मैं प्राइवेट स्कूल चलाता हूं और प्राइवेट स्कूल का ही विरोध करता हूं क्योंकि मैं इस व्यवस्था का मारा हुआ नागरिक हूं।पढ़ने लिखने के बाद जब कोई काम नहीं मिला तो मजबूरी में बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। थोड़ा ज्यादा बच्चे हो गए तो दो कमरे का स्कूल बन गया। वक्त निकलते चला गया और नौकरी की उम्र खत्म हो गई। अब सारे सपने धरे के धरे रह गए। बस उसी दो कमरे से तीन और तीन से चार कमरे हो गए।
बच्चों को पढ़ाने का काम जारी रहा इन बच्चों को क्या मालूम कि आने वाले दिनों में जब यह बड़े होंगे तो यह भी मेरी तरह बेरोजगारों की कतार में खड़े हो जाएगें।
सच पूछिए तो गलत शिक्षा नीति का शिकार हुआ हूं मैं।
मुझे पढ़ने के दौरान कमाने का हुनर नहीं सिखाया गया।केवल दिया गया सूचना इंफॉर्मेशन जानकारी।
सरकार के पास क्या नहीं है। सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती। मगर यह सरकार करती क्यों नहीं। हमें सवाल सरकार से पूछनी चाहिए सरकार के पदाधिकारी और सरकार के मंत्री अपने बच्चों को हाई क्लास प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं मोटी मोटी फीस चुकाते हैं। यह पैसा कहां से आता है वह अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ाते।
वे जानते हैं सरकारी स्कूल में पढ़ाई अच्छी नहीं होती वहां बैठने के अच्छे साधन नहीं होते कमरों में लाइट नहीं होती वहां पर शौचालय की व्यवस्था नहीं होती। अच्छी पढ़ाई नहीं होती। वहां गरीब गुरबा के साधारण बच्चे पढ़ते हैं।
मेरा दो कमरे का वही स्कूल अब एक बिल्डिंग बन गया है जिसमें कई कमरे हैं और कमरों में सारी सुविधाएं भी मौजूद है। यहां पर अमीर लोगों के बच्चे भी पढ़ने आने लगे हैं, साफ-सफाई का भी ध्यान रखा जाता है और वह सारी सुविधाएं भी दी जाती है। पढाई एक नम्बर, जो पढा़ई एक हाई क्लास प्राईवेट स्कूल में दिए जाते हैं। अभी मेरे स्कूल को सरकारी मान्यता नहीं मिली है। अब मैं प्रयास कर रहा हूं कि हमारे स्कूल को भी सरकारी मान्यता मिल जाए और कुछ दिनों के बाद मोटी फीस चुकाने के बाद या यूं कहें कि एक मोटी रकम घूस के तौर पर देने के बाद मेरे स्कूल को भी सरकारी मान्यता मिल गई। अब क्या था मेरे स्कूल में बेरोजगारों के बायोडाटा आने लगे और शुरू हुआ बेरोजगारों का फिर से एक नया शोषण का काम। बहुत कम तनख्वाह में बहुत सारे बेरोजगार लड़के लड़कियां जो पढ़ लिख कर बेकार थे वह अब मेरे स्कूल में काम करने के लिए तैयार थे। क्या किया जाए मजबूरी थी। घर जो चलाना था। पढ़ लिख कर कोई दूसरा काम नहीं कर सकते थे इसलिए फिर से वह पढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ दिनों के बाद मेरे स्कूल के कुछ छात्र अपने टीचर से घर पर जाकर ट्यूशन पढ़ने लगे। अब क्या था ट्यूशन पढ़ते पढ़ते छात्रों की संख्या बढ़ने लगी और फिर दो कमरे का एक नया स्कूल खुल गया।आगे की कहानी क्या होगा यह आपको बताने की जरूरत नहीं। ऐसा नहीं है कि सभी लोग शिक्षक ही बन जाते हैं कुछ लोग बेरोजगारी की हालत में ना चाहते हुए भी छोटे-छोटे कारोबार से जुड़ जाते हैं और सेठ बनियों के हुक्मरानी गुलामी का शिकार बन जाते हैं।
जिंदगी भर सेठ बनिए साहूकार उनका शोषण करते हैं लेकिन वह भी अपने बच्चों को पढ़ाते हैं जी हां सरकारी स्कूल में। सरकारी स्कूल में मुफ्त में खाना जो मिलता है कहीं-कहीं कपड़े भी मिल जाते हैं लेकिन पढ़ाई नहीं होता। यहां के बच्चे बड़े होने के बाद स्कूल नहीं खोलते वह बेकारी और बीमारी में फंस कर अपनी जिंदगी बर्बाद होते देखते रहते हैं। डिग्री मिलने के बाद वे भी सपने देखने लगते हैं और बड़े-बड़े शहरों में पेपर कटिंग को निकालकर फॉर्म भरते हैं। और इस तरह से करोड़ों रुपए सरकारी खजाने में जमा हो जाता है। इनका शोषण सरकार भी करती है और बड़े-बड़े प्राइवेट इंडस्ट्रीज के मालिक भी।
हमारे पास हमारा संविधान है। संविधान में साफ तौर पर लिखा है कि हम भारत के लोगों को शिक्षा का अधिकार है।और यह सरकारी शिक्षा सरकार को देना चाहिए जब सरकारी शिक्षा उच्च स्तर का हो जाएगा और पढ़ लिखकर लोग स्कूल खोलने के बजाय अपने बिजनेस व्यापार खोलेंगे और बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करेंगे नौकरी करेंगे तरक्की करेंगे तो हमारा देश ऐसे ही तरक्की कर जाएगा। जब सरकारी स्कूल बेहतर हो जायेगें तब हमें प्राइवेट स्कूल खोलने की जरूरत ही नहीं पडे़गी।
हमें लडा़ई सरकारी शिक्षण संस्थान को बेहतर करने के लिए लड़नी चाहिए। आइए हम सब मिलकर एक सुर में सरकारी स्कूल को बेहतर बनाने के लिए आवाज़ उठाएं। यह आवाज तब तक नहीं रुकनी चाहिए जब तक इसमें सुधार ना हो जाए।
भंगी का बच्चा हो या मंत्री का संतान।
सबको मिले शिक्षा एक समान।।
मो मेहबूब आलम
आप, बोकारो।