डॉक्टर के कंपाउंडर ने भीड़ में नाम पुकाराः रोहित ठाकुर की कविता

2
648

डॉक्टर के कंपाउंडर ने भीड़ में नाम पुकारा —
पंखुरी
एक छोटी-सी लड़की बेंच से उठती है
साथ में लड़की का पिता झुक कर डॉक्टर को
एक मैला काग़ज़ दिखाता है किसी सरकारी अस्पताल का
लड़की का चेहरा पतला है और आँखें चमकती हुईं
डॉक्टर कहता है कि शरीर में ख़ून की कमी है
लड़की को कालाज़ार है
दवा से पहले ख़ून चढ़ाना होगा
डॉक्टर कहता है कि कालाज़ार का इलाज सरकारी अस्पताल में सस्ता पड़ता है
प्राइवेट अस्पताल में इलाज महँगा पड़ेगा—
सरकारी अस्पताल रेफ़र कर देते हैं
डॉक्टर फिर कह रहा है बिना ख़ून चढ़ाए दवा लेने पर
किडनी चट्ट से बैठ जाएगी
लड़की के पिता का चेहरा दुःख का मानचित्र है
लड़की पिता के साथ जा रही है
शायद हाजीपुर  |

[ उस आदमी के लिए जो सात दिनों में पैदल चलकर दिल्ली से दरभंगा पहुँचता है ]

बेटी ने कहा स्कूल बंद है
मैंने धीमी आवाज़ में कहा काम बंद है
कहा नहीं जाता पर –
कह गया यह शहर छोड़ कर जाना है
बेटी से पूछता हूँ –
दिल्ली से दरभंगा पैदल चलकर जाना है
तुम चल सकोगी
बेटी कहती है खिलखिला कर –
मेरी उँगलियों को पकड़ कर वह जा सकती है दूर
बहुत दूर
हम लोग पैदल चल रहे हैं |

[ एक गतिहीन दुनिया में गतिशील है एक साइकिल सवार ]

एक गतिहीन दुनिया में
गतिशील हैं बच्चे
एक छोटा सा लड़का
अपने आँगन में निरंतर चला रहा है साइकिल
उसके चेहरे पर जो मुस्कराहट है
उसे मैं अपने जीवन की कार्यसूची में शामिल कर रहा हूँ
कविता में नहीं
आपके कानों में यही कहना चाहता हूँ
साइकिल सवार हाँकता रहे अपनी साइकिल
गोल – गोल
पृथ्वी की परिधि से बाहर भी सुनाई दे उसकी हँसी |

[ मेरी जेब खाली थी शेष नहीं था कुछ कहना ]

मेरे पास कुछ नहीं था
एक गुलमोहर का पेड़ था सरकारी जमीन पर
पास की पटरी से गुजरती हुई ट्रेन की आवाज थी
रिक्शा वालों की बढ़ती भीड़ थी
चिड़ियाँ नहीं थी उनकी परछाईयाँ दिखती थी
गिटार बजाता एक लड़का था जो खाँसता बहुत था
हम पानी में नहीं कर्ज में डूबे थे
हम कविताएँ नहीं गाली बकते थे
हमें याद है हमारे कपड़े में कुल मिलाकर पांच जेबें थीं
एक में कमरे की चाभी
दूसरे में घर की चिट्ठी
तीसरी – चौथी और पाँचवीं खाली |

[ जाल ]

उस जाल का बिम्ब
जो छान ले तमाम दुःख
जीवन से
और
सुख की मछलियाँ
मानस में तैरती रहे
हम मामूली लोगों की
कल्पना में
रह – रह कर आता है |

[ लापता होती औरतें ]

जब औरतें लापता होती हैं
आस पास का पर्यावरण
अपनी मुलायमियत
खो देता है
औरतें लापता हो रही है
भूख से
फिर हिंसा से
औरतें लापता हो रही है
असमय मौत से
औरतें ही बचा सकती है
इस धरती पर
जो कुछ भी सुन्दर है
पर वह
विपदा में है
किसी भी देश में
जब खेतों और जंगलों को
खत्म कर दिया जाता है
वहाँ से औरतें लापता हो जाती है
जहाँ सूख जाती है नदियों और झरनों
का पानी
वहाँ से औरतें लापता हो जाती है
औरतें लापता हो जाती है
अभाव में
औरतें अभाव को अभिव्यक्त नहीं करती
और लापता हो जाती है
औरतें लापता हो रही है
क्रुर लापरवाही से |

[ एक पुराने अलबम की तस्वीरें ]

मेरे पास उपनिषदों के
सूत्र नहीं हैं
एक पुराना एलबम है
जिसमें तस्वीरों के
चेहरे साफ़ नहीं हैं
फिर भी एक सम्मोहन है
उन लोगों की तस्वीरें
जो अलबम में हैं
उनकी रौशनी
मेरे पास है
इस रौशनी के बल पर
मैं सभ्यता के
उन अँधेरे कुओं से
होकर गुज़र रहा हूँ
जहाँ छुपाकर मनुष्यों ने
रख छोड़ा है प्रेम की
सघन स्मृतियों को
मैं उन्हें अपनी कविताओं में
प्रकाशित करूँगा |

[ सुख और दुःख ]

उसने कहा सुख जल्दी थक जाता है
और दुःख एक पैसेंजर ट्रेन की तरह है
उसने सबसे अधिक गालियाँ
अपने आप को दी
उसका झगड़ा पड़ोस से नहीं
उस आकाश से है जो
तारों को आत्महत्या के लिए उकसाता है
उसने सबसे डरा हुआ आदमी
उस पुलिस वाले को माना
जो गोली मार देना चाहता है सबको
वह चाहता है कि एक
धुँआ का पर्दा टंगा रहे
हर अच्छी और बुरी चीज़ों के बीच
ताकि औरतों और बच्चों के सपनों पर
चाकू के निशान न हों |

[ जूते का वर्ग चरित्र अब धूमिल हो गया है ]

कार्ल मार्क्स
के
इतिहास की द्वंद्वात्मक
व्याख्या में
जूते
वर्गीय चरित्र से परे हो गये हैं
जूते घर के दरवाजे
से
पहुंच गये हैं सर तक

हम लोगों के प्रति नहीं
जूतों के प्रति संवेदनशील हों
जूता इस समय का आईना है
हमें अपना चेहरा
जूतों में देखने चाहिए

जूते पहनने वाले और जूते खाने वाले
एक ही वर्ग से आते हैं
वर्ग विहीन समाज की स्थापना
में
जूते की भूमिका को
मार्क्सवाद ने भी अनदेखा कर दिया

जूतों ने तय किया है लम्बी दूरी
पर पांव से हाथ तक पहुँच कर
जूते हताश हैं |

[ खाली जगह को लोगों से भरनी चाहिए ]

जगह खाली करने से
कोई जगह खाली नहीं होता
स्मृतियों के तार
वहीं से जुड़े होते हैं
जगह खाली कर जाने वाले लोगों
के
विलाप की ध्वनि का अधिकेंद्र
वही खाली जगह है
पेड़
चिड़िया
हवा
नदी
और मनुष्यता
सभी पाषाण में बदल जाते हैं
पाषाण युग के खिलाफ
किसी जगह को लोगों से भरनी चाहिए

किसी खाली जगह को उपयुक्त शब्दों से
नहीं
कमजोर लोगों से भरनी चाहिए |

[ तुम्हारे गोत्र के इष्ट देवता किसी जंगली फूल के दिवाने थे ]

तुम्हारे आस-पास
एक मौसम था
पतझड़ का
तुम्हारे मन के संदूक
में था अविश्वास रखा हुआ
तुम्हारी आँखें
सूखे कूप की तरह थी
फिर भी तुम्हारे मस्तिष्क में
फूल खिले हुए थे
बीते बसंत में

मैं अक्सर कहता था
तुम्हारे गोत्र के इष्ट देवता
किसी जंगली फूल के दिवाने थे

तुम्हारे पूर्वज
आकाश मार्ग से नहीं गये स्वर्ग
वे धरती के रंगों को जानने में खप गये

धरती का रंग जब हो जाता है
हमारा धर्म
बसंत आता है |

नाम रोहित ठाकुर

विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं बया, हंस, वागर्थ, पूर्वग्रह ,दोआबा , तद्भव, कथादेश, आजकल, मधुमती आदि में कविताएँ प्रकाशित

विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों – हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, अमर उजाला आदि में कविताएँ प्रकाशित ।

100 से अधिक ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित ।

कविताओं का मराठी और पंजाबी भाषा में अनुवाद प्रकाशित ।

पत्राचार का पता – रोहित ठाकुर

C/O – श्री अरुण कुमार

सौदागर पथ

काली मंदिर रोड के उत्तर

संजय गांधी नगर , हनुमान नगर , कंकड़बाग़

पटना, बिहार

पिन – 800026

मोबाइल नम्बर – 6200439764

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here