अलीगढ़, 20 फरवरीः आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कला संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर टीएन. सतीशन, प्रोफेसर आशिक अली अध्यक्ष हिंदी विभाग, संस्कृत विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर सारिका वाष्र्णेण्य, डा. अकील अहमद और कहानी पंजाब के संपादक प्रोफेसर क्रांतिपाल ने किया।
हिंदी विभाग के अजय बिसारिया ने कहानी पंजाब के बारे में बात करते हुए कहा कि पंजाबी कथा साहित्य को समर्पित पत्रिका ‘कहानी पंजाब‘ आज कथा साहित्य के क्षेत्र में एक विशेष स्थान है। जिसकी झलक प्रायः हर अंक में मिल जाती है। इस अंक (105) में ‘भारतीय और विदेशी कथा की कहानियां शामिल की गई हैं। भारतीय कथा में पंजाबी, डोगरी, गुजराती, पंचपरगनीया, खडीया और विदेशी कथा में स्वीडन, स्पेनी, बरमी, फ्रांसीसी कहानियों का पंजाबी अनुवाद पेश किया। उन्होंने कहा कि इस अंक की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसमें में पहला भारतीय उपन्यास नश्तर हसन शाह विशेष आकर्षण का केंद्र है।
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एएमयू के एस.टी.एस. स्कूल में 10वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए विदाई समारोह आयोजित
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सैयदना ताहिेर सैफुद्दीन (एसटीएस.) स्कूल द्वारा कक्षा 10 और 12 के छात्रों के लिए विदाई समारोह का आयोजन किया गया।
मुख्य अतिथि, स्कूल शिक्षा निदेशालय, एएमयू के निदेशक, प्रो. असफर अली खान ने छात्रों को संबोधित करते हुए उन्हें एकाग्र रहने, कठिन परिश्रम करने और मूल्यों को बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सफलता केवल अकादमिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक अच्छे चरित्र, धैर्य और दृढ़ संकल्प का निर्माण भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, पीएम केंद्रीय विद्यालय, अलीगढ़ के प्राचार्य, खुशी राम ने छात्रों को जीवन में चुनौतियों को विकास के अवसर के रूप में अपनाने की सलाह दी। उन्होंने अनुशासन, लगातार सीखने और सकारात्मक दृष्टिकोण को प्राथमिकता देने पर जोर दिया।
स्कूल के प्रधानाचार्य, फैसल नफीस ने छात्रों की उपलब्धियों पर गर्व व्यक्त करते हुए उनके समर्पण, कड़ी मेहनत और विद्यालय में योगदान की सराहना की। उन्होंने यह भी कहा कि विद्यालय छोड़ने के बावजूद, वे हमेशा इस विद्यालय परिवार का एक अभिन्न हिस्सा बने रहेंगे।
इस अवसर पर, अनंत बघेल, सनाउर रहमान और अली मुजतबा ने क्रमशः अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में भावनात्मक भाषण दिए। असद नवाज और मुशर्रफ हुसैन ने नज्म पेश की, मुसैब मक्की ने एक गीत गाया और मोहम्मद आसिफ ने एक मार्मिक कविता का पाठ किया।
कार्यक्रम का संचालन गजाला तनवीर ने किया, जबकि उप-प्रधानाचार्य डॉ. तनवीर हुसैन खान ने अतिथियों का स्वागत किया और सुश्री नसरीन फातिमा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।









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मुईनुद्दीन अहमद आर्ट गैलरी में सांस्कृतिक विरासत प्रदर्शनी का उद्घाटन
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हेरिटेज सेल द्वारा इस्लामिक आर्किटेक्चर सेंटर फॉर एक्सीलेंस और मुईनुद्दीन अहमद आर्ट गैलरी के सहयोग से मुईनुद्दीन अहमद आर्ट गैलरी में ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक विरासत‘ विषय पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया।
इस अवसर पर प्रो. रफीउद्दीन, डीन, छात्र कल्याण, मुख्य अतिथि रहे, जबकि प्रो. निसार अहमद, डीन, फैकल्टी ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, और प्रो. मोहम्मद मुजम्मिल, प्रिंसिपल, जाकिर हुसैन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, मानद अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शामिल हुए। मुख्य अतिथि, प्रो. रफीउद्दीन ने प्रतिभागियों के प्रयासों की सराहना करते हुए उनकी प्रतिबद्धता की प्रशंसा की और उन्हें अपने ज्ञान को आधुनिक विकास के साथ जोड़ते हुए नियमित अभ्यास बनाए रखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने का यही एकमात्र मार्ग है।
इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, हेरिटेज सेल के संयोजक, प्रो. मोहम्मद फरहान फाजली ने बताया कि इस प्रदर्शनी में डिप्लोमा इंजीनियरिंग छात्रों, शोधार्थियों और शिक्षकों सहित विभिन्न विषयों के प्रतिभागियों ने भाग लिया है।
उन्होंने बताया कि प्रदर्शनी में स्केच, कैलीग्राफी, फोटोग्राफ, ड्रॉइंग और भित्तिचित्र समेत 50 से अधिक कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं।
कार्यक्रम में मानद अतिथियों प्रो. बदर जहां, प्रो. शरमिन, प्रो. खालिद हसन और डॉ. नोमान तारिक सहित अन्य शिक्षकों ने विजेताओं को पुरस्कार वितरित किए।
पहला पुरस्कार टीम ‘अक्स‘ को प्रदान किया गया, जबकि दूसरा और तीसरा पुरस्कार क्रमशः टीम ‘मीरास‘ और टीम ‘उफक‘ को मिला।
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प्रो. एम. मासूम रजा द्वारा पंजाब विश्वविद्यालय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर व्याख्यान
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग के अध्यक्ष, प्रोफेसर एम. मासूम रजा ने हाल ही में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के दो दिवसीय दौरे के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर अपनी विशेषज्ञता साझा की।
उन्होंने सबसे पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसः नाऊ एंड नेक्स्ट‘ शीर्षक से एक विशेष व्याख्यान प्रस्तुत किया जिसमें एआई प्रौद्योगिकी के वर्तमान परिदृश्य और विभिन्न क्षेत्रों पर इसके संभावित भविष्य के प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया।
इसके अलावा, उन्होंने आईसीएसएसआर द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान एक तकनीकी सत्र की अध्यक्षता की और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अनुसंधान की रचनात्मकता एवं नैतिकता‘ विषय पर व्याख्यान दिया। इस दौरान उन्होंने अनुसंधान पद्धतियों को सुदृढ़ करने में एआई की भूमिका और इसके नैतिक पहलुओं पर प्रकाश डाला।
अपने संबोधन में, प्रो. रजा ने तकनीकी प्रगति के साथ सूचना विज्ञान के विकसित होते परिदृश्य के अनुसार खुद को ढालने के महत्व पर जोर दिया।
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यूनानी चिकित्सा और उर्दू भाषा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में एएमयू के शिक्षकों द्वारा व्याख्यान प्रस्तुत
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अजमल खान तिब्बिया कॉलेज के कुल्लियात विभाग के प्रोफेसर अश्हर कदीर और डॉ. सफीउर रहमान ने नई दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया के नेहरू कमेटी कक्ष में आयोजित अखिल भारतीय यूनानी तिब्बी सम्मेलन के तत्वाधान में ‘यूनानी तिब्ब से उर्दू का लिसानी रिश्ता‘ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में व्याख्यान प्रस्तुत किए।
प्रोफेसर अश्हर कदीर ने तिब्ब-ए-यूनानी और उर्दू के बाहमी रवाबित‘ विषय पर व्याख्यान देते हुए यूनानी चिकित्सा और उर्दू भाषा के गहरे संबंधों को रेखांकित किया। उन्होंने उर्दू को शिक्षा माध्यम के रूप में अपनाने में आने वाली समकालीन चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला।
डॉ. सफीउर रहमान ने भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली आयोग (एनसीअईएसएम) द्वारा बीयूएमएस छात्रों के लिए अनुशंसित उर्दू भाषा पाठ्यक्रम पर चर्चा की। अपने शिक्षण अनुभव के आधार पर, उन्होंने उन विद्यार्थियों को उर्दू सिखाने की संरचित पद्धति पर प्रकाश डाला, जिन्होंने पहले कभी उर्दू नहीं पढ़ी थी।
दोनों विद्वानों के व्याख्यानों को संगोष्ठी की कार्यवाही में ‘तिब्ब-ए-यूनानी और उर्दू जबान के बाहमी रवाबित‘ शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया, जिसे संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में जारी किया गया।
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डॉ. अजहर जमील एएमयू पॉलिटेक्निक के प्राचार्य का कार्यभार देखेंगे
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी पॉलिटेक्निक के सिविल इंजीनियरिंग सेक्शन में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अजहर जमील को कुलपति द्वारा प्राचार्य का कार्यभार देखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उनका कार्यकाल 23 फरवरी से 15 जून 2025 तक, उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि तक, या प्राचार्य पद के लिए जनरल सेलेक्शन कमेटी की बैठक या अगले आदेश तक प्रभावी रहेगा।
डॉ. जमील शिक्षण और शोध में 42 से अधिक वर्षों का अनुभव रखते हैं। उन्होंने जून 2002 से अक्टूबर 2012 तक दस वर्षों तक सिविल इंजीनियरिंग सेक्शन के प्रमुख के रूप में कार्य किया। इसके अलावा, वे आरएम हॉल और एसएस हॉल (नॉर्थ) के प्रोवोस्ट और एएमयू टीचर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव भी रह चुके हैं। उन्होंने कंक्रीट लैब-वर्किंग मैनुअल पुस्तक लिखी है और प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। साथ ही, उन्होंने विभिन्न सेमिनार, सम्मेलन और कार्यशालाओं में भाग लिया है।
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एएमयू में वरिष्ठ शिक्षक विश्वविद्यालय कोर्ट के सदस्य घोषित
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्लांट प्रोटेक्शन विभाग के प्रो. मुजीबुर रहमान खान, समाजशास्त्र विभाग की प्रो. शीरीन सादिक, फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रो. अफजल हारून, बायोकैमिस्ट्री लाइफ साइंसेज विभाग के प्रो. सलीम जावेद, सुन्नी थियोलॉजी विभाग के प्रो. मोहम्मद हबीबुल्लाह, फाइन आर्ट्स विभाग की डॉ. तलत शकील, अप्लाइड मैथेमेटिक्स विभाग के प्रो. मोहम्मद कमरुज्जमा और पैथोलॉजी विभाग के प्रो. महबूब हसन को विभागाध्यक्षों में वरिष्ठता के आधार पर विश्वविद्यालय कोर्ट का सदस्य घोषित किया गया है।
ये नियुक्तियाँ तीन वर्षों की अवधि के लिए या जब तक वे अपने संबंधित विभागों के अध्यक्ष पद पर बने रहते हैं, जो भी पहले हो, तत्काल प्रभाव से लागू होंगी।
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एएमयू शिक्षक ने भारतिदासन यूनिवर्सिटी और जमाल मोहम्मद कॉलेज में व्याख्यान प्रस्तुत किये
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के यूजीसी मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र की निदेशक, डॉ. फायजा अब्बासी ने भारतिदासन विश्वविद्यालय, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु में व्याख्यान प्रस्तुत किया।
उन्होंने बायोलॉजिकल साइंसेज पर आयोजित सब्जेक्ट रिफ्रेशर कोर्स में 40 शिक्षकों को ‘वन्यजीव विज्ञान संरक्षण में नवीन प्रवृत्तियां विषय पर संबोधित किया। अपने व्याख्यान में उन्होंने जीआईएस, एआई और रोबोटिक्स जैसी उभरती तकनीकों के साथ संरक्षण अनुसंधान के एकीकरण पर जोर दिया। इसके अलावा, उन्होंने कोर्स के समापन सत्र में ‘फेलिसिटेशन एड्रेस’ भी प्रस्तुत किया। साथ ही, उन्होंने विश्वविद्यालय के एनिमल साइंस क्लब के स्नातक, स्नातकोत्तर छात्रों और शोधार्थियों के साथ संवाद किया।
अपनी यात्रा के दौरान, डॉ. अब्बासी ने जमाल मोहम्मद कॉलेज में भी छात्रों को संबोधित किया और ‘लुप्तप्राय प्रजातियों के विशेष संदर्भ में जैव विविधता संरक्षण‘ तथा ‘महिला अकादमिक नेतृत्व‘ विषयों पर व्याख्यान दिए।
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एएमयू के दो प्रोफेसर प्रतिष्ठित फैलोशिप से सम्मानित
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (आईक्यूएसी) के निदेशक, प्रो. असद यू. खान और जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के फार्माकोलॉजी विभाग के अध्यक्ष, प्रो. सैयद जियाउर रहमान को भारतीय जैविक विज्ञान अकादमी (आईएबीएस) द्वारा प्रतिष्ठित फैलोशिप से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उनके उत्कृष्ट शोध योगदान के लिए दिया गया है।
प्रो. असद यू. खान को विज्ञान में उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए और प्रो. सैयद जियाउर रहमान को चिकित्सा क्षेत्र में उनके योगदान के लिए यह फैलोशिप प्रदान की गई। यह पुरस्कार एआईआईएमएस भोपाल द्वारा आयोजित आईएबीएससीओएन 2025 के वार्षिक सम्मेलन में प्रदान किया गया। इस आयोजन में आईआईटी, आईआईएसईआर, एम्स और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों ने भाग लिया।
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समाजिक चुनौतियों के संदर्भ में संगठन और प्रबंधन सिद्धांत पर एक सप्ताह का पाठ्यक्रम आयोजित
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग द्वारा अर्थशास्त्र विभाग के सहयोग से ‘सामाजिक चुनौतियों के संदर्भ में संगठन और प्रबंधन सिद्धांत‘ विषय पर एक सप्ताह का पाठ्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
यह कार्यक्रम शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की स्कीम फॉर प्रमोशन ऑफ एकेडमिक एंड रिसर्च कोलैबोरेशन (एसपीएआरसी) के तहत स्कूल शिक्षा में प्रो सोशल इंटरवेंशंस को संगठित से सम्बंधित परियोजना का एक प्रमुख पहलू है।
इस पाठ्यक्रम में प्रतिष्ठित शिक्षाविद् शामिल हैं, जिनमें प्रो. सुहैब रियाज (एसोसिएट प्रोफेसर, टेल्फर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, यूनिवर्सिटी ऑफ कनाडा), प्रो. अर्जुन भारद्वाज (रिसर्च प्रोफेसर, आइवी बिजनेस स्कूल, वेस्टर्न यूनिवर्सिटी, कनाडा), डॉ. अब्दुल अजीज एन. पी. (असिस्टेंट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग, एएमयू) और डॉ. अहमद फाराज खान (असिस्टेंट प्रोफेसर, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग, एएमयू) शामिल हैं।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. असमर बेग ने बड़ी सामाजिक चुनौतियों पर एकीकृत दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और राजनीति व अनुसंधान के बीच अंतःसंबंध पर प्रकाश डालते हुए बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
इस दौरान प्रो. आयशा फारूक (डीन, मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च संकाय) ने अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया और पाठ्यक्रम की वैश्विक चुनौतियों के समाधान में उपयोगिता को रेखांकित किया।
डॉ. अब्दुल अजीज एन. पी., भारतीय प्रधान अन्वेषक योजना और परियोजना के उद्देश्यों का परिचय दिया।
प्रो. एम. शाफे किदवई (डीन, सामाजिक विज्ञान संकाय) ने मानवता के समक्ष मौजूद जटिल चुनौतियों और अकादमिक विमर्श की भूमिका पर प्रकाश डाला।
प्रो. शहरोज आलम रिजवी (अध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग) ने प्रतिभागियों को बहु-अनुशासनिक दृष्टिकोण से इन चुनौतियों का विश्लेषण करने का अग्रह किया।
प्रो. उमर फारूक (निदेशक, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ, एएमयू) ने शिक्षकों को अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने का आग्रह किया।
प्रो. सुहैब रियाज, जो एएमयू के पूर्व छात्र भी हैं, ने पाठ्यक्रम की संरचना पर चर्चा की, जबकि प्रो. अर्जुन भारद्वाज ने परियोजना की शुरुआत और समाज की चुनौतियों के समाधान में अकादमिक अनुसंधान की भूमिका पर विचार साझा किए।
अंत में, डॉ. अहमद फराज खान, परियोजना के सह-भारतीय प्रधान अन्वेषक, ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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एएमयू में फारसी भाषा, साहित्य और भारत की साझा संस्कृति में महिलाओं की भूमिका पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
अलीगढ़, 20 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फारसी अनुसंधान केंद्र के तत्वावधान में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन ‘फारसी भाषा, साहित्य और भारत की साझा संस्कृति में महिलाओं की भूमिका‘ पर किया गया।
ईरानी संसद के पूर्व अध्यक्ष डॉ. गुलाम अली हदाद आदिल ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि जब भी वह भारत आते हैं, तो अलीगढ़ को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि यह शहर उनके लिए विशेष सम्मान का स्थान रखता है।
फारसी साहित्य में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘दुनिया में हर व्यक्ति की पहली शिक्षिका उसकी मां होती है, जो उसे लोरियों के माध्यम से साहित्य का अभ्यस्त बनाती है। इन लोरियों में कभी-कभी प्राचीन कवियों की रचनाएं भी सम्मिलित होती हैं।‘ उन्होंने यह भी कहा कि आठ वर्षीय युद्ध (जिसे वे ‘जंग-ए-तहमीली‘ कहते हैं) के बाद ईरानी महिलाओं की सोच में एक नया मोड़ आया। इस युद्ध में कई महिलाओं ने अपने परिवारजन खो दिए, और उनके दुःख-दर्द ने नई साहित्यिक विधाओं को जन्म दिया। कुछ महिलाओं ने अपनी डायरी में अपने व्यक्तिगत अनुभव दर्ज किए, तो कुछ ने अन्य दुखी महिलाओं की कहानियों को लिपिबद्ध किया।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून ने कहा कि ‘यह फारसी की मिठास ही है, जिसके रसास्वादन के लिए मैं सुबह से दोपहर तक बैठकर विद्वानों की चर्चा सुनती रही।‘ उन्होंने कहा कि ‘हालांकि मैं फारसी भाषा से परिचित नहीं हूँ, फिर भी इसकी मिठास और कोमलता को महसूस करती हूँ। हम भारतीयों को चाहिए कि इस भाषा को पढ़ें, समझें और प्रचारित करें।‘
प्रोफेसर नईमा खातून ने प्रसिद्ध महिलाओं जैसे गुलबदन बेगम, जहांआरा बेगम, रजिया सुल्तान और सुल्तान जहां बेगम की सेवाओं को याद करते हुए नई पीढ़ी को उनके पदचिह्नों पर चलने का अवहान किया।
मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के कुलपति प्रोफेसर सैयद ऐनुल हसन ने कहा कि ‘फारसी काव्य प्रेम और सौंदर्य का संदेश देता है, जिसमें न केवल सौंदर्य का वर्णन होता है, बल्कि प्रेमियों की भावनाएं, दर्द, शिकायतें और समर्पणभावं भी व्यक्त किए जाते हैं।‘ उन्होंने कहा कि आठ वर्ष के युद्ध के दौरान महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने विचार व्यक्त किए, जिससे फारसी साहित्य को समृद्धि मिली।
फारसी अनुसंधान केंद्र की सलाहकार और संस्थापक निदेशक प्रोफेसर आजरमी दुखत सफवी ने अपने मुख्य भाषण में कहा कि ‘फारसी साहित्य में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी कविता और गद्य में अपनी भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त किया। लेकिन अफसोस की बात यह है कि ऐसी महिलाओं की संख्या मात्र पाँच प्रतिशत से अधिक नहीं रही।‘
उन्होंने बताया कि महिलाओं पर आरंभ से ही प्रतिबंध रहे, जिसके कारण उन्होंने पर्दे के पीछे रहकर अपनी रचनाओं में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मुगल महिलाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि जहांआरा बेगम, नूरजहां बेगम और जेबुन्निसा बेगम जैसी विदुषी महिलाए उल्लेखनीय हैं।
इससे पूर्व संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में फारसी अनुसंधान केंद्र के निदेशक प्रोफेसर मुहम्मद उस्मान गनी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
डॉ. फरीदुद्दीन फरीद अस्र ने अपने संक्षिप्त भाषण में कहा कि ‘महिलाओं से संबंधित जागरूकता आंदोलनों ने हर व्यक्ति को सोचने पर मजबूर किया, भले ही वह इन आंदोलनों से सहमत हो या नहीं।‘ इसी विचारधारा का परिणाम था कि ‘लैला-मजनूं‘ और ‘खुसरो-शिरीं‘ जैसी प्रेम कथाएं अस्तित्व में आईं। आधुनिक फारसी साहित्य की कई रचनाओं का विश्व की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है, जिनमें हिंदी अनुवाद भी सम्मिलित हैं।
डॉ. कहरमान सुलैमानि ने कहा कि फारसी साहित्य एक साझा धरोहर है, जिसे केवल पुरुषों तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि महिलाओं ने भी अपनी रचनात्मकता के माध्यम से असाधारण योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि कुछ पुरुष लेखकों ने अपनी रचनाएँ महिलाओं के नाम से प्रकाशित कराकर प्रसिद्धि प्राप्त की, जिनमें ‘दीवान-ए-जेबुन्निसा मुखफी‘ एक प्रमुख उदाहरण है, जो वास्तव में जेबुन्निसा बेगम की कृति नहीं है।
कला संकाय के डीन प्रोफेसर टी. एन. सथीसन ने कहा कि फारसी भाषा लंबे समय तक भारत की राजभाषा रही है। इस भाषा में महिलाओं की सेवाएँ केवल अतीत की कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि आज भी महिलाएँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं।
इसके बाद डॉ. फाताना नजीबुल्लाह ने ‘दुबारा बिनयमत वतन‘ शीर्षक से एक कविता पढ़ी, जिसमें अफगानिस्तान की जलवायु, पहाड़ों और सामाजिक परिस्थितियों को दर्शाया गया था। उन्होंने कहा कि धार्मिक और सामाजिक प्रतिबंधों के बावजूद महिलाएँ पर्दे के पीछे रहकर साहित्य और रचनात्मकता को आगे बढ़ा रही हैं।
इसके बाद दो पुस्तकों का विमोचन किया गया, जिनमें ‘संगोष्ठी शोध पत्र संकलन‘ और जहांआरा बेगम की कृति ‘रिसाला-ए-साहिबिया‘ शामिल थीं। इस पुस्तक का संपादन और अनुवाद डॉ. मुहम्मद एहतिशामुद्दीन ने किया है।
अंत में फारसी अनुसंधान केंद्र के निदेशक प्रोफेसर मुहम्मद उस्मान गनी ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन सहायक निदेशक प्रोफेसर मुहम्मद एहतिशामुद्दीन ने कियज्ञं