(१). प्यार में स्त्री – 1
प्यार में
स्त्री
वाष्प में झील होती है
एक लावा नदी होती है
जिसके पास
राख में डूबा शहर होता है
(२). प्यार में स्त्री – 2
कभी नहीं छूटती
स्त्री
प्यार से
गाछ से विलगाने
ऋतुचक्रों के सूख जाने पर भी
महकती रहती
फूलों की तरह
प्यार में।
(३) जलते हुये पेड़
अन्येष्टि में होते हैं
जलते हुये पेड़
समान ध्वन्यात्मकता के साथ
अग्नि में
मंत्र और जल के बिना
फूँकते-तापते
लोग
श्मशान में होते हैं
जाने-अनजाने।
(४). याद
वो
याद आती है
मेरी दवाओं की तरह
जिनसे
मैं ठीक हो गया था।
(५). लड़कियाँ
माँ की कोख से ही
पीड़ा लेकर
जन्मती हैं
लड़कियाँ
हर पीड़ा में
माँ को देखती हैं
पीड़ा में पिता ही
उम्मीद थे
इसलिए मरने के बाद भी
पिता को
बहुत याद करती हैं
लड़कियाँ।
(६). आज रात
आज रात
सोना चाहता हूँ
सपनों भरी नींद
पर चाहता हूँ
सपनों में चाँद न हो
चाँद
एक सुन्दर छल है
सपनों में
चाँद को चाहना
नींदों को
स्वप्न बना देती है
हाँ मैं चाहता हूँ
सपनों में आयें
मेरी कविताओं के
खोये हुये बिम्ब
जिनकी खोज में
अक्सर
मैं रातों को
सोया नहीं।
(७). सन्नाटा
हवावों का सनन् सनन्
ऊँग ऊँग शोर
दरअसल एक डरावने सन्नाटे का
शोर होता है
ढेरों कुसिर्यों के बीच बैठा
अकेला आदमी
झुंड से बिछड़ा
अकेला पशु
आसानी से महसूस कर सकता है
इसके लिए सरल है
भेदना कपाल अस्थियाँ
रात के अंधेरे की चीखें
सन्नाटे को भेद नहीं सकतीं
गहरा देती हैं
हत्यारा
सन्नाटे से ही घेरता है
शिकार
सन्नाटा होता है
देवों का रुदन
धरती के संकटों में
कब्र के भीतर रखी चीजें भी
कम नहीं करतीं
अन्दर का सन्नाटा
सन्नाटा
युद्ध का असली हथियार है
युद्धक मशीनों का शोर
सन्नाटे का शोर होता है
जब हमें माननी पड़ती हैं
दूसरों की बातें
तब सन्नाटा ही होता है
हमारेे बीच
बड़े-बड़े ध्वनि विस्तारक यंत्र
सन्नाटे की परतें बिछाते हैं
हमारी आवाज के चारों तरफ
सन्नाटे को कोई मार नहीं सकता
वह राजा है।
(८). अंधकार
अंधकार है
घरों में
देहरी के बाहर है
प्रकाश
देहरी तोडूँ या
घर से बाहर निकलूँ
अंधकार है
मन में
प्रकाश है
मन के अनन्तर
मन को मारूँ या
बाहर निकलूँ
अन्तरंगताओं से ।
(९). उम्मीदें
नये घरों की
खिड़कियों से झांकती हैं
अनगिन उम्मीदें
प्रवेशित होती हैं
हमारे गृह प्रवेश से पहले ही
नए घरों में
पतवार होती हैं
उम्मीदें
जिन्हें नाव का इन्तजार होता है
छला जाता है
जीवन हर बार
उम्मीदों की भूलभुलैया
गहरी अंतहीन हैं
उम्मीदों के बिना जीना
अंधेरे में जीना है
पर यह अंधेरा
प्रकाश से ज्यादा जरूरी है
जब हर पल मर रही हैं
उम्मीदें
प्रेम और पूजा की
तब मरकर भी
हर बार
जीना चाहती हैं
उम्मीदें।
(१०). कसाई का घर
कसाई के घर
उसके हथियार ही होते हैं
सर्वदा
पशु तो आते हैं और
खुशियों में बदल जाते हैं।
(११). मैं सोचता हूँ
मैं सोचता हूँ
तुम्हारी देह
उसमें होना
वैसे ही
जैसे तुम हो
देह में
मैं जीता हूँ
तुम्हारा जीवन
जैसे तुम जीती हो
मैं होना चाहता हूँ
वही
जो तुम हो
मैं प्रेम करता हूँ
शायद!
(१२). जो निराशा
जो निराशा
पीड़ा
सुख है
अभी है
फिर कभी नहीं है
मैं कुछ नहीं करता
जब कुछ भी नहीं हो रहा होता है
जुते खेतों में
खुली होती है
धरती की कोख
तब केवल उम्मीदों में होते हैं
बीज और बारिश
गर्म होती है
मिट्टी की देह
मिट्टी में घुलती वर्षा बूँदे
फैल जाती हैं
मिट्टी की गंध शिराओं में
तारे देख रहे होते हैं
मिट्टी की तैयारी
जब लहलहा उठेगी
धरती
तब एक घनी गहरी
उब से उठकर
मैं भी पड़ा होऊँगा
मिट्टी में
पूरी जीवंतता के साथ।
(१३) अंधेरे
अंधेरे
ढूढ़कर देते हैं
सच्चे दोस्त
उजाले
छल के सिवाय
कुछ भी नहीं
(१४). अकारण
वह हंसता था
बेशुमार
बिना खुशियों के
रोने लगा
अकारण
एक दिन
अब धरने पर है
पूरा शहर
यह जानने के लिए कि
कैसे हंसाया जाय
उसे
एक बार फिर
अकारण।