मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA), कोरोना महामारी संकट के बहाने विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा मज़दूर वर्ग की कई पीढ़ियों के कठिन संघर्षों से जीते गए श्रम कानूनों को कमजोर करने / निलंबित करने के लिए जारी किए गए आदेशों की कड़े शब्दों में निंदा करता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन साल के लिए सभी प्रतिष्ठानों, कारखानों और व्यवसायों को अधिकांश श्रम कानूनों के दायरे से छूट देने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। अब लागू ना होने वाले कानूनों में न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, व्यापार संघ अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, कारखाना अधिनियम, ठेका मज़दूरी अधिनियम, बोनस का भुगतान अधिनियम, अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, वर्किंग जर्नलिस्ट अधिनियम, कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम शामिल हैं। यह अध्यादेश अब केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए लंबित है। मध्य प्रदेश में, औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 को छोड़कर सभी प्रावधानों को शिथिल कर दिया गया है, काम के घंटों को दिन में 12 घंटे तक बढ़ा दिया गया है, 50 से कम श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को विभिन्न श्रम कानूनों के तहत निरीक्षण से बाहर रखा गया है , साथ ही 100 से कम मजदूरों वाले उद्योगों को मध्य प्रदेश औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम के प्रावधानों से छूट दे दी गई है, नियत अवधि के रोजगार (फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट) को मंजूरी दे दी गई है, श्रम कानूनों के तहत विभिन्न रजिस्टरों के बजाय एक ही रजिस्टर बनाए रखने का प्रावधान लाया गया है और 13 के बजाय मात्र एकल रिटर्न दाखिल करने का प्रावधान भी लाया गया है। कारखाना अधिनियम के तहत कारखानों को तीन महीने की अवधि के लिए निरीक्षण से छूट दे दी गई है। गुजरात के सीएम विजय रुपाणी ने घोषणा की है कि गुजरात, कम से कम 1,200 दिनों तक काम करने वाली नई परियोजनाओं को श्रम कानूनों के प्रावधानों से छूट देने की योजना बना रहा है। महाराष्ट्र ने कारखाना अधिनियम की धारा 51, 52, 54, 56 से छूट घोषित की है और मज़दूरों से प्रति दिन 12 घंटे तक काम लेने की अनुमति दे दी है। असम सरकार ने उद्योगों में नियत अवधि के रोजगार की शुरूआत की है, और कारखाना अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए श्रमिकों की न्यूनतम संख्या बढ़ा कर 10 से 20 (बिजली से चलने वाले कारखानों में) और 20 से 40 (बिना बिजली के चलने वाले कारखानों में) कर दी है। इसने ठेका श्रम अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए न्यूनतम श्रमिकों की संख्या 20 से बढ़ा कर 50 कर दी है और शिफ्ट की अवधि में 8 से 12 घंटे की वृद्धि को भी मंजूरी दी है। राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे अन्य राज्यों ने भी पिछले महीने कारखाना अधिनियम में संशोधन किए हैं और काम के घंटे प्रति दिन 8 से बढ़ा कर 12 घंटे कर दिए हैं।
यह परिवर्तन पूंजीपतियों के हितों और मुनाफे का संरक्षण करते हुए, महामारी की कीमत और संकट को श्रमिक वर्ग को हस्तांतरित करने की साज़िश से ज़्यादा और कुछ नहीं हैं। यह कोरोना संकट का इस्तेमाल करके मज़दूर-विरोधी श्रम कानून सुधारों को संसद को भी दरकिनार करते हुए “फास्ट ट्रैक” तरीके से लागू करने की साज़िश मात्र हैं। यह नौकरी के नुकसान को बढ़ाएंगे, नौकरी की सुरक्षा को खत्म कर देंगे, औद्योगिक सुरक्षा को कम कर औद्योगिक दुर्घटनाओं को बढ़ाएंगे, कार्यबल की बड़ी संख्या को किसी भी कानूनी सुरक्षा के दायरे से बाहर फेंक देंगे और प्रभावी रूप से उत्पादन में बंधुआ श्रम की प्रथा को वापस ले आएँगे। यह बुनियादी अधिकारों और सम्मानजनक नौकरी के लिए मज़दूर वर्ग के संघर्षों द्वारा हासिल किये गए लाभों को सौ साल पीछे धकेल देंगे। पहले से ही भारतीय मज़दूर वर्ग कोरोना संकट – नौकरी छूटने, वेतन में कटौती, राशन, आश्रय व अन्य सुविधाओं के संकट – से जूझ रहा है, इसके बावजूद कि वे ही राष्ट्र की सभी संपत्ति के निर्माता हैं। प्रवासी श्रमिकों और असंगठित श्रमिकों का संकट विशेष रूप से गंभीर है। इस संदर्भ में, यह कदम श्रमिकों की अनिश्चित स्थिति को कई गुना बढ़ा देंगे।
MASA, COVID-19 संकट के बहाने मज़दूर विरोधी कार्यप्रणाली की अनुमति देने वाले विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जारी सभी अध्यादेशों / आदेशों को तत्काल वापस लेने की मांग करता है।
मासा केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों से मांग करता हैं कि संकट की इस घड़ी में श्रमिकों के अधिकारों और हितों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाये जाएं – जिनमें सभी के लिए सुरक्षित नौकरियां और पूर्ण वेतन, सार्वभौमिक स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा, प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों के लिए कानून निर्माण, उनके घर वापस जाने की निःशुल्क सुविधा का इंतज़ाम व औद्योगिक सुरक्षा के लिए मजबूत उपाय आदि शामिल हैं।
हम श्रमिकों के इन अधिकारों के लिए लड़ने का संकल्प लेते हैं, और सभी श्रमिकों, पूरी मेहनतकश आबादी और समाज के सभी लोकतांत्रिक तबकों से इन अधिकारों के लिए संघर्ष में आगे आने का आह्वान करते हैं। वर्तमान में हम अदालतों के माध्यम से और वस्तुतः संभव अन्य सभी तरीकों से यह संघर्ष चलाएंगे। जैसे ही यह जिम्मेदाराना तरीकों से संभव होगा, हम इस संघर्ष को सड़कों पर उतारेंगे।
– मुक्ति मार्ग