टीवी पर हरियाणा के कृषि पूंजीपति यानी तथाकथित किसान जो बड़ी बड़ी जोतों के मालिक हैं वे ये डींगे हांक रहे थे कि उन्होंने यूपी बिहार से आने वाले मजदूरों को जाने नहीं दिया बल्कि उनके रहने और खाने का इंतज़ाम किया। ये धूर्त ये नहीं बताते हैं कि चूकि फसल की कटाई का मौसम चल रहा है और इनके बाजुओं में इतना दम नहीं कि इस गर्मी में फसल काट सकें, इसीलिए इनको खेतिहर मजदूर चाहिए ही होते हैं और इसीलिए इन्होंने यूपी बिहार से आने वालों मजदूरों को रोक लिया।
यहां मैं मजदूरों को रोकना नहीं बल्कि बंधुआ बना कर जबरदस्ती श्रम कराना कहूंगी। जब तक फसल की कटाई का सीजन चल रहा है तब तक ये तथाकथित किसान तबका मजदूरों को रोटी पानी और रहने का इंतज़ाम करेगा। जैसे ही फसल कटाई का समय गया ये आधुनिक सामंत मजदूरों को उनकी हालत पर मरने को छोड़ देंगे।
ऊपर से सरकार का कहना है कि इन कृषि पूंजीपतियों को फसल कटाई के लिए यूपी बिहार से मजदूरों को लाने की इजाजत है जैसे इन खेतिहर मजदूरों यानी असली किसानों की जिंदगी का कोई मूल्य नहीं है। कोरोना में इन मजदूरों को अपनी जिंदगी बचाने का भी हक़ नहीं है।
अर्चना टाभा की फेसबुक वॉल से