गाजियाबादः आज तुम भूखे-प्यासे सड़को पर भटकने के लिए छोड़ दिए गए हो. ज़रा सोच कर बताओ क्या तुम सच-मुच इस बर्ताव के हकदार हो? ज़रा सोचो –
1 क्यूँ तुम्हारे कारखाना मालिकों ने, तुम्हारे मकान मालिकों ने और तुम्हारी सरकार ने तुम्हें सड़को पर इस तरह फेक दिया है जैसे खाली डिब्बे या बोतलें इस्तेमाल के बाद सड़क किनारे फेक दिए जाते हैं?
2. सोचो ऐसा क्यूँ है कि धनी वर्ग के लिए सभी तरह की सुविधा का इंतज़ाम है लेकिन तुम्हारे हिस्से में केवल झूठे दिलासे और मक्कारी भरे वायदे हैं?
आप सभी देख रहें हैं कि मेहनतकश वर्ग सरकारी उपेक्षा और नाकारेपन से उपजी भयानक अव्यवस्था का शिकार बन रहा है. मजदूरों का एक बड़ा हिस्सा या तो भुखमरी की कगार पर पहुँच चुका है या पहुँचने वाला है. सीमित संसाधनों और क्षमताओं के बावजूद कुछ संगठनों और नागरिक समूहों ने मजदूर वर्ग की तरफ अपनी मदद का हाथ बढ़ाया है जो हम जानते है कि बेहद नाकाफी है. वह केवल इन्ही अर्थों में नाकाफी नहीं है कि मदद की मात्रा बेहद सीमित है बल्कि वह इन अर्थों में भी नाकाफी है कि मजदूर वर्ग की वास्तविक मदद तभी संभव है जब उसे क्रांतिकारी चेतना और संगठन के मातहत संगठित कर लिया जाए.
बहरहाल, गाज़ियाबाद में काम कर रही नौजवान भारत सभा की टीम ने एक छोटी से कोशिश के तेहत अपने इलाके में दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर परिवारों तक ज़रूरी सामग्री पहुँचाने की शुरुआत की है. यह कोशिश उन तमाम साथियों-मित्रों-सहयोगियों के बिना असंभव थी जिन्होंने इसके लिए न सिर्फ पैसों से मदद की बल्कि एक ऐसे समय में जब राज्यसत्ता ने घरों से निकलना मुश्किल बना दिया है तब बिना किसी कर्फ्यू पास के इस राहत सामग्री को खरीदने और कई बार पैदल कन्धों पर लादकर एक जगह उसे पहुँचाने का काम किया है. फिलहाल काम जारी है और आगे की तैयारियां चल रही हैं.
तपीश मंदोला