संपादकीय टिप्पणीः संविधान कितना जनतंत्रवादी है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि ऐहतियाती तौर पर किसी को भी बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार किया जा सकता है। राजनीतिक बंदियों के प्रति सत्ता का सुलूक और रामरहीम के प्रति सत्ता का सुलूक जनतंत्र विरोधी तो है पर संविधान-विरोधी नहीं। भाजपा भी संविधानसम्मत ढंग से सत्ता में आई है। तीनों कृषि कानून संवैधानिक ही तो थे। तो यह तो रही संविधान को कपिला गऊ बताने की बात। अब आते हैं अंबेडकर पर —- अंबेडकर दलित बुर्जुआ के विचारधारा निरूपक हैं, इन्हीं के नाम पर तनिक खाता-पीता दलित सामाजिक न्याय के नाम पर गंद मचाए हुए है और 400 रुपये की भी दिहाड़ी मयस्सर नहीं इसे बहस के केंद्र में ही नहीं लाने देना चाहता। जो दिख रहा है उसे शब्द देने की बजाय विनीत तिवारी जैसे संस्कृति-कर्मी किताबी ज्ञान के सहारे द्रविड़ प्राणायाम करवाना चाह रहे हैं। पाठक खुद तय करें।
अम्बेडकरवाद और मार्क्सवाद, दोनों को समझना जरूरी
संविधान दिवस कार्यक्रम में विनीत तिवारी का अभिकथन
भारत को एक देश के रूप में बनाने का काम संविधान ने किया है। उज्ज्वल भारत का सपना इसी में निहित है। आज की सामाजिक वास्तविकता भयानक है। इसलिए संविधान सभा में होने वाली बहसों को समझना चाहिए। महिला और दलित सशक्तिकरण की उचित समझ बढ़ानी चाहिए थी। लेकिन आज संविधान के मार्गदर्शक सिद्धांतों को कम आंका जा रहा है। अम्बेडकरवाद और मार्क्सवाद, दोनों को समझने की जरूरत है, ताकि हम वर्ग और जाति या लिंग या किसी अन्य भेदभाव के आधार पर हमारे अधिकारों से वंचित न हो। यह बात प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कही। वह एसटी कामगार भवन नासिक में “भारतीय संविधान और प्रगतिशील लेखकों की जिम्मेदारी” पर एक व्याख्यान में और एटक के श्रमिक नेता राजू देसले के सम्मान समारोह में बोल रहे थे।
जमींदारी प्रथा आज भी पूरी तरह से नष्ट नहीं हुई है। उसका कारण यह है कि जन एक तरफ़ नए भारत का सपना साकार करने की कोशिशें गांधी जी, नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, अम्बेडकर और भगतसिंह तथा अन्य आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले कर रहे थे, तब भी ऐसे लोग थे जो अंदर ही अंदर सोच रहे थे कि एक बार अंग्रेज़ वापस चले जाएं, उसके बाद अपने जाति, सम्प्रदाय और सामर्थ्य आधारित परंपरागत समाज व्यवस्था को वापस कायम कर लेंगे। आज वैसी ताक़तें और मजबूत हुई हैं और हमें उनसे संविधान को बचाना है। इसके समुचित क्रियान्वयन से विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना आवश्यक है। हमें अपने स्वतंत्र कार्यक्रम को केवल प्रतिक्रियावादी आंदोलन के प्रतिक्रियावादी होने के बजाय रचनात्मक रूप से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि संविधान सभा मे 25 नवंबर 1949 को बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने जो भाषण दिया था, उसमें साफ़ कहा था कि हम अब एक नए किस्म का देश बनाने की कोशिश करने वाले हैं जो मनुस्मृति पर आधारित जाति व्यवस्था और धार्मिक भेदभाव पर आधारित नहीं होगा। लेकिन हाल में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद ने जो बयान भारत सरकार के कहे पर जारी किया है, वो कहता है कि हमारे देश में खाप पंचायतों तथा ग्रामीण पंचायतों के रूप में आज़ादी के पहले से ही लोकतंत्र मौजूद था। ऐसा करके मोदी सरकार अम्बेडकर के महत्त्व और योगदान को कम करना चाहती है तथा मनुस्मृति को प्रतिष्ठित करना चाहती है। यह भर्त्सना योग्य है। लेखकों, पत्रकारों, इतिहासकारों, राजनीतिक दलों आदि सभी को इसकी निंदा करनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि बिना पढ़े ही अम्बेडकरवादी मार्क्सवादियों को ख़ारिज करते हैं और मार्क्सवादी अम्बेडकरवादियों को जबकि सच यह है कि श्रम के मामलों में दिलचस्पी रखने वालों के लिए अम्बेडकर ने जो चार किताबें पढ़ना निहायत ज़रूरी बताया, उसमें मार्क्स और एंगेल्स द्वारा तैयार किया गया कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो भी था। भारतीय परिस्थितियों के भीतर जाति के सवाल पर जितना गम्भीर काम अम्बेडकर का है, उसके योगदान को कभी भुलाना नहीं चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान कोई धार्मिक किताब नहीं है जिसमें बदलाव न किया जा सके, बल्कि वह एक ज़िंदा, धड़कता हुआ ग्रंथ है जो समय और परिस्थितियों के मुताबिक जनता के हक़ में अपने आपको बदलने की गुंजायश भी देता है। हमें जो मिला है, उसे तो बचाना ही है, लेकिन उसकी मूल भावना के अनुकूल उसमें और भी ज़्यादा जोड़ते जाना है ताकि देश अधिक लोकतांत्रिक बन सके और संविधान समाजवादी और जनपक्षीय लक्ष्यों को हासिल करने में सहायक बन सके।
श्रमिक नेता राजू देसले को एटक के राज्य सचिव के रूप में कुछ ही दिन पहले फिर से निर्वाचित किया गया है। इस अवसर पर विनीत तिवारी द्वारा राजू देसले को सम्मानित किया गया। राजू देसले ने कहा कि “संविधान के महत्त्व को कम करने का काम प्रतिदिन हो रहा हैI
अंतरजातीय शादियाँ करने वालों का उत्सव मनाया जाना चाहिए। आज शिवाजी महाराज को सांप्रदायिक तरह से प्रस्तुत करके जानबूझकर बदनाम किया जा रहा है। नासिक के लोगों को संविधान समर्थक आंदोलन को तेज करना जरूरी है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष लेखक महादेव खुदे ने कहा कि ‘अंबेडकर की चेतावनी सच हो रही है। महाराष्ट्र में अराजक स्थिति दिखाई दे रही है। महिलाओं का मजाक उड़ाया जाता हैI
बाबा साहेब ने कहा था कि यह राजनीतिक आज़ादी है, इसे आर्थिक और सामाजिक आज़ादी का रूप लेना है। नहीं तो यह लोकतंत्र टिकेगा नहीं.’
कार्यक्रम में प्रह्लाद पवार, तल्हा शेख, भीमा पाटिल, जयवंत खड़तले, मनोहर पगारे मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य सचिव राकेश वानखेड़े ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रगतिशील लेखक संघ के जिलाध्यक्ष प्रमोद अहिरे ने किया।