वाराणसीः आमवात जिसे आम बोलचाल की भाषा में गठिया बोलते हैं, इसमें शरीर के कई जोड़ों में असहनीय दर्द, सूजन, बुखार आदि लक्षण होते हैं। यदि समय पर इलाज नहीं किया जाय तो उंगलियां आदि स्थायी रूप से टेढ़े हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को अपने दैनिक कार्यों को करने में बहुत तकलीफ़ होती है। कई बार रोगी हीनभावना के कारण मानसिक अवसादग्रस्त हो जाते हैं।
एलोपैथिक दवाएं इसमें लाभ तो पहुंचाती हैं मगर स्थायी समाधान अक्सर नहीं मिल पाता है। साथ ही लम्बे समय तक लेने से ये दवाएं लिवर, गुर्दे, आंत आदि को नुक्सान भी पहुंचा सकती हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित आयुर्वेद संकाय के काय चिकित्सा विभाग में इस बीमारी पर एक शोध कार्य संपादित किया गया जिसमें आयुर्वेदिक औषधि “अमृतादि चूर्ण को रोगियों में दिया गया, जिसके मुख्य घटक गिलोय, गोक्षुर, सोंठ, गोरखमुंडी और वरुण है। यह शोध आमवात के साठ मरीजों पर किया गया जिनको 20-20 की संख्या में तीन समूह में बांटा गया। पहले समूह के मरीजों को मात्र अमृतादि चूर्ण दिया गया दूसरे ग्रुप के मरीजों को अमृतादि चूर्ण के साथ-साथ सत्वावजय चिकित्सा भी दी गई जो की मानसिक अवसाद के लिए अत्यंत लाभकर है। तीसरे समूह के मरीजों को एक एलोपैथिक दवा दी गई। सभी मरीजों को 3 महीने तक चिकित्सा दी गई जिसके दौरान उनके विभिन्न लक्षणों का अध्ययन किया गया। तत्पश्चात यह निष्कर्ष निकाला के पहले समूह के मरीजों को बीमारी ठीक करने में सबसे ज्यादा लाभ मिला। हालांकि तीसरे ग्रुप जिसको कि एलोपैथिक दवा दी गई थी उनको तात्कालिक रूप से दर्द में ज्यादा आराम हुआ किंतु यदि आमवात के संपूर्ण समस्याओं को देखा जाए तो प्रथम ग्रुप के मरीजों को ज्यादा लाभ मिला। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जो पुराने गठिया के मरीज हैं उनका स्थाई समाधान के लिए अथवा बिना किसी साइड इफेक्ट के उसके लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक औषधि अमृतादि चूर्ण अत्यंत लाभकारी है। इस शोध कार्य का प्रकाशन वर्तमान में ‘एनल्स आफ आयुर्वैदिक मेडिसिन’ नमक जर्नल में प्रकाशित किया जा रहा है। उपरोक्त शोध काय चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद एवं प्रोफेसर ज्योति शंकर त्रिपाठी के निर्देशन में शोध छात्रा डॉ खुशबू अग्रवाल के द्वारा संपादित किया गया था।