शुरू में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि नया कोरोना वायरस इंसान से इंसान में नहीं फैल रहा।
शुरुआती जानकारी चीन से यही मिली थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कोई जांच की कोई कोशिश नहीं की। हो सकता है कि उसे जरूरत न पड़ी हो और चीन पर भरोसा किया हो। हालांकि चीनी सरकार भरोसे के लायक बिलकुल भी नहीं है। या फिर हो सकता है कि जानबूझकर भरोसा किया गया हो और जो चल रहा था चलता रहने दिया गया हो। लेकिन बाद में जब यह क्लीयर हुआ कि इंसान से इंसान में संक्रमण मौजूद है, तब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन को कुछ नहीं कहा, न ही जांच की, बल्कि चीन द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर ही डिसीजन लेता रहा। जबकि चीन द्वारा दी जा रही सूचनाएं काफी हद्द तक संदेहास्पद थी। और तो और बीमार व मृतक लोगों के आंकड़े भी। अब इसके बहाने 100 चूहे खाकर हज को जाने का दिखावा करते हुए अमेरिका ने सारा ठीकरा चीन और डब्लूएचओ के सर फोड़ दिया और डब्लूएचओ का फंड रोक लिया। अमेरिका के हुक्मरानों को लोगों के मरने से कोई मतलब नहीं, जैसा कि वे दिखावा कर रहे हैं। उन्हें तो बस बहाने की जरूरत थी। पूरी दुनिया की सरकारें स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं के फंड से हाथ खींच रही हैं। यह तो बस एक बहाना मिल गया है।
यह सही है कि वायरस प्राकृतिक है। लैब में निर्मित नहीं है। कम से कम अभी तक के वैज्ञानिक शोधों से तो यही निष्कर्ष निकलता है। लेकिन इसके बावजूद यह भी सच है कि यह वायरस प्रकृति से इंसानी आबादी में भी किसी कारणवश ही आया है। जाहिर है वह कारण मुनाफे के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन और उसकी वजह से पारस्थितिकी तंत्र का बिगड़ना ही है।
अब जबकि वायरस म्युटेट होकर इंसानी आबादी में आ गया है तो इसके बहाने साम्राज्यवादियों ने भी अपना घिनौनापन दिखाना शुरू कर दिया है। चीन ने तो किया ही है। आपदा को हैंडल करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका भी संदेहास्पद ही रही है। दुनिया के दक्षिणपंथी निज़ामों ने भी इस महामारी के बहाने अपने एजेंडे लागू किये हैं। भारत के फासिस्ट निज़ाम के लिए तो यह महामारी जैसे सौगात लेकर आई है। इसके बहाने फासिस्टों ने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण जी भरकर किया है। जबकि कोशिश महामारी को शुरुआती दौर में ही रोक देने की होनी चाहिए थी जोकि नहीं किया गया। देश की मेहनतकश जनता पर बेशर्मी से लॉक डाउन थोप दिया गया और ऊपर से पूरे मामले का साम्प्रदायिकीकरण कर दिया गया।
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया की मुनाफाखोर व्यवस्था को नंगा करके रख दिया है। बिलकुल साफ साफ साम्राज्यवादियों, फासिस्टों और पूंजीवादी संस्थाओं की भ्रष्ट कार्यप्रणाली को उजागर कर दिया है। कुछ पूंजीवादी देशों जैसे द. कोरिया, जापान, ताइवान आदि ने जरूर कोरोना महामारी को कंट्रोल में रखा है और लॉक डाउन जैसी आपदा भी जनता पर नहीं थोपी, लेकिन यह भी इसलिए नहीं था कि इनके हुक्मरानों को अपनी अपनी मेहनतकश जनता से कोई प्यार था। बल्कि यह इसलिए था क्योंकि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं जिस तरह से संकट का शिकार हैं, कोरोना जैसी महामारी को गलत तरीके से हैंडल करने से, जैसा कि भारत में किया गया है, बची खुची अर्थव्यवस्था का भी भट्ठा बैठ जाना था और हुक्मरानों के साथ जनता के सीधे टकराव की स्थिति पैदा हो जानी थी। कई यूरोपीय देशों ने लॉक डाउन का सहारा भी लिया लेकिन इसके बावजूद स्पेन, इटली आदि देशों में मृत्युदर काफी ज्यादा रही। हालांकि ये देश भी अब जाकर महामारी को कंट्रोल करने में सफल होते दिख रहे हैं। इसके बावजूद अर्थव्यवस्था पर तो इसका प्रभाव भयंकर ही पड़ा है जिसका खामियाजा मेहनतकश को भी भुगतना पड़ेगा। सबसे खराब अनुभव रहा भारत का। यहां क्या हुआ है यह तो सबको पता ही है। न टेस्टिंग, न ट्रीटमेंट, न प्लानिंग। सिर्फ लॉक डाउन। और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण। कितने लोग बीमार हैं। कितने बीमारी की वजह से मरे हैं, कुछ भी स्पष्ट नहीं है। कितने लोग लॉक डाउन के चलते भूख से मरे हैं, अभाव से मरे हैं या प्रभावित हुए हैं, सवा सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश में इसका अनुमान लगाना इतना भी मुश्किल नहीं है।
कोविड 19 तो महामारी है ही। लेकिन असली महामारी मुनाफाखोर पूंजीवादी व्यवस्था है। बात एक या दो देशों की नहीं है। बल्कि पूरी दुनिया पर काबिज पूंजी के साम्राज्य की बात है, जिसने पहले तो वायरस को इंसानी आबादी में आने की परिस्थितियां तैयार की, फिर इससे मुनाफा बनाया और जनता को मरने के लिए छोड़ दिया।
असली महामारी यही व्यवस्था है जो ऐसी महामारियों और निज़ामों की जननी है।
डॉ. नवमीत नव