कॉफी बिना शक्कर ही अच्छी होती है, दूध अगर डाला तो किया कबाड़

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प्रियंका ओम

जिस तरह भारतीय में चाय संक्रमित है उसी तरह पश्चिमी देशों में कॉफ़ी, यूरोपियन में एप्पल के साथ ब्लैक कॉफ़ी आमफहम है और हमारे यहाँ छाछ में एक्सप्रेसो मिलाकर उसे अमेरिकानो के तर्ज पर अफ्रीकानो कहते है |
उन दिनों कॉफ़ी पीना एलीट कहलाता था और किचन की शेल्फ पर नेस्कैफे का जार होना सुपर एलीट, एक छोटा जार पूरी सर्दी सिर्फ विशिस्ट मेहमानों को सर्व के लिये काफी हुआ करता !
पापा को कॉफ़ी का बहुत चाव था, सर्दियों में उनकी सुबह कॉफ़ी से हुआ करती, बाद के वर्षों में जब मैं रात जाग पढ़ाई किया करती तब पापा टेबल पर कॉफ़ी का एक बड़ा मग रख जाते कि कॉफ़ी पीने से नींद नहीं आती। उन दिनों कॉफ़ी के बड़े जार के साथ नैसकेफ़े लिखा एक मग मुफ़्त में मिला करता, यूँ बाज़ार में बड़े कप/ कॉफ़ी मग का चलन शुरू नहीं हुआ था!
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बाबजूद गर्म पेय होने के अफ्रीका के उष्ण द्वीपों, उपद्वीपों में कॉफ़ी बेतरह पसंद की जाती है, माना जाता है कि पंद्रहवी शताब्दी के मध्य में सर्वप्रथम कॉफ़ी का चलन यमन के सूफी संतों में देखा गया था, वे कॉफ़ी के बेर इथोपिया से खरीदते थे. यह भी कहा जाता है कि शेख उमर, जो प्रार्थनाओं के माध्यम से रुग्न को ठीक किया करता था को यमन में निर्वासन के दौरान पास की कंटीली झाड़ियों में बेर जैसा कुछ दिखा, भूख से बेहाल उमर को चबाने पर वह बेहद कड़वा लगा, फिर उसने उन्हें कच्चा जान भून दिया तब वे बेर चबाये जाने से अधिक कठोर हो गये, फिर मुलायम करने की गरज से उसने उन्हें पानी में उबाल दिया और इस तरह कॉफ़ी की खोज हुई थी हालाकिं इथोपिया का कहना है कॉफ़ी पीने के प्रचलन उनके यहाँ शुरू हुआ था, पन्द्रहवीं शताब्दी में व्यवसायी के तौर जब वह उत्तर में मिश्र की तरफ़ निकले वहाँ से लाल घाटी और हिन्द महासागर तक कॉफ़ी का प्रसार हुआ । कॉफ़ी, अरेबिक ‘कहवा’ से लिया गया है जबकि मोका ( कॉफ़ी की एक क़िस्म) मुख्यतः यमन के पोर्ट शहर मोका में उगाई जाती है और जावा कॉफ़ी बींस की खेती सोहलवीं शताब्दी से इंडोनेशिया में होने लगी !
मुख्यतः कॉफ़ी के चार प्रकार हैं, अरेबिका, रोबस्टा, एक्सेल्सा और लिबेरिका, हालाँकि अभी तक एक्सेल्सा और लिबेरिका को वह प्रसिद्धि हासिल नहीं हुई है जो अरेबिका, रोबस्टा को लब्ध है। समूचे अफ़्रीका में इथियोपिया अरेबिका का सबसे बड़ा उत्पादक हैं और युगांडा रोबस्टा का। कॉफ़ी का स्वाद इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस परिस्थिति में उगाई गई है, कैसे इसे भूना गया है और कैसे संग्रहित किया गया है।
मैंने कहीं पढ़ा है कॉफ़ी पीने से मूड अच्छा होता है और केन्या से आयातित होने वाली अफ़्रीकैफे मुझे बेहद प्रिय है, इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि इसमें कुछ मिलाया नहीं जाता, यह स्वाद ली गई अनेक कॉफ़ी में सबसे उम्दा क़िस्म है। हम भारतीयों में कॉफ़ी की समझ कम है, हम अमरीका या अन्य पश्चिमी देशों से आयातित कॉफ़ी अधिक पसंद करते हैं, दरअसल अभी तक हम असली स्वाद से महरूम हैं, वे अफ़्रीका से कॉफ़ी बींस ले जाते हैं उसे अपने तरीक़े से मिलावट कर तैयार करते हैं। पिछले दिनों बेटे के कहने पर स्टार बक्स का एक कैन ले आई जो मुझसे पी न गई, स्वाद के अतिरिक्त जो मैंने नोट किया वह यह कि कॉफ़ी के मग में नीचे एक हल्का गाढ़ा दानेदार लेयर मिलता था!
हम भारतीय को लगता है कॉफ़ी एक यूरोपियन गर्म पेय है, अपने यहाँ कॉफ़ी अधिकाँश ठण्ड में पी जाती है और टी वी कमर्शियल भी ठंड के दिनों में ही आता है !
मैं बिना दूध और चीनी वाली कॉफ़ी, अर्थात् ब्लैक कॉफ़ी (भारत में अमेरिकानों ) पसंद करती हूँ, कहते हैं जो कॉफ़ी में दूध मिला पीते हैं वे कॉफ़ी का असली स्वाद कभी नहीं जान पाते हैं और जो चीनी मिलाते हैं वे कॉफ़ी का सत्यानाश करते हैं।
इथियोपिया में कॉफ़ी फ़िंजन ( बिना हैंडल वाला छोटा कप ) में परोसी जाती है, थोड़ी मात्रा में । कॉफ़ी बहुत नहीं पी जाती किंतु पश्चिम के बाज़ारबाद ने ना सिर्फ़ कॉफ़ी के स्वाद का सत्यानाश किया बल्कि कॉफ़ी मग इंट्रोड्यूस कर मात्रा का भी। अरब के बड़े बड़े जलसों में भी कॉफ़ी पारंपरिक ढंग से छोटे फ़िंजन में परोसी जाती है, फिंजन जैसे ही खाली होता है सेवक पुनः भर देते हैं। हालांकि इस बाबत अमरीकी खूब हंसते हैं लेकिन अरब का कहना है कॉफ़ी का असल स्वाद गर्म पीने में ही है, कॉफ़ी गर्म पेय है भी!
पिछले दिनों मुझ कॉफ़ी पिपासु को कॉफ़ी फ़ार्म पर जाने का मौक़ा मिला, कॉफ़ी प्लांट की तस्वीर साझा कर रही हूँ 😍
जिस तरह भारतीय में चाय संक्रमित है उसी तरह पश्चिमी देशों में कॉफ़ी, यूरोपियन में एप्पल के साथ ब्लैक कॉफ़ी आमफहम है और हमारे यहाँ छाछ में एक्सप्रेसो मिलाकर उसे अमेरिकानो के तर्ज पर अफ्रीकानो कहते है |
उन दिनों कॉफ़ी पीना एलीट कहलाता था और किचन की शेल्फ पर नेस्कैफे का जार होना सुपर एलीट, एक छोटा जार पूरी सर्दी सिर्फ विशिस्ट मेहमानों को सर्व के लिये काफी हुआ करता !
पापा को कॉफ़ी का बहुत चाव था, सर्दियों में उनकी सुबह कॉफ़ी से हुआ करती, बाद के वर्षों में जब मैं रात जाग पढ़ाई किया करती तब पापा टेबल पर कॉफ़ी का एक बड़ा मग रख जाते कि कॉफ़ी पीने से नींद नहीं आती। उन दिनों कॉफ़ी के बड़े जार के साथ नैसकेफ़े लिखा एक मग मुफ़्त में मिला करता, यूँ बाज़ार में बड़े कप/ कॉफ़ी मग का चलन शुरू नहीं हुआ था!
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बाबजूद गर्म पेय होने के अफ्रीका के उष्ण द्वीपों, उपद्वीपों में कॉफ़ी बेतरह पसंद की जाती है, माना जाता है कि पंद्रहवी शताब्दी के मध्य में सर्वप्रथम कॉफ़ी का चलन यमन के सूफी संतों में देखा गया था, वे कॉफ़ी के बेर इथोपिया से खरीदते थे. यह भी कहा जाता है कि शेख उमर, जो प्रार्थनाओं के माध्यम से रुग्न को ठीक किया करता था को यमन में निर्वासन के दौरान पास की कंटीली झाड़ियों में बेर जैसा कुछ दिखा, भूख से बेहाल उमर को चबाने पर वह बेहद कड़वा लगा, फिर उसने उन्हें कच्चा जान भून दिया तब वे बेर चबाये जाने से अधिक कठोर हो गये, फिर मुलायम करने की गरज से उसने उन्हें पानी में उबाल दिया और इस तरह कॉफ़ी की खोज हुई थी हालाकिं इथोपिया का कहना है कॉफ़ी पीने के प्रचलन उनके यहाँ शुरू हुआ था, पन्द्रहवीं शताब्दी में व्यवसायी के तौर जब वह उत्तर में मिश्र की तरफ़ निकले वहाँ से लाल घाटी और हिन्द महासागर तक कॉफ़ी का प्रसार हुआ । कॉफ़ी, अरेबिक ‘कहवा’ से लिया गया है जबकि मोका ( कॉफ़ी की एक क़िस्म) मुख्यतः यमन के पोर्ट शहर मोका में उगाई जाती है और जावा कॉफ़ी बींस की खेती सोहलवीं शताब्दी से इंडोनेशिया में होने लगी !
मुख्यतः कॉफ़ी के चार प्रकार हैं, अरेबिका, रोबस्टा, एक्सेल्सा और लिबेरिका, हालाँकि अभी तक एक्सेल्सा और लिबेरिका को वह प्रसिद्धि हासिल नहीं हुई है जो अरेबिका, रोबस्टा को लब्ध है। समूचे अफ़्रीका में इथियोपिया अरेबिका का सबसे बड़ा उत्पादक हैं और युगांडा रोबस्टा का। कॉफ़ी का स्वाद इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस परिस्थिति में उगाई गई है, कैसे इसे भूना गया है और कैसे संग्रहित किया गया है।
मैंने कहीं पढ़ा है कॉफ़ी पीने से मूड अच्छा होता है और केन्या से आयातित होने वाली अफ़्रीकैफे मुझे बेहद प्रिय है, इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि इसमें कुछ मिलाया नहीं जाता, यह स्वाद ली गई अनेक कॉफ़ी में सबसे उम्दा क़िस्म है। हम भारतीयों में कॉफ़ी की समझ कम है, हम अमरीका या अन्य पश्चिमी देशों से आयातित कॉफ़ी अधिक पसंद करते हैं, दरअसल अभी तक हम असली स्वाद से महरूम हैं, वे अफ़्रीका से कॉफ़ी बींस ले जाते हैं उसे अपने तरीक़े से मिलावट कर तैयार करते हैं। पिछले दिनों बेटे के कहने पर स्टार बक्स का एक कैन ले आई जो मुझसे पी न गई, स्वाद के अतिरिक्त जो मैंने नोट किया वह यह कि कॉफ़ी के मग में नीचे एक हल्का गाढ़ा दानेदार लेयर मिलता था!
हम भारतीय को लगता है कॉफ़ी एक यूरोपियन गर्म पेय है, अपने यहाँ कॉफ़ी अधिकाँश ठण्ड में पी जाती है और टी वी कमर्शियल भी ठंड के दिनों में ही आता है !
मैं बिना दूध और चीनी वाली कॉफ़ी, अर्थात् ब्लैक कॉफ़ी (भारत में अमेरिकानों ) पसंद करती हूँ, कहते हैं जो कॉफ़ी में दूध मिला पीते हैं वे कॉफ़ी का असली स्वाद कभी नहीं जान पाते हैं और जो चीनी मिलाते हैं वे कॉफ़ी का सत्यानाश करते हैं।
इथियोपिया में कॉफ़ी फ़िंजन ( बिना हैंडल वाला छोटा कप ) में परोसी जाती है, थोड़ी मात्रा में । कॉफ़ी बहुत नहीं पी जाती किंतु पश्चिम के बाज़ारबाद ने ना सिर्फ़ कॉफ़ी के स्वाद का सत्यानाश किया बल्कि कॉफ़ी मग इंट्रोड्यूस कर मात्रा का भी। अरब के बड़े बड़े जलसों में भी कॉफ़ी पारंपरिक ढंग से छोटे फ़िंजन में परोसी जाती है, फिंजन जैसे ही खाली होता है सेवक पुनः भर देते हैं। हालांकि इस बाबत अमरीकी खूब हंसते हैं लेकिन अरब का कहना है कॉफ़ी का असल स्वाद गर्म पीने में ही है, कॉफ़ी गर्म पेय है भी!
पिछले दिनों मुझ कॉफ़ी पिपासु को कॉफ़ी फ़ार्म पर जाने का मौक़ा मिला, कॉफ़ी प्लांट की तस्वीर साझा कर रही हूँ 😍

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