट रूप से बताया था कि सीआरपीएफ ने उन्हें पीटा, लेकिन पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी (20/2020 dtd 17 जून 2020, गोइलकेरा थाना) में कई तथ्यों को नज़रंदाज़ किया गया है और हिंसा में सीआरपीएफ की भूमिका का कोई उल्लेख नहीं है। प्राथमिकी में उल्लेख किया गया है कि पीड़ितों को अज्ञात अपराध कर्मियों द्वारा पीटा गया, एक बार भी सीआरपीएफ का ज़िक्र नहीं है। पुलिस ने अस्पताल में पीड़ितों पर दबाव भी दिया कि वे आरपीएफ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज न करवाएं और हिंसा में उनकी भूमिका का उल्लेख न करें।
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट बताती है कि इस घटना और पुलिस की अत्यधिक आपत्तिजनक प्रतिक्रिया, फिर से झारखंड में सीआरपीएफ और पुलिस द्वारा आदिवासियों पर मानवाधिकारों का लगातार हो रहे हनन को उजागर करती है। यह भी चिंताजनक है कि इस मामले में उचित कार्यवाई करने के मुख्यमंत्री द्वारा स्पष्ट निर्देश (Twitter के माध्यम से) के बावज़ूद स्थानीय पुलिस ने ऐसी प्राथमिकी दर्ज की है जो जांच को गलत दिशा में ले जाएगी और जिससे हिंसा के लिए ज़िम्मेवार सीआरपीएफ दोषमुक्त हो जाएंगे।

जांच दल ने 28 जुलाई को पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त व पुलिस अधीक्षक के साथ इस मामले में मुलाकात की और मांग पत्र दिया। पुलिस अधीक्षक ने माना कि कुछ सीआरपीएफ जवानों ने पीड़ितों को मारा, पर वे सीआरपीएफ के बर्ताव को बार बार “mishandling” और “unprofessional” ही बोलते रहे। उपायुक्त ने स्पष्ट कहा कि हिंसा में सीआरपीएफ की भूमिका पर कोई संदेह नहीं है। दोनों ने आश्वासन दिया कि प्राथमिकी में सुधार किया जाएगा और पीड़ितों के बयान दुबारा रिकॉर्ड किए जाएंगे। उपायुक्त ने कहा कि इस मामले में पीड़ितों को न्याय मिलेगा।
झारखंड जनाधिकार महासभा की झारखंड सरकार से निम्न मांगें :—
- पुलिस तुरंत दर्ज प्राथमिकी (20/2020 dtd 17 जून 2020, गोइलकेरा थाना) को सुधारें, प्राथमिकी में दोषी के रूप में सीआरपीएफ कर्मियों का नाम दर्ज करें, बिना किसी बदलाव के पीड़ितों की गवाही को सही तरीके से दर्ज करें और प्राथमिकी में आईपीसी और एससी-एसटी अधिनियम के संबंधित धाराएं जोड़ें, जिनका रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है। पीड़ितों के बयान (जैसा पीड़ितों ने बोला था) को सही रूप दर्ज न करने और गलत बयान दर्ज करने के लिए सरकार स्थानीय पुलिस के खिलाफ भी कार्रवाई करे। साथ ही, तुरंत हिंसा के लिए जिम्मेदार सीआरपीएफ कर्मियों को गिरफ्तार करे।
- सरकार एक न्यायिक जांच का गठन करे और इसकी रिपोर्ट को समयबद्ध जांच के बाद सार्वजनिक करे। इस हिंसा के लिए जिम्मेदार सभी प्रशासनिक, पुलिस और सीआरपीएफ कर्मियों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
- सभी पीड़ितों को शारीरिक हिंसा, मानसिक उत्पीड़न और संपत्ति के नुकसान के लिए पर्याप्त मुआवजा दिया जाए।
- चिरियाबेड़ा गाँव में लोगों के वनाधिकार के लंबित आवेदनों को तुरंत स्वीकृत की जाए एवं गाँव में सभी बुनियादी सुविधाएं (शिक्षा, पेय जल आदि) व सभी परिवारों के बुनियादी अधिकार (राशन, पेंशन, मनरेगा रोज़गार, आंगनवाड़ी सेवाएं आदि) सुनिश्चित की जाए।
- स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को स्पष्ट निर्देश दें कि वे किसी भी तरह से लोगों, विशेष रूप से आदिवासियों, का शोषण न करें। मानव अधिकारों के उल्लंघन की सभी घटनाओं से सख्ती से निपटा जाए। नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए।
- स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषाओं, संस्कृति व आदिवासी दृष्टिकोण की प्रशिक्षण की जाए व इनके प्रति संवेदनशीलता सुनिश्चित की जाए।
राम सुरीन बताते हैं कि ‘मैं नदी में मछली पकड़ने गया था। सीआरपीएफ के वापस चले जाने के बाद मैं घर पहुंचा। तब मेरा बेटा सिर झुकाकर जोर से रो रहा था लेकिन वह बोल नहीं पा रहा था। आस—पास के लोगों ने बताया कि पुलिस वालों ने उसको बुरी तरह पीटा है। घर के आंगन की ओर देखा तो घर का धान, चावल, खेसारी, मसूर एवं छोटा मटर घर के बाहर पूरी तरह बिखरा पड़ा था। बेटे की शरीर पर गंभीर जख्म एवं घाव थे।’ राम सुरीन ने बताया कि ‘दो खस्सी एवं बैल को बेचकर जिस डिब्बे 35 हजार रूपया में रखा था वह गायब था। केवल 3 रूपया खुदरा पैसा के साथ एक 50 पैसा वाला सिक्का बच गया था। रूपए के परिवार के आधार कार्ड, जमीन के दस्तावेज, कर्ज के कागजात और मेरे बच्चों के दस्तावेज गायब थे।’
ग्रामीणों ने बताया कि ‘सीआरपीएफ ने इस दौरान दिव्यांग और बुजुर्ग महिला को भी नहीं छोड़ा।’
गांव का डुबो सुरीन का कहना है कि ‘उन्हें सीआरपीएफ ने पेट के बल लिटा कर पीटा, उनकी रीढ़ की हड्डी में अबतक दर्द हो रहा है।’
गांव के ही तुराम तोसोय बताते हैं कि ‘लगभग बीस ग्रामीण घर की छावनी कर रहे थे, उसी दरम्यान सीआरपीएफ ने घर को घेर लिया’
गुना गोप बताते हैं कि ‘बचपन से मेरा एक हाथ टूटा हुआ है। लेकिन उन लोगों ने कहा कि ये तो गोली से खराब हुआ है। बोले इसके बाल भी वैसे ही हैं, इसको नहीं छोड़ेंगे, एक बुजुर्ग महिला गनोरतम सोय बचाने आई तो उन्हें उठाकर दूर फेंक दिया।’
तुराम तुसोय बताते हैं कि ‘जब हम सीआरपीएफ की इस बर्बरता के खिलाफ जब वो थाने में एफआईआर दर्ज कराने गए तो पुलिस ने एफआईआर लिखने से इनकार कर दिया, जिसके बाद हमने इस मामले की ऑनलाइन एफआईआर दर्ज की।’
इस मामले में एसपी इंद्रजीत महथा कहते हैं कि- ‘ग्रामीणों के साथ जो मिस हैंडलिंग की बात आई है, उसके लिए एक एफआईआर हुई है, थोड़ा एंजाइटी में जो अनप्रोफेशनल तरीके से हैंडिलिंग किया गया है, उसके लिए विधिवत कार्रवाई की जा रही है, उनके साथ हमारे रिश्ते मधुर हैं वह बने रहेंगे साथ ही साथ एंटी नक्सल अभियान जारी रहेगा।’
उन्होंने कहा कि पुलिस अपनी जांच में “निष्पक्ष” रहेगी। लेकिन उनकी अभिव्यक्ति सीआरपीएफ का बचाव करती लग रही थी। उन्होंने कहा कि ‘हम जानते हैं कि ग्रामीण भी असहाय हैं, क्योंकि हमेशा भय का माहौल होता है। हम ग्रामीणों पर नक्सली होने का आरोप नहीं लगा रहे हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि वे पीड़ित हैं। हमने माओवादियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।’
वहीं सीआरपीएफ के प्रवक्ता एम दिनाकरन ने बताया कि ‘ग्रामीणों के आरोपों पर जांच बिठाई गई है।’
सवालों पर झारखंड सेक्टर के सीआरपीएफ के पुलिस महानिरीक्षक राजकुमार कहते हैं कि ‘मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। मैं इस बारे में बात नहीं कर सकता।’ उन्होंने बताया कि ‘हमने आरोपों के बारे में सीआरपीएफ के जनसंपर्क अधिकारी और महानिदेशक को एक प्रश्नावली ईमेल की लेकिन हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। उनका जवाब आने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा।’
जवानों ने एक बुजुर्ग विधवा गोनेरतम सोय को भी नहीं बख्सा। गोनेरतम ने बताया कि ‘उसने ग्रामीणों को पिटते हुए देखा और उनकी मदद करने की कोशिश की। तब बल के एक जवान ने मुझे पत्थर की सड़क पर घसीटकर फेंक दिया। मैं उस वक्त खड़ी भी नहीं हो सकी। जब मैं उठी तो खड़े होकर रोते हुए बस वह देखती रही जो वह कर रहे थें।’ उन्होंने यह कहने से पहले बताया कि ‘जवानों ने उनका राशन फेंक दिया। उनमें से एक ने मेरे आधार कार्ड और कुछ अन्य दस्तावेजों को स्टोव पर जलाना शुरू कर दिया।’
एक्टिविस्टों ने रिपोर्ट में लिखा है कि सात ग्रामीण घायल हो गए और तीन गंभीर हालत में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले दिन ग्रामीण किसी तरह गंभीर रूप से घायलों को छह किलोमीटर तक चारपाइयों पर ले गए और फिर किसी तरह उन्हें चाईबासा के सदर अस्पताल ले जाने के लिए गाड़ी का इंतजाम कर सके। एक्टिविस्टों के अनुसार, ग्रामीण पास के मुफस्सिल पुलिस स्टेशन गए जहां उन्हें बताया गया कि गांव उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है और इसके बजाय गोइलकेरा पुलिस स्टेशन जाने को कहा गया।
17 जून को लगभग पांच ग्रामीण सामाजिक कार्यकर्ता मानकी तुबिद के साथ उन लोगों से मिलने अस्पताल गए थे जिन्हें भर्ती किया गया था। वहां पुलिस पहले से ही मौजूद थी। एक्टिविस्टों ने रिपोर्ट में लिखा है पुलिस वालों ने कहा कि वे मामला दर्ज नहीं करेंगे लेकिन इलाज में मदद करेंगे और हमलावरों को नहीं जानते। तुबिद के अनुसार, पुलिस वालों ने घायल ग्रामीणों को सीआरपीएफ के खिलाफ शिकायत करने के लिए नहीं बल्कि “नकाबपोश लोगों” के खिलाफ शिकायत करने के लिए कहा। तब पुलिस ने ग्रामीणों को पास के सदर पुलिस स्टेशन में बुलाया और कहा कि मामले में पहली सूचना रिपोर्ट दर्ज कर दी गई है लेकिन उन्हें एफआईआर की प्रति नहीं दी गई। तुबिद ने कहा कि अंत में ग्रामीणों ने ऑनलाइन एफआईआर दर्ज की।