28 सितंबर 2020, लुधियाना। आज लुधियाना के गाँव जंडियाली में नौजवान भारत सभा की इकाई ने गाँव में शहीद भगत सिंह की याद में समागम करवाया। समागम में पहुँचे सैंकड़ों लोगों ने अपने महबूब शहीद को भावभिन्नी श्रद्धांजलि अर्पित की। वक्ताओं ने शहीदे-आज़म के सपनों का समाज बनाने के लिए जारी संघर्ष का हिस्सा बनने का आह्वान किया, हुक्मरानों के मौजूदा हमलों का मूंह तोड़ जवाब देने के लिए विशाल जनांदोलन खड़ा करने की फौरी ज़रूरत पर जोर दिया। क्रांतिकारी गीत-संगीत और नाटक ‘गढ्ढा’ के जरिए मेहनतकश जनता के दुख-तकलीफों की बात हुई और एकजुट संघर्ष का संदेश दिया गया। नाटक ‘गढ्ढा’ पेश किया और अनेकों क्रांतिकारी गीत पेश किए गए।
समागम को नौजवान भारत सभा के नेताओं गुरिंदर, नवजोत, अदारा ‘ललकार’ के लखविंदर और कारखाना मज़दूर यूनियन की विमला ने संबोधित किया। रजिंदर जी ने मंच संचालन किया। वक्ताओं ने कहा कि शहीद भगतसिंह का जन्म दिन मनाना एक रस्म अदायगी नहीं है। आज देश के मज़दूरों,मेहनतकशों, नौजवानों को जिन भयंकर हालातों से गुजरना पड़ रहा उनमें भगतिसंह को याद करना बेहद ज़रूरी है। हमें यह याद करना होगा कि भगतसिंह की लड़ाई महज विदेशी हकूमत के खिलाफ नहीं थी बल्कि देशी शोषक वर्गों के खिलाफ भी थी। भगतसिंह और उनके साथियों के दस्तावेज इस बात का सबूत हैं कि वे भारत में मज़दूरों-मेहनतकशों का राज चाहते थे न कि पूंजीवाद। सन् 1947 के बाद देश की हकूमत पर पूंजीपतियों के हुए कब्जे का ही नतीजा है कि आज देश की अस्सी फीसदी आबादी गरीबी-बदहाली की असहनीय परिस्थितियों का सामना कर रही है। देश में आज तक जितनी भी सरकारें बनीं हैं सभी पूंजीपतियों के हितों के लिए ही काम करती आई हैं। लोकतंत्र महज नाम के लिए है, वास्तव में यहाँ लूटतंत्र है। इस लूटतंत्र के खात्मे के लिए आज जरूरी है कि मज़दूर-मेहनतकश-नौजवान जागें, एकजुट हों और क्रान्तिकारियों के सपनों का समाजवादी-लोकराज्य कायम करने के लिए संघर्ष करें। इसलिए आज शहीद भगतसिंह के विचारों और कुर्बानी से प्रेरणा लेनी होगी।
वक्ताओं ने कहा कि मौजूदा मोदी हुकूमत जनआवाज़ को अनसुना करते हुए बेहद जनविरोधी नए श्रम, बिजली और श्रम कानून लागू करने की तैयारी कर रही है। इससे पहले जी.एस.टी., नोटबंदी, नागरिकता संशोधन कानून, नागरिक रजिस्टर व आबादी रजिस्टर जैसे घोर जनविरोधी कदम उठाए गए हैं। मोदी रोज में जनता पर आर्थिक, राजनीतिक, समाजिक हमला बेहद तेज़ हुआ है। मज़दूरों-मेहनतकशों, अल्पसंख्यकों, दलितों, राष्ट्रीयताओं, स्त्रियों पर जुल्मों-सित्म पहले से कहीं अधिक तेज़ हो चुके हैं। मज़दूरों-मेहनतकशों को मज़बूत आन्दोलन के निर्माण के जरिए फासीवादी हुक्मरानों की इन घोर जनविरोधी नीतियों का मूँह तोड़ जवाब देना होगा।