बच्चा लाल उन्मेष के रचनाकर्म पर महान शब्द-साधक मुसाफिर बैठा के विचार

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एक नई महत्वपूर्ण कविता पुस्तक के आगमन की जानकारी लीजिए :
मैं समझता हूं कि यदि कोई तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो बच्चा लाल ’उन्मेष’ कम से कम हिंदी की नई पीढ़ी के उन कवियों में, जो वैज्ञानिक सोच की दलित–वंचितों के कंशर्न वाली तुकांत एवं गेय कविताएं रचते हैं, हमारे समय में सर्वश्रेष्ठ साबित होंगे। हालांकि, मैंने जो कहा है, वह एक सब्जेक्टिव धारणा है, लेकिन मैं यह बात संजीदगी से कह रहा हूं, कविता की अपनी समझ के अनुसार कह रहा हूं।
करीब डेढ़ साल पहले ’उन्मेष’ की ’कौन जात हो भाई’ नामक कविता सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। इस कविता का संक्रमण इतना व्यापक और सकारात्मक हुआ कि वह कुछ विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल हुई और हिंदी साहित्य के प्रश्न पत्रों में इस कविता पर प्रश्न पत्र भी पूछे गए।
मैं यह परिचयात्मक टिप्पणी ’उन्मेष’ के अभी अभी आई कविता पुस्तक ’बहार के पतझड़’ के लिए लिए लिख रहा हूं। जबकि ’कौन जात हो भाई’ कविता के वायरल होने के कुछ दिनों के बाद ही उनके दो संग्रह ’कौन जात हो भाई’ और ’छिछले प्रश्न गहरे उत्तर’ इकट्ठे ही प्रकाशित हुए थे।
’उन्मेष’ ने पिछले संग्रहों की तरह ही यह पुस्तक भी डाक से मुझे भेजवाई। आभार उनका।
ध्यान देने योग्य तथ्य है कि वायरल होने के चलते उन्हें कलमकार पब्लिशर्स और न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ने उनसे कविता संग्रह की पांडुलिपि मांग कर छापा।
प्रस्तुत तीसरा संग्रह ’बहार के पतझड़’ भी न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन द्वारा मांग कर ही छापा गया है।
आप देखेंगे कि कवि की अधिकांश कविताएं सहज ही बोधगम्य तो हैं मगर, वह विशिष्ट शैली में लिखी गई हैं। कहना चाहिए कि कवि ’उन्मेष’ ने अपनी अलग कविता शैली विकसित की है।
मुझे लगता है कि अगर, कोई ’सरोकारी जनकवि’ की धारणा हो सकती है तो इस कवि को मैं उसमें सर्वथा फिट होते हुए पाता हूं।
कवि के पिछले दोनों संग्रहों में कवि परिचय दिया गया था, इस संग्रह में नहीं दिया गया है। शायद, यह माना गया है कि कवि का अब नाम ही काफ़ी है, जो कि सच भी है।
पुस्तक की कई कविताओं के अंत में रेखाचित्र भी दिए गए हैं जो कविता के पढ़े जाने वक्त शब्दों के प्रभाव को गहरा करने में सक्षम हो सकते हैं।
128 पृष्ठों की इस कविता पुस्तक की पेपरबैक में क़ीमत ₹200 रखी गई है। पुस्तक की साज सज्जा, छपाई और उसमें इस्तेमाल किया गया कागज़ स्तरीय है।
मुसाफिर बैठा

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