आम्बेडकर जयंती पर ऐपवा की आयोजित की ऑनलाइन परिचर्चा
• संविधान और लोकतंत्र को बचाने का लिया संकल्प
14 अप्रैल2021
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन वाराणसी जिला कमेटी द्वारा 14 अप्रैल, बुधवार को आम्बेडकर जयंती के उपलक्ष्य में “संविधान, लोकतन्त्र और महिलाएं” विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया।
परिचर्चा में हाल में रैडिकल अंबेडकरवादी, विद्रोही पत्रिका के संपादक, कल्चरल एक्टिविस्ट का. वीरा साथीदार को श्रद्धांजलि दी गई जिनका पिछले दिनों महाराष्ट्र में कोरोना से निधन हो गया था।
परिचर्चा का संचालन करते हुए ऐपवा जिला सचिव स्मिता बागड़े ने अरुंधति राय की पुस्तक “एक था डॉक्टर एक था संत” के संस्मरण का संक्षित पाठ करते हुए डॉ आंबेडकर के नेतृत्व में चलाए गए पानी सत्याग्रह का जिक्र किया और कहा कि महाड सत्याग्रह शूद्रों- अतिशूद्रों के संघर्षों के इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ी है। इसके माध्यम से ब्राह्मणवाद-मनुवाद को खुली चुनौती दी गई थी।
गांधी स्टडीज सेंटर से डॉ मुनीज़ा रफीक़ खान ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर सिर्फ संविधान निर्माता ही नहीं थे बल्कि प्रखर नारीवादी भी थे। वह महिलाओं की सम्पूर्ण आज़ादी के हिमायती थे और किसी समुदाय की तरक़्क़ी का पैमाना महिलाओं की तरक़्क़ी से आंकने की बात करते थे। हिन्दू कोड बिल में पेश किए गए महिलाओं के कानूनी अधिकार डॉ आम्बेडकर का एक क्रान्तिकारी कदम माना जाता है।
शोध छात्रा अंशु कुमार ने कहा कि डॉ आंबेडकर को सिर्फ दलित चिंतक के रूप में देखना संकीर्ण दृष्टिकोण है जबकि उन्होंने समाज में मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के खिलाफ, गैर बराबरी के खिलाफ और समानता, जाति विहीन समाज निर्माण की बात कही थी। उन्होंने कहा कि आम्बेडकर का सामाजिक दृष्टिकोण कार्ल – मार्क्स के भी नजदीक हैं इसलिए हमें आज दोनों दार्शनिकों के तुलनात्मक अध्ययन की भी जरूरत दिखायी पड़ती है।
नागपुर में दलित आंदोलन की सक्रिय कार्यकर्ता रही वरिष्ठ साथी माया वासनिक ने कहा कि बाबा साहब अपने विचारों में अडिग थे । अपने विचारों और सिद्धांतों से उन्होंने कभी समझौता नही किया इसलिए हिन्दू कोड बिल को जब नेहरू के कैबिनेट के मंत्रियों ने महिला विरोधी रुख रखते हुए पास नहीं होने दिया तो उन्होंने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।माया जी ने यह भी कहा कि वर्तमान में महिलाओं के साथ बढ़ रहे यौन शोषण को देखते हुए आज किसी मंत्री में इतनी शर्म है कि वह मंत्रीपद त्याग दे? लेकिन बाबा साहब में वह बल था।
बीएलडब्लू(BLW) से एम. भावना ने कहा कि आधुनिक भारत के निर्माण की जो नींव रखी गई उसमें डॉ आंबेडकर के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
ऐपवा राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने कहा कि भाजपा की जनविरोधी सरकार सम्विधान को ताक पर रखकर जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का दमन कर रही है ऐसी विषम परिस्थिति में डॉ आम्बेडकर के विचारों और दर्शन को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। आज महिला विरोधी भाजपा सरकार महिला आज़ादी पर अंकुश लगाने वाले कानूनों का निर्माण करके मनुस्मृति के विचारों को समाज में स्थापित करना चाह रही है लेकिन महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई , भगतसिंह और डॉ आम्बेडकर, से प्रेरणा लेते अपनी आज़ादी और अधिकारो के लिए आगे आ रहा है।
परिचर्चा में ऐपवा जिला अध्यक्ष सुतपा गुप्ता ने , जिला सहसचिव सुजाता भट्टाचार्य, शोध छात्रा पूनम भारतीय, बीएलडब्लू से अनीता एवं कुसुम वर्मा, मेडिकल रिप्रजेंटेटिव सोनिया घटक आदि महिलाओं ने अपनी बात रखी।
परिचर्चा में वर्तमान सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओ को तत्काल जेल से रिहा करने की मांग की गई।