कविता
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• विकल्प •
विशद कुमार
आपकी मेहनत की रोटी
जब कोई हथिया लेता है
तो आपके पास दो ही विकल्प बचते हैं
पहला आप उसके सामने गिड़गिड़ाएं
और मांगे भीख अपनी ही रोटी की
या आप छीन लें अपनी रोटी
जो इतना आसान नहीं है
जितना कि भीख मांगना
मगर भीख मांगने के बदले
मिल सकती है गाली और दुत्कार
अपनी ही रोटी के लिए
या फिर कुछ दया भाव के साथ
कभी-कभी मिल जाएगा
रोटी का एक छोटा सा टूकड़ा
जो आपके गले तक
आकर अटक जाएगा
और भूखा का भूखा रह जाएगा आपका पेट
दूसरा विकल्प है
अपनी ही रोटी छिनना
जिसके लिए आपके पास
उतनी ही ताकत जरूरत होगी
(कुछ अधिक ही)
जितनी ताकत से उसने
छीन रखी है आपकी रोटी
उससे अपनी ही रोटी छीनना
इतना आसान इसलिए नहीं है कि
उसने बड़ी चालाकी से
आपके ही भाइयों को
बना रखा है
आपसे छीनी हुई
रोटी का पहरेदार
तब आपको अपनी ही रोटी के लिए
लड़ना पड़ेगा अपने ही भाइयों से
या बताना होगा रोटियों की कहानी
कि कैसे हमारी रोटियों पर
कब्जा जमाए हुए है वे लोग
जिनका मक़सद रोटियां खाना नहीं
बल्कि उस पर कब्जा कर
हमें गुलाम बनाना है
क्योंकि वे जानते हैं
कि रोटी के लिए हम
उनकी हर शर्तों को
मानने को तैयार हो सकते हैं
और वे हमारी इसी भूख की मजबूरी को हथियार बनाकर
हमें अपना गुलाम बनने को मजबूर करते हैं
हो सकता है आपके भाई
आपकी बातों पर यकीन न करें
जिसकी गुंजाइश अधिक है
तो फिर आपको तैयार होना होगा
पहली लड़ाई
अपने ही भाइयों से लड़ने के लिए
क्योंकि यह हथियाई गई रोटी की समस्या केवल आपकी नहीं है
आपकी अगली नस्लों की भी है
तो मित्रों अगर आप अपनी
अगली पीढ़ी में देखना चाहते हैं
एक सुन्दर मानवीय जीवन
तो लड़ना ही विकल्प है
आपके पास
अपनी रोटी को साबुत पाने के लिए