रांची: साझा संवाद के संयोजक इश्तेयाक अहमद जौहर ने एक प्रेस बयान जारी कर बताया है कि साझा संवाद द्वारा ऑनलाइन वेबिनार श्रृंखला में 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर 15 वां वेबिनार का “मानसिक स्वास्थ्य का महत्व” विषय पर आयोजन किया गया।
इस वेबिनार का संचालन करते हुए दीपाली टुडू ने कहा कि साझा संवाद एक सामाजिक संगठन है जिसका उद्देश्य है “साझी संस्कृति, साझा इतिहास की रक्षा करना एवं साझा संवाद स्थापित करना मुख्य ज़िम्मेदारी है।
आज लोग परेशानियों के कारण मानसिक रोगों से ग्रसित हो रहे हैं और परिवार और समाज मुक् दर्शक बना रहता है। जबकि समय रहते इस बीमारी का निदान किया जा सकता है।
इस मौके पर बी एस सी फाइनल ईयर, समस्तीपुर के छात्र आमिर शकील गाज़ी, पी पी एन कॉलेज, कानपुर की छात्रा स्नेहा द्विवेदी और निशात फातिमा और गोरखपुर एग्रीकल्चर कॉलेज के छात्र संकेत कुमार ने भी अपनी बातें रखीं। छात्र-छात्राओं ने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली बच्चों के मानसिक रूप से तनावग्रस्त कर दिया है। कट ऑफ प्रणाली मानसिक तनाव का मुख्य कराण बनती जा रही है, जिसके कारण कोटा में कई लड़कों को आत्महत्या करना पड़ा है। आज शिक्षा प्रणाली सरल और छात्रों के हित में होनी चाहिए ताकि पहले की तरह बच्चे खेल कूद के साथ पढ़ाई भी कर सके।
इस वेबिनार की मुख्य वक्ता मनोवैज्ञानिक कॉउंसिल्लर,थेरेपिस्ट, लाईफ स्किल ट्रेनर एवं पर्पल ह्यूज की संस्थापक ज्योति पांडेय ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के समर्थन में प्रयास करना है। डब्ल्यू एच ओ की रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक 40 सेकंड में कोई न कोई आत्महत्या के कारण अपना जीवन खो देता है, जो कि एक गंभीर समस्या है। जिसका निदान सरकार और समाज दोनों की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। आज लोग समग्र स्वास्थ्य के महत्व को केवल शारीरिक स्वास्थ्य के समझते हैं।
ज्योति पांडेय ने आगे इस संबंध में प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी वर्तमान जीवन शैली गलत हो रही हैं। व्यक्तिवाद, सामाजिक जुड़ाव से दूर, सोशल मीडिया पर आधारित मित्रता, हमारे आसपास के लोगों से दूर रहना, कम समझ और स्वीकृति वाले छोटे परिवार इसका मुख्य कारण है।
उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर प्रगति में बाधाओं पर जोर देते हुए कहा कि लक्षणों की पहचान करना मुश्किल है। देर से पहचान करना, गैर पावती या स्वीकृति या इंकार, कमजोर या असामान्य रूप में चिह्नित होने का डर, माता-पिता को स्वीकार करने या महसूस करने के लिए तैयार नहीं है कि उनके पालन-पोषण पर सवाल उठ रहे हैं, साथ रह रहे हैं मदद मांगने और समाधान पाने पर समस्या और पीड़ा को प्राथमिकता दी जाती है।
अंत में ज्योति पांडेय ने “थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है” शेर पढ़ते हुए कहा कि बीमारी की पहचान करना, ग्रसित व्यक्ति को प्रोत्साहित करना, उनके मन की बातों को सुनना और सही समय पर ईलाज कराना। साथ ही अगर आपके आसपास या पहचान वाले व्यक्ति में कुछ अलग सा व्यवहार या परेशानी देखें तो उनकी मदद करें और अपने सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन करें।
इस परिचर्चा में मुख्य रूप से भारत भूषण चौधरी, प्रिया रंजन, ममता मिंज, मनीष सिन्हा, मनीषा घोष, ऋचा केडिया, रीता अग्रवाल, ज़फर इक़बाल, विक्रम प्रियव्रत, अल्ताफ हुसैन, अबुल आरिफ़, आरिफ खान, इश्तेयाक जौहर, लक्ष्मी पूर्ति, पुरुषोत्तम विश्वनाथ, महेश्वर मंडी आदि लोग उपस्थित थे।