कोविड संकट के चलते हुए लॉकडाउन की अवधि के बाद भी स्कूल खुल पायेंगे यह संभव नही लगता. अगर सब कुछ सामान्य भी हो गया तो स्कूलों में नियमित कक्षाएं जुलाई या अगस्त से पहले प्रारम्भ नही हो पायेंगी. ऐसे में जहाँ एक तरफ तमाम अभिभावक संगठनों की तरफ से निजी स्कूलों द्वारा अप्रैल से जून माह का शुल्क न लेने के लिए आदेश किये जाने की मांग सरकार से की जा रही है वहीँ दूसरी तरफ स्कूल प्रबन्धन इस अवधि में ऑन लाइन क्लास चला कर शुल्क लेने को न्यायोचित बनाने की कोशिश में है. सरकार के स्तर से अप्रैल से जून माह की फीस न जमा कर पाने की स्थिति में बच्चे का नाम न काटने और फीस की धनराशि को अगले महीनों में समायोजित किये जाने के लिए निर्देश जारी किया गया है, इसमें लॉक डाउन अवधि की फीस वसूल न किये जाने के बारे में कुछ नही कहा गया है.
अगर अभिभावकों की दृष्टि से देखा जाय तो लॉकडाउन अवधि की फीस को न लेने की मांग व्यावहारिक लगती है क्यूंकि ऐसे भी बहुत से अभिभावक हैं जिनकी आय इस अवधि में लगभग शून्य हो गयी है, उनके लिए स्कूलों की फीस भर पाना बेहद कठिन होगा. वहीँ अगर स्कूल प्रबंधन की दृष्टि से देखें तो उन्हें अपने शिक्षकों, परिचारकों और अन्य कर्मचारियों को तो बंदी की अवधि में भी वेतन देना ही होगा, कुछ आवर्ती खर्च भी प्रतिमाह करने ही होंगे, जिसके लिए बच्चों से फीस लिया जाना उनकी मजबूरी होगी.
अनेक निजी विद्यालयों द्वारा परिवहन शुल्क वर्ष के बारहों महीने का वसूल किया जाता है, उसके पीछे उनका तर्क यह होता है कि ट्रांसपोर्टर से हमारा सालाना अनुबंध है, उन्हें ड्राइवर, कन्डक्टर को वर्ष भर के वेतन का भुगतान करना होगा है. वर्तमान स्थिति में देखें तो परिवहन में होने वाले डीजल, रख रखाव आदि की पूरी बचत हो रही है, स्कूल प्रबन्धन को हो रही इस बचत के बावजूद अगर अभिभावकों से परिवहन का भी पूरी अवधि का शुल्क वसूल किया जाता है तो यह निस्संदेह अन्यायपूर्ण है. इसी प्रकार लॉक डाउन की अवधि में विद्यालय संचालन में हो रहे बिजली बिल, जेनरेटर, स्टेशनरी, इन्टरनेट जैसे अनेक मद में खर्च न्यूनतम रहेगा, इस बचत का लाभ भी अभिभावकों को मिलना ही चाहिए. शिक्षको सहित अन्य कर्मचारियों के विद्यालय न आने से हो रही बचत के कुछ हिस्से का लाभ भी अभिभावकों को दिया जा सकता है, इस अवधि में विकास, लाइब्रेरी, कम्प्यूटर कक्षा, कैंटीन आदि के नाम पर लिए जाने वाले शुल्क को पूरी तरह मुक्त करके भी अभिभावकों पर दबाव कुछ कम किया जा सकता है जिससे उनको भी इस संकट की अवधि में कुछ राहत मिले.
उपरोक्त क्रम में मेरा सुझाव है कि सरकार इस मामले में एक निष्पक्ष समिति बनाये जो सभी पहलुओं को दृष्टिगत रखते हुए एक बीच का रास्ता निकाले और स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करे जिससे अभिभावकों को थोड़ी राहत मिले और स्कूल प्रबन्धन को भी अधिक नुक्सान न उठाना पड़े.
वल्लभाचार्य पाण्डेय
(सामाजिक कार्यकर्ता)
सदस्य संयोजक मंडल,
शिक्षा का अधिकार अभियान उत्तर प्रदेश
निवासी: ग्राम: भंदहां कला, पोस्ट कैथी जिला: वाराणसी सम्पर्क: 9415256848