- विशद कुमार
आदिवासी सेंगेल अभियान (ASA)/ झारखंड दिशोम पार्टी ( JDP ) के अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा है कि लगता है भाजपा-आरएसएस आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों और पिछड़ों को जबरन अपना गुलाम बनाकर छोड़ेगी। उक्त प्रतिक्रिया झारखंड के पूर्व मुख्यमन्त्री एवं भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी द्वारा दिए गए वक्तव्य कि “आदिवासी जन्म से हिन्दू हैं” पर सालखन मुर्मू ने दी।

उन्होंने आगे कहा कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का वक्तव्य – “आदिवासी जन्म से हिंदू हैं” सरासर गलत है, भ्रामक है, अपमानजनक है, खतरे की घंटी है। बाबूलाल मरांडी ने केवल सत्ता सुख और निजी स्वार्थ के लिए आदिवासी समाज को बेचने का दुस्साहस किया है। यह संविधान के अनुच्छेद 19, 21, 25 के तहत आदिवासियों के मौलिक अधिकारों पर हमला है। यह वक्तव्य धार्मिक अपहरण और धार्मिक बलात्कार जैसा एक आपराध है। बाबूलाल माफी मांगे नहीं तो हम दर्ज करेंगे मुकदमा। बाबूलाल संघी गुलाम हैं। संघ ने बाबूलाल के कंधे में बंदूक रखकर भारत के आदिवासियों को गुलाम बनाने के षड्यंत्र को जगजाहिर कर दिया है। अत: पूरे भारत में आदिवासियों को जबरन हिंदू बनाने के इस षड्यंत्र के खिलाफ जोरदार आवाज बुलंद करना जरूरी है। भाजपा / आरएसएस आदिवासी विरोधी हैं, सरना धर्म विरोधी हैं। अतः बाबूलाल के बयान से ऐसा लगता है कि बाबूलाल हिन्दू धर्म में शुद्र बन चुके हैं ?
आदिवासी सेंगेल अभियान और झारखंड दिशोम पार्टी इस मनुवादी षड्यंत्र के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध का आह्वान करती है। भाजपा और आर एस एस का पुतला दहन कर 5 प्रदेशों में सर्वत्र विरोध दर्ज होगा। बाबूलाल मरांडी के पीछे मोहन भागवत, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा का हाथ है। बाबूलाल मरांडी के साथ उक्त चारों आदिवासी विरोधियों का पुतला दहन होगा। आशा है बाकी सभी आदिवासी संगठन इसमें सहयोग करेंगे।
भारत के आदिवासी आर्य नहीं है। वे अनार्य हैं। हिंदू धर्म और संस्कृति आर्यों की देन है। जबकि भारत के आदिवासी आर्यों के पूर्व से भारत में निवास करते रहे हैं। आदिवासी आर्यन नहीं बल्कि द्रविड़ या ऑस्ट्रिक भाषा समूह के लोग हैं। आदिवासियों की भाषा- संस्कृति, इतिहास आर्यों ( हिंदू ) से भिन्न है। आदिवासी मूर्ति पूजक नहीं, प्रकृति पूजक है। आदिवासीयों की पूजा-पद्धति, सोच-संस्कार, पर्व-त्यौहार आदि सभी प्रकृति से जुड़े हुए हैं। आदिवासी प्रकृति को ही अपना पालनहार मानते हैं। आदिवासी प्रकृति का दोहन नहीं, पूजा करते हैं। आदिवासियों के बीच ऊंच-नीच और वर्ण व्यवस्था नहीं है। दहेज प्रथा भी नहीं है। आदिवासियों का जन्म, शादी विवाह, श्राद्ध, पर्व त्यौहार आदि हिंदू विधि, रीति- रिवाज से नहीं। बल्कि बिल्कुल आदिवासी विधि व्यवस्था से आदि काल से चला आ रहा है। आदिवासियों के बीच स्वर्ग नरक की परिकल्पना नहीं है। वे अपने मृत पूर्वजों की आत्मा को अपने बीच रखते व पाते हैं। आदिवासी अभी भी हिन्दू कानून के अधीन नहीं हैं।
आदिवासी भारत के असली मूलवासी या इंडीजीनस पीपुल हैं, जबकि बाकी आर्यन बाहर से पधारे हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को नष्ट करते हुए अनार्यों पर हमला कर भारत पर कब्जा जमाया है। अब आर एस एस आदिवासियों को वनवासी, वनमानुष बनाने पर उतारू है। ASA और JDP झारखंड, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम में संगठित रूप से कार्यरत है। अतः इस मुद्दे पर हम सर्वत्र आरएसएस / बीजेपी का विरोध दर्ज करेंगे। ताकि भारत के जनमानस को पता चले कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं।
भारत में 2021 जनगणना का वर्ष है। हम भारत के अधिकांश आदिवासी प्रकृति पूजक हैं। अतः सरना धर्म या अन्य विभिन्न नामों से अपनी धार्मिक अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी और एकता को बचाए रखने के लिए कटिबद्ध है। अपनी धार्मिक पहचान के साथ जनगणना में शामिल होना हमारा अधिकार है। मगर बीजेपी/ आर एस एस हमारे मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट), मानवीय अधिकार (ह्यूमन राइट्स) और आदिवासी अधिकार ( इंडिजेनस पीपल राइट्स – यूएन ) को दरकिनार कर जबरन हमें हिंदू बनाने पर उतारू है। जबकि झारखंड सरकार और बंगाल सरकार ने केंद्र को आदिवासियों की धार्मिक मांग-सरना धर्म कोड की अनुशंसा कर दिया है। परंतु भाजपा और आर एस एस ने अब तक इस मामले पर चुप्पी साधकर आदिवासी विरोधी, सरना धर्म विरोधी होने का प्रणाम प्रस्तुत कर दिया है। जो भारत के लगभग 15 करोड़ आदिवासियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। लगता है भाजपा-आरएसएस बाकि बचे दलितों, अल्पसंख्यकों और पिछड़ों को जबरन अपना गुलाम बनाकर छोड़ेंगे।