लॉकडाउन 1.0
28 मार्च को सुबह 9-10 बजे क़रीब कॉलोनी के मुख्य चौराहे पर लगे नगर निगम के बोर्ड पर एक सूचना लिखकर लगा दी कि कॉलोनी का कोई भी जरूरतमंद आदमी, जिसको भोजन-पानी की दिक्कत चल रही हो तथा कोई मदद भी न मिल पा रही हो, बेझिझक सम्पर्क करे।
दोपहर 12 बजे एक फ़ोन आता है। मैं देखने जाता हूँ। पहली मन्ज़िल पर 8 X 7 फ़ीट साइज़ के पाँच कमरों में बिहार के भागलपुर और झारखण्ड के गोड्डा ज़िलों के 20 प्रवासी मज़दूर रह रहे हैं। दो घण्टा रुककर बातचीत करने पर कई बातें मालूम हुईं।
मकानदार किसी दूसरी कॉलोनी में रहते हैं, ख़ैर-ख़बर भी नहीं ले रहे। हमारी कॉलोनी में उनकी बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान है। दुकान के ऊपर बने पाँच कमरों में ये 20 मज़दूर रहते हैं। इनमें से कुछ तो उन्हीं के पास काम करते हैं, कुछ किराये का साईकल-रिक्शा चलाते हैं और कुछ बेलदारी करते हैं।
ख़ैर, खाने-पीने का संकट तो नज़दीक आ ही चुका था। इसके अलावा कुछ तो पैदल ही घर-गाँव जाने की सोच रहे थे। कुछ 5-5 हज़ार रुपये में बस से रात के अँधेरे में निकलने की सोच रहे थे। बाहर निकलने पर मोहल्ले वाले धमका रहे थे। कुछ पुलिस से लाठियाँ खाकर डरे हुए थे। कुछ सरकारों के हेल्पलाइन नम्बरों पर लगातार फ़ोन कर रहे थे।
इस वक़्त दिल्ली सरकार की दोपहर-रात की पके भोजन की व्यवस्था शुरू ही हुई थी। लेकिन भोजन कम पड़ जाता था और क्वालिटी भी अच्छी नहीं थी। नाश्ते का तो कहीं कोई ज़िक्र अब तक नहीं है। रात के भोजन के बाद सीधा दोपहर का भोजन! यानि 15-16 घण्टे का गैप!
सबसे पहले तो सामान्य बातचीत से सबकी घबराहट दूर की। फ़िर इनमें से एक मज़दूर को अपने साथ ले जाकर 10 दिन का राशन-पानी पहुँचा दिया और छोटे वाले पाँच सिलेण्डर भरवा दिये।
इसके बाद रात तक मेरे पास 4-5 फ़ोन और आये और उनके भी राशन-पानी का बन्दोबस्त किया।
रात को सोने से पहले दिमाग़ में कई तरह की बातें, कई तरह के सवाल उमड़ने-घुमड़ने लगे।
अगले दिन सुबह अपने आसपास के दोस्तों से मिलकर पिछले दिन की बातों को साझा किया। फ़िर, हम सबने मिलकर तय किया कि अपनी कॉलोनी में सर्वे आधारित ‘राहत सामग्री वितरण अभियान’ चलाया जाये।
तय हुआ कि कॉलोनी के किरायेदारों का एक व्यापक सर्वे किया जाए। सर्वे के मुताबिक़, जो लोग/परिवार सर्वाधिक ज़रूरतमन्द हों, उनके घर पर ही राशन किट (आटा, चावल, दाल, मसाले, तेल, चीनी, चाय, वाशिंग पाउडर, नहाने का साबून, कपड़े धोने का साबून, सेनेटरी पैड तथा 6 महीने से बड़े बच्चों के लिए सेरेलक) पहुँचाई जाये ताकि सोशल डिस्टेनसिंग का नियम न टूटे।
पूरा अभियान 5 चरणों में बंध गया।
1. सर्वे 2. चन्दा 3. खरीद 4. पैकिंग 5. वितरण
इस अभियान के तहत, 2 अप्रैल तक अपनी कॉलोनी और कुछ आसपास की कॉलोनियों के 1000 से अधिक लोगों तक राशन किट पहुँचा दी। इसके अलावा, जिनके गैस सिलेण्डर खाली हो गये थे, उनके गैस सिलेण्डरों में 2 से 3 किलो गैस भरवा दी और बीमार लोगों की दवा का इन्तेज़ाम कर दिया।
2 अप्रैल तक दिल्ली सरकार की दो वक़्त की पके भोजन की व्यवस्था भी ‘कुछ’ ठीक हो गयी थी और भोजन भी पर्याप्त मात्रा में आने लगा था। लेकिन नाश्ते का अब तक कोई इन्तेज़ाम नहीं था।
3 अप्रैल से हमने व्यापक तौर पर राशन बाँटना रोक दिया और राशन किट उन ज़रूरतमन्दों को देने लगे जो ख़ुद हम तक पहुँच रहे थे। इसके अलावा हमने तय किया कि अपनी कॉलोनी के उन बेहद ज़रूरतमन्द परिवारों (किरायेदार) में रोज़ाना नाश्ता किट (दूध और ब्रेड / केला / बिस्कुट / बन्द / दलिया) पहुँचाई जाए, जहाँ कोई बीमार हो, बुजुर्ग हो, गर्भवती महिला हो अथवा 5-7 साल तक का बच्चा हो।
ये पूरा अभियान हमारे दोस्तों, सोशल मीडिया के दोस्तों, हमारी गली और कॉलोनी के संवेदनशील और मानवप्रेमी लोगों के सहयोग से पहले लॉकडाउन के आख़िरी दिन, 14 अप्रैल तक जारी रहा।
अतुल कुमार की फेसबुक वॉल से