जीवन के इन संघर्षों से ओ साथी!
घबराना कैसा?
कंकड़ पत्थर चुभ जाते हैं
लक्ष्य पर संकट घिर आते हैं
राह की दुश्वारियां देख ओ साथी!
थम जाना कैसा?
चींटी को तू देख जरा
कुछ ना उसको थका सका
अनगिन प्रयासों की कड़ियों से ओ साथी!
थक जाना कैसा ?
ऊंची नीची राह मिलेगी
कहीं धूप कहीं छांव मिलेगी
पथ के कुटिल अवरोधों से ओ साथी!
डर जाना कैसा?
जीवन के इन संघर्षों से ओ साथी!
घबराना कैसा?
अमिता शर्मा