कोरोना वायरस के इस अंतरराष्ट्रीय हमले ने कुछ बुनियादी सवाल खड़े कर दिए हैं जिनका जवाब न दिया गया तो भविष्य में इस प्रकार के हमलों सेम बचना और कठिन होगा।
साधन संपन्न लोगों ने अपने लिए एक सुरक्षित दुनिया बनाई थी और उन्हें लगता था कि उनकी दुनिया पूरी तरह सुरक्षित है।
उन्हें इसकी चिंता न थी कि उनके नौकर- चाकर, कर्मचारी उनके लिए काम करने के बाद कहां रहते हैं? क्या खाते हैं? उनके बच्चे स्कूल जाते हैं क्या? उनके परिवार के लिए दवा इलाज का बंदोबस्त है या नहीं ?
लेकिन कोरोनावायरस ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह सोच गलत थी।
वायरस यदि गरीब लोगों और झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में फैलेगा तो एक सीमा के बाद उससे मध्यम, उच्च मध्यम और धनवान वर्ग भी नहीं बचेगा।
इसलिए बुनियादी सवाल यह है कि हमने जिस प्रकार का निस्सीम असमानता वाला समाज बनाया है क्या वह हम सब के,देश और दुनिया के लिए सुरक्षित है?
हम अत्यधिक ऊर्जा का इतना इस्तेमाल इसीलिए करते हैं कि हमने अपने लिए महानगर बनाए हैं जहां का जीवन अधिक ऊर्जा के बिना नहीं चल सकता। सवाल यह है की हमने महानगर क्यों बनाए हैं?
हमने जो स्टैंडर्ड ऑफ लाइफ के मानक तय किए हैं वह क्यों किए हैं? किसके कहने पर किए हैं?
अधिक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए हम प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ देते हैं और उसका विपरीत प्रभाव सब के जीवन पर पड़ता है ।
शहरों के पक्ष में एक तर्क यह दिया जाता है कि वे बढ़ती हुई आबादी के कारण बने हैं।
अब सवाल यह है की आबादी क्यों बढ़ती है?
सब जानते हैं आबादी बढ़ने का पहला और बुनियादी कारण गरीबी, अशिक्षा और अज्ञानता है।
इसलिए जब तक पूरी दुनिया से गरीबी अशिक्षा और अज्ञानता को दूर नहीं किया जाता तब तक आबादी के बढ़ने को रोका नहीं जा सकता और बढ़ती हुई आबादी संसार के लिए एक तरह का टाइम बम है, जो फटेगा जरूर।
कोरोना वायरस प्रकोप ने यह भी साबित कर दिया है कि कोई देश अपनी सीमाओं में भी सुरक्षित नहीं है।
इसलिए हमें अपने देश की सीमाओं के बाहर पूरे संसार के बारे में सोचने की आवश्यकता है।
पुरानी बात है लेकिन इस पर अब तक अमल नहीं किया जाता। यही कारण है कि संसार के कुछ देश बहुत गरीब और अशिक्षित हैं।
विश्व की निस्सीम असमानता विश्व के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
इस महामारी में यह भी चेतावनी दी है कि संसार के हर देश की सरकार अपने बजट का सबसे अधिकांश शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करे। ये दोनों सुविधाएं प्रत्येक नागरिक को प्रारंभ से अंत तक मुफ्त दी जाए।
पूरा संसार ‘नो वार पैक्ट’ साइन करें। सारे साधन सामाजिक विकास के लिए लगाए जाए।
कोराना वायरस से लोग भयभीत हैं। होना भी चाहिए। लोगों का भय सत्ता को अतिरिक्त शक्ति दे देता है। संकट के समय में सत्ता को अधिक अधिकार चाहिए होते हैं लेकिन इस बहाने सत्ता और अतिरिक्त अधिकार प्राप्त कर लेती है।
कोरोना के दौरान और उसके बाद कई देशों की सरकारों का तानाशाही स्वरूप स्थापित होने का भी डर है।
असगर वजाहत