संपादकीय टिप्पणीः 1984 में एक फिल्म आई थी जिसका नाम पार्टी था।
(35) Party(1984) by Govind Nihalani #art #cinema #indianfilm #indiancinema #naseeruddinshah #ompuri – YouTube
इस फिल्म की एक क्लिप देख रहा था।
क्रुप्सकाया के इस लेख और पार्टी फिल्म की विषयवस्तु मिलती-जुलती जान पड़ी। कोई सरोकारी व्यक्ति इस क्लिप के संवाद को अगर लिखित में उपलब्ध करवा दे तो मौज़ आ जाए।
हमें अपने व्यक्तिगत जीवन को उस ध्येय से संबद्ध करने की कोशिश करनी चाहिए जिसके लिए हम संघर्ष कर रहे हैं, अर्थात् साम्यवाद-निर्माण के ध्येय से।
इसका, बेशक़, यह आशय नहीं है कि हमें अपनी व्यक्तिगत जीवन का परित्याग कर देना चाहिए। साम्यवादी पार्टी कोई संप्रदाय नहीं है, और इसलिए इस तरह के वैराग्य की वक़ालत नहीं की जानी चाहिए।
एक बार किसी कारखाने में अपने साथियों को संबोधित कर रही महिला को कहते सुना था, “कामकाजी महिला साथियों! आपको ये याद रखना चाहिए कि एक बार आपने पार्टी ज्वाइन कर ली, फिर आपको अपने पति और बच्चों को त्याग देना होता है।”
बेशक़, यह इस मामले का दृष्टिकोण नहीं है।
विषय अपने पति और बच्चों की उपेक्षा करने का नहीं, अपितु बच्चों को साम्यवाद का योद्धा बनाने के लिए उनके प्रशिक्षण का है, चीज़ों को इस तरह व्यवस्थित करने का है ताकि पति भी वैसा ही योद्धा बन जाए।
हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन का विलय समाज के जीवन में करना सीखना चाहिए। यह कोई वैराग्य नहीं है। इसके ठीक विपरीत, इस विलय का तथ्य, यह तथ्य कि समस्त श्रमजीवी मनुष्यों का समान ध्येय व्यक्तिगत मामला बन जाता है, व्यक्तिगत जीवन को और समृद्ध बनाता है। यह हीन नहीं होता, यह गहरे और रंग-बिरंगे अनुभव देता है, जो एक नीरस पारिवारिक जीवन कभी नहीं दे पाया है।
साम्यवाद के लिए कार्यों में, साम्यवाद का निर्माण करने के लिए श्रमजीवी लोगों द्वारा किए जा रहे कार्यों और संघर्षों में अपने जीवन का विलय करना सीखना उन टास्क्स में से एक है जो हमारे सामने हैं।
तुम, युवा, अपने जीवन के शुरुआत में ही हो, और तुम उन्हें ऐसा बना सकते हो ताकि तुम्हारे व्यक्तिगत जीवन और समाज के जीवन के दरम्यान कोई फ़ासला न रहे!
~नदेज़्दा क्रुप्सकाया
कामता प्रसाद लिखते हैंः