इलाहाबाद के गोहरी गांव में हुए दलितों के जनसंहार के मामले में कोई न्याय नहीं मिलने वाला है। इंक़लाबी छात्र मोर्चा ने दो दिन पहले ही जारी अपने बयान में यह बात स्पष्ट कर दिया था। दलित संगठनों और दलित बुद्धिजीवियों की इस घटना पर चुप्पी शर्मसार करने वाली है। अब तक तो इलाहाबाद और उत्तर प्रदेश की जनता को सड़कों पर उमड़ जाना चाहिए थे लेकिन अफसोस कि चंद संगठनों को छोड़कर अभी तक किसी ने चूं तक नहीं बोला है। यकीन न हो तो लोगों की फेसबुक पोस्ट खोलकर देख लीजिए। चुनावी राजनीति से जुड़े सरकारी कम्युनिस्टों और उनके लेखक संगठनों जलेस, प्रलेस, जनसंस्कृति मंच आदि के लोगों ने पिछले दिनों दिल्ली की एक महिला दलित प्रोफेसर के मुद्दे पर जमकर बवाल काटा था क्योंकि वह उनके क्लास का मामला था जबकि यहाँ तो दलितों के बुनियादी वर्गों से जुड़ा मामला है और किसी के भी कान में जूँ तक नहीं रेंग रही।
अब पुलिस कह रही है कि मामला प्रेम प्रपंच का है। पीड़ितों की जाति के ही लड़के ने प्रेम में असफल होने पर प्रेमिका के पूरे परिवार का सफाया कर दिया। मजेदार बात यह है कि कत्ल के दौरान लड़के ने जो शर्ट पहनी थी जिस पर खून के धब्बे लगे हुए थे वो शर्ट भी वो सम्भालकर रखा हुआ था ताकि पुलिस आकर शर्ट को बरामद कर सके। जातिगत जनगणना कराने वाले दोगले चुप हैं, सामाजिक न्याय के अलंबरदार दारू-गाँजा के नशे में मस्त है। क्योंकि आरक्षण की व्ववस्था को अमरत्व प्रदान करने की कवायद नहीं न शुरू करनी।
संविधान का जश्न मनाने वाले दलित संगठनों और बुद्धिजीवियों को लानत है, जिन्होंने अपना जमीर गिरवी रख दिया है। और उन बुद्धिजीवियों को भी लानत है जो अभी व्यवस्था समर्थक फ़िल्म जय भीम की तारीफ करते नहीं थक रहे थे।
इस व्यवस्था में और संविधान के रास्ते से दलितों को न्याय मिल पाना असंभव है। नीचे घटना के संबंध में जारी किए गए पुलके वर्जन को पढ़िए और चैन से सो जाइये क्योंकि असली अपराधी पकड़ में आ गया है। दलितों की आम आबादी को जगाने के लिए, उनके बीच रंगे सियारों की असलियत बेनकाब करने के लिए मजदूरों के सच्चे हमदर्दों को उनके बीच धँसकर प्रचार करना होगा, जिसमें गौरव जैसे अकूत हिम्मती साथियों से मार्गदर्शन प्राप्त किए जाने की जरूरत है।
रितेश विद्यार्थी, कार्यकारिणी सदस्य, इंकलाबी छात्र मोर्चा