अगर कोई वर्गशत्रु तथा स्टेट का एजेंट नहीं तो वह हमारी घृणा का पात्र नहीं: रितेश विद्यार्थी

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यादेंः कामता प्रसाद की कलम से
विश्व पुस्तक मेला शुरू हो चुका है। हमारी साझी पत्रिका विकल्प भी वहाँ पहुँच चुकी है। मेरी अब इतनी उमर हो चुकी है कि अतीत के किस्से सुनाया करूँ। तो बात यह है कि ऐसे ही किसी विश्व पुस्तक मेले में मैं घुम्मी करने गया हुआ था। उन दिनों शशिप्रकाश को लेकर व्यामोह व्याप्त था। वैसे भी, लॉजिक और साइंस से मुझे लैस करने का श्रेय उसे ही जाता है। हाँ, मैं अप्रतिभ नहीं हूँ। माने प्रशिक्षित नहीं वरन कुदरती हूँ।
तो हुआ यह कि कॉफी पीते हुए सुप्रीम कोर्ट की एक वकील टकराई। गज़ब की जँचाऊ-खिंचाऊ स्त्री थी। आँखें शराबी थीं और मैं उसके साथ कुछ क्वालिटी टाइम स्पेंड करना चाह रहा था। लेकिन मेरी हैसियत से ऊपर का मामला था। तुरंत मुझे शशिप्रकाश का ख्याल आया और मैंने तय किया कि तुरुप के इक्के को दाँव पर लगा देना है। मैं जनचेतना के बुकस्टाल पर पहुँचा। वहाँ उसके अलावा सत्यम और कात्यायनी भी मौजूद थे।
शशिप्रकाश की कारीगरी बेजोड़ थी। मुझे उस समय लगता था कि मैं उसके बहुत करीब हूँ। गरज़ यह कि मैंने अपनी जबान में और एक खास पिच पर मन की बात कही और उसने समझा भी। बाकी लोगों की समझ में घंटा कुछ नहीं आया। हम दोनों उसी जगह पहुँचे, जहाँ से मैं आया था। बात हुई, कुछ देर तक चली भी और हमने उसे कुछ किताबें खरीदने के लिए कनविंस कर लिया। लेकिन ऐसे ही अपना क्लास थोड़े कोई छोड़ता है। वह सुप्रीम कोर्ट की वकील थी।
जब आप प्रैक्टिस में होते हैं केवल तभी किसी से अपना क्लास छोड़ने की डिमांड कर सकते हैं।
मैंने शशिप्रकाश को बेहिसाब गालियाँ दीं हैं क्योंकि उसने मेरी जिंदगी तो सँवारी लेकिन उसे कोई दिशा नहीं दी। अगर वह प्रैक्टिस में होता, मज़दूरों के बीच होता तो आज मेरा भी सार्थक योगदान रहा होता। हाँ, एक बात और बताता चलूँ कि लेफ्ट के सारे धुरंधर अभी तक एक भी बात ऐसी नहीं कह पाए हैं, जिसे उसने पहले ही न कह दिया हो। जिन असंगठित मज़दूरों को बगोरने के काम में आज विकल्प के लोग लगे हुए हैं, उसकी बात वह 2005 में ही कह चुका था, हालांकि किया कभी नहीं। साइबर निगरानी और निजता के हनन को लेकर उसने अपनी चिंता न जाने कब की जाहिर कर दी थी।
शशिप्रकाश मुझे उस वक्त मिला था जब मैं अर्ध-विक्षिप्तावस्था में था, माने दवा यानि मूडस्टैबलाइजर लेने की शुरुआत नहीं हुई थी। उससे मुझे साइंस और लॉजिक मिला। संवेदना देने का काम तो जिंदगी ही करती है और उसने किया भी है। मन की उत्तेजना की अवस्था में मैंने तमाम लोगों के साथ नामाकूल व्यवहार किया है। कुछ मामलों में ठीक करने की कोशिश कर रहा हूँ, करूँगा। अधिकतर में सिर्फ पश्चाताप ही कर सकता हूँ।
सब मम प्रिय सब मम उपजाए, सबसे अधिक मनुज मोहि भाए (तुलसीदास)
सुंदर हैं विहग सुमन सुंदर, मानव तुम सबसे सुंदरतम (पंत)
अपनी समस्त कमजोरियों समेत मनुष्य मुझे प्यारा है (मार्क्स)
अगर कोई वर्गशत्रु तथा स्टेट का एजेंट नहीं तो वह हमारी घृणा का पात्र नहीं (रितेश विद्यार्थी)
मज़दूर वर्ग की जमीन पर खड़े होकर किसानों के बीच लोकप्रिय नारे गढ़ने का काम अभी बाकी है और यह काम किया जाएगा। एक बार और कह दूँ कि मुझे शशिप्रकाश का एहसान उतारना है और यह काम मैं मज़दूरों के बीच अपने काम को आगे बढ़ाकर ही कर सकता हूँ।

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